
सिकंदर बनने के लिए मायावती के आगे झुकने को तैयार सुल्तान
आलोक पाण्डेय
कन्नौज. अकबरपुर लोकसभा सीट पर भाजपा का परचम है। इतिहास की पन्ने बताते हैं कि वर्ष 2009 में यहां कांग्रेसी तिरंगा लहराया था, जबकि पूर्व के चुनाव में बसपा का नीला परचम। इस समीकरण से कानपुर की अकबरपुर सीट बसपा के खाते में जाना तय है, लेकिन घाटमपुर और फतेहपुर सीट पर सपा का दावा बनता है। बावजूद सपा के सुल्तान राजनीति के सिकंदर बनने के लिए नरमी दिखाते हुए सपा के प्रभाव वाली कुछ सीटों को बसपा और रालोद के लिए कुर्बान करने के तैयार हैं। इस दरियादिली के पीछे दिल्ली सिंहासन की चाहत है। अखिलेश यादव की जुगत है कि यूपी में यदि भाजपा को 20 सीटों के आस-पास रोक दिया तो केंद्रीय राजनीति में वह सबसे बड़े और प्रभावशाली चेहरे के रूप में स्थापित होंगे। इस स्थिति में किस्मत कनेक्शन ने साथ दिया तो गठबंधन सरकार के मुखिया के तौर पर उनका नाम प्रस्तावित होना संभव है।
मायावती की जिद पूरी करने के लिए तैयार हैं अखिलेश
सपा के पुख्ता सूत्रों के मुताबिक, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव यूपी में भाजपा की तगड़ी घेराबंदी करने के लिए बसपा मुखिया मायावती की जिद पूरी करने के लिए राजी हैं। गौरतलब है कि मायावती यूपी में गठबंधन को अमलीजामा पहनाने के लिए 40 लोकसभा सीट चाहती हैं। पश्चिम यूपी में गठबंधन को प्रभावशाली बनाने के लिए अजित सिंह की रालोद को शामिल करना मजबूरी है। इसके अतिरिक्त पूर्वांचल में निषाद पार्टी जैसे कुछेक छोटे-मझोले राजनीतिक दल भी दो-दो सीट चाहते हैं। मायावती को 40 सीट देने के बाद कांग्रेस को न्यूनतम 10 सीट और रालोद को पांच सीट देनी पड़ेगी। इसके अतिरिक्त पूर्वांचल के दलों के खाते में तीन सीट भी रखी जाएं तो सपा के खाते में सिर्फ 23-25 सीट ही आएंगी। राजनीति का पहलवान बनने के लिए अखिलेश यादव ने इसी समीकरण के लिहाज से सीटों को चयन करने के लिए पार्टी के प्रमुख चेहरों को जिम्मेदारी सौंपी है।
चुनावी मैदान में चेहरा हमारा-निशान तुम्हारा का फार्मूला
सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम के मुताबिक, भाजपा की जहरीली राजनीति के खात्मे के लिए गठबंधन जरूरी है। ऐसे में किसी एक परिपक्व नेता को समझदारी और बड़प्पन दिखाना होगा। उन्होंने कहाकि यदि बसपा प्रमुख 40 सीटों की शर्त पर समझौता करना चाहती हैं तो सपा को ऐतराज नहीं है। अलबत्ता कुछेक सीटों पर चेहरा हमारा-निशान तुम्हारा का फार्मूला लागू होगा। उन्होंने कैराना और यूपी विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन में लखनऊ-कानपुर की कुछ सीटों के उदाहरण के साथ समझाया कि चेहरा हमारा-निशान तुम्हारा के फार्मूले से गठबंधन स्थाई और दीर्घकालिक होगा।
दावेदारी के लिए पिछले चुनाव की हैसियत का समीकरण
किस सीट पर किसका दावा पुख्ता ? इस सवाल के जवाब में बसपा ने पिछले लोकसभा चुनाव में किसी लोकसभा क्षेत्र में दूसरे स्थान पर रहने वाले दल का दावा उस सीट पर पुख्ता बताया है। यूं समझिए कि कानपुर में कांग्रेस रनर थी, ऐसे में कानपुर सीट से कांग्रेस का उम्मीदवार बतौर गठबंधन प्रत्याशी चुनाव लड़ेगा। इस लिहाज से देखा जाए तो यूपी में सपा 35 सीटों पर दूसरे नंबर पर थी, जबकि पांच सीट पर जीती थी। जाहिर है कि सपा का दावा 40 लोकसभा सीटों पर बनता है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी 37 स्थानों पर दूसरे नंबर पर थी। ऐसे में यह बात उठी कि जब 77 सीटों पर दो दलों में दावेदारी है तो बाकी तीन सीट पर कांग्रेस, रालोद और निषाद पार्टी जैसे छोटे दलों के बीच बंटवारा कैसे होगा। इस स्थिति के सामने आने पर सपा अपने कोटे की सीटों का कुर्बानी देने के लिए तैयार है।
पश्चिम यूपी में रालोद को एसपी कोटे से मिलेंगी सीटें
एसपी ने संकेत दिया है कि रालोद को वह अपने कोटे से टिकट दे सकती है। इसकी वजह यह है कि 2009 में बिजनौर, अमरोहा, बागपत, हाथरस व मथुरा सीट पर रालोद जीती थी। जबकि 2014 के चुनावों में हाथरस में बीएसपी और मथुरा में रालोद के अलावा बिजनौर, अमरोहा व बागपत में एसपी ही दूसरे नंबर पर रही थी। बीएसपी के सूत्रों का कहना है कि पार्टी ने 40 सीटें मांगी हैं, लेकिन वह 34 पर राजी हो सकती है। कांग्रेस ने 22 सीटें मांगी हैं, लेकिन राहुल गांधी के खेमे को 10 सीट ही मिलेंगी।
Published on:
04 Jun 2018 02:21 pm
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