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आईआईटी कानपुर की स्पेशल फ्लाइट से दिल्ली में क्लाउड सीडिंग, भरी उड़ान, कृत्रिम बारिश से वातावरण होगा ठीक

Special aircraft takes off from IIT Kanpur Delhi कानपुर आईआईटी का स्पेशल एयरक्राफ्ट दिल्ली के वातावरण को सही करने के लिए उड़ान भरी। जो मेरठ एअर फील्ड से होते हुए सात प्रमुख स्थानों पर क्लाउड सीडिंग करेगी। आईआईटी निदेशक ने बताया कि बादलों में नमी पैदा कर बारिश की जाती है।

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आईआईटी कानपुर का स्पेशल एयरक्राफ्ट (फोटो सोर्स- 'X' कानपुर वीडियो ग्रैब)

फोटो सोर्स- 'X' कानपुर वीडियो ग्रैब)

Special aircraft takes off from IIT Kanpur Delhi कानपुर आईआईटी से विमान ने दिल्ली में क्लाउड सीडिंग के लिए उड़ान भरी। जिसकी शुरुआत मेरठ एअर फील्ड से होगी। बीते 23 अक्टूबर को जिसका सफल ट्रायल हुआ है। दिवाली के बाद दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स काफी बढ़ गया है जिससे लोगों को काफी परेशानी हो रही है। दो राउंड में क्लाउड सीडिंग का सफल ट्रायल किया गया। जो मेरठ और फील्ड से शुरू होकर ‌सात प्रमुख स्थानों पर क्लाउड सीडिंग किया गया जिन स्थानों पर एयर क्वालिटी इंडेक्स काफी खराब है।

क्या कहते हैं आईआईटी निदेशक?

उत्तर प्रदेश के कानपुर आईआईटी के निदेशक प्रोफेसर मणीन्द्र अग्रवाल के अनुसार सफल ट्रायल के बाद बादलों का इंतजार है। जैसे ही मौसम अनुकूल होगा। कृत्रिम बारिश कर दी जाएगी। जिसका एयर क्वालिटी इंडेक्स पर प्रभाव पड़ेगा। कृत्रिम बारिश में सिल्वर आयोडाइड और नमक आदि रसायनों का मिश्रण तैयार किया जाता है। जिसे विमान के अलग-अलग उपकरणों में भरकर बादलों पर छिड़काव के लिए ले आया जाता है। जिसके छिड़काव से बादलों में नमी पैदा होती है। जिससे कृत्रिम बारिश होती है। इससे करीब 100 किलोमीटर में कृत्रिम बारिश कराई जा सकती है।

आईआईटी कानपुर के स्पेशल एयरक्राफ्ट का प्रयोग

कृत्रिम बारिश के लिए आईआईटी कानपुर का स्पेशल एयरक्राफ्ट प्रयोग में लिया जाएगा। दिल्ली में क्लाउड सीडिंग करने के लिए वत आईआईटी ने उड़ान भरी जिसके अनुमति डीजीसीए (DGCA) पहले ही दे चुका है। बीते 23 अक्टूबर को इसका सफल ट्रायल हो चुका है

दो राउंड में हुई क्लाउड सीडिंग

आईआईटी कानपुर से उड़ान भरने के बाद मेरठ एयर फील्ड होते हुए खेकड़ा, बुराड़ी, नॉर्थ करोल बाग, मयूर विहार, भोजपुर में क्लाउड सेटिंग की गई। पहले राउंड में 4 हजार फुट की ऊंचाई पर 6 प्लेयर्स रिलीज किए गए। जबकि दूसरे राउंड में 5 हजार से 6 हजार फुट की ऊंचाई पर आठ फ्लेयर्स का प्रयोग किया गया।