
Kanpur Bungalow heritage of 500 crores having world's only Rolls Royce
अनमोल विरासत सहेज कर रखना आसान काम नहीं लेकिन स्वरूप नगर में इब्राहिम परिवार की सांसें इन विरासतों में धड़कती हैं। हो भी क्यों न..उनके नायाब संग्रह में 1913 में बनी दुनिया की इकलौती रॉल्स रायस घोस्ट लिमोजिन जो है। 1920 मॉडल की रॉल्स रायस स्पोर्ट्स मॉडल कार है जो आज भी 80 मील यानी 120 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ने का दमखम रखती है। पटियाला के नवाब के महल की शान रहे मिनी रेल इंजन अब इस परिवार की शोभा बढ़ा रहे हैं। दुनिया के रईस उन्हें मुंहमांगी कीमत देने को तैयार हैं लेकिन इब्राहिम परिवार के लिए ये कारें और इंजन जिंदगी का हिस्सा बन चुकी हैं। एंटीक वैल्यू को देखते हुए इनकी कीमत करीब 500 करोड़ से कम नहीं है। इस बंगले दशकों पुरानी अनोखी वस्तुओं से लेकर नए जमाने की खासियत देखने को मिलेगी।
रॉल्स रायस कंपनी भी दे चुकी ऑफर
सिल्वर घोस्ट बनाने वाली रॉल्स रायस मुंबई में देश का अपना पहला शोरूम खोलना चाहती थी। तारिक इब्राहिम की इस कार को उस शोरूम में नुमाइश में रखने के लिए चुना गया था। कंपनी ने तारिक के सामने उनकी पुरानी कार के बदले किसी भी मॉडल की नई कार और करोड़ों रुपये ऑफर भी किए लेकिन उन्होंने ये कहते हुए ठुकरा दिया कि जो चीज दुनिया में अपने तरह की केवल एक ही है, उसकी कीमत कैसे कोई आंक सकता है? कार देने से इंकार कर दिया।
कैसे बच गई दुनिया की इकलौती ये कार
स्वरूप नगर निवासी तारिक इब्राहिम ने पत्रिका से बातचीत के दौरान बताया कि 24 जनवरी 1913 को इस कार को इंग्लैंड के सेल्सबरी में रहने वाले इंजीनियर हॉरेस एफ पारशल ने 1335 पाउंङ में खरीदा था। पारशल ने अपनी गाड़ी में लिमोजिन बॉडीवर्क करवाया। उनके अलावा आठ और लोगों ने लिमोजिन बॉडीवर्क को अपनाया। वर्ष 1914 में पहला विश्वयुद्ध छिड़ गया। ब्रिटिश सेना ने पारशल की कार को छोड़कर सभी आठ अन्य सिल्वर घोस्ट लिमोजिन गाड़ियां ले लीं और उन्हें बख्तरबंद बनाकर युद्ध में इस्तेमाल किया। सभी गाड़ियां जर्मन सेना के हमले में बर्बाद हो गईं। पारशल की कार इसलिए बच गई क्योंकि ब्रिटिश सेना ने उन्हें रेलवे लाइन बिछाने का काम सौंपा था और पारशल को इस काम के लिए काफी घूमना पड़ता था। विश्वयुद्ध ख़त्म होने के बाद पारशल ने अपनी कार ठेकेदार दोस्त ए स्टीवर्ट को बेच दीं। ए स्टीवर्ट ने 1920 में कार जॉन एंडरसन को बेची। 1925 में मेजर जी ओ सैंडी के पास पहुंच गई। इब्राहिम की पत्नी वासिया इब्राहिम के परनाना हाफिज़ मोहम्मद हलीम ने 1928 में ये गाड़ी खरीदी। हलीम चमड़े के व्यापारी थे। कुछ समय बाद हलीम ने कार बेटे एसएम बशीर को तोहफे में दे दी। बशीर तब लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ते थे। वर्ष 1935 में पढ़ाई खत्म करने के बाद घर लौटे तो अपने साथ कार भी कानपुर ले आए।
कार के लिए लंदन से आते हैं इंजीनियर
इब्राहिम ने बरसों से खड़ी खटारा कार ब्रिटेन के जॉनाथन हार्ले से ठीक कराई। हार्ले ने रॉल्स रायस एंथुजियास्ट क्लब के दस्तावेजों की जांच करके बताया कि इब्राहिम की लिमोजिन दुनिया की इकलौती कार है। हार्ले साल में दो बार कानपुर आते और करीब 15 दिन रुककर उनकी कार को ठीक करते। गाड़ी के पुर्जे खरीदने के लिए तारिक इंग्लैंड जाते। कार के लकड़ी के रिम दीमक ने खा लिए थे। सिल्वर घोस्ट के रिम लंदन में एक कारोबारी ने अपने घर में सजा रखे थे। मिन्नतों के बाद उनसे रिम लेकर आए। बड़ी मुश्किल से जाजमऊ में एक बुजुर्ग कारीगर ने रिम बनाए। अब कार बिल्कुल ठीक है। एक लीटर में एक किलोमीटर चलती है।
बंगले में असली मिनी रेल इंजन बेशकीमती
इब्राहिम परिवार के बंगले में सजे दो मिनी रेल इंजन हैं जो 1910 के हैं और नाम है अटलांटा। करीब पांच फिट के ये इंजन असली भाप इंजन का छोटा रूप हैं। फैसल इब्राहिम ने बताया कि इनकी मरम्मत लोकोमोटिव इंजीनियर ही करते हैं। सर एडवर्ड निकोलस के लिए अटलांटा के केवल 14 पीस बनाए गए थे जिसमें दो पीस बाद में पटियाला के नवाब के महल की शान बने। तोहफे में मिले ये इंजन आज इब्राहिम परिवार की शान बढ़ा रहे हैं।
दुनिया का पहला म्यूजिक सिस्टम से लेकर नए जामने का एलेक्सा भी
तारिक ने हमको (पत्रिका) को दुनिया का पहला, दूसरा और तीसरा से लेकर अपडेटेड म्यूजिक सिस्टम दिखाया। खास बात ये है कि ये सभी चलते हैं। इब्राहिम आवास में जानवरों के विशेष खाल, सदियों पुराने सिक्के, मुकुट आदि वस्तुएं उपलब्ध हैं। बंगले में प्रवेश करने के बाद न केवल विरासतें दिखाती है बल्कि राजाओं के जमाने के नजारा दिखने लगात है।
Updated on:
19 May 2022 11:24 am
Published on:
19 May 2022 12:24 am
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