
Son Came From England After Two Years And Find Mother is Nomore
पिछले दिनों कानपुर के दो बैंकों में लॉकर टूट गए। करोड़ों के जेवर गंवाने वालों की आंखें छलक पड़ीं। मंगलवार को शहर में फिर एक लॉकर खोला गया। कुछ जोड़ी आंखें छलक पड़ी लेकिन इस बार दु:ख की वजह कुछ और है। यह लॉकर बैंक में नहीं, बल्कि श्मशान में खुला। इसमें जेवरात नहीं अस्थियों की शक्ल में मातृत्व की निशानियां रखी हैं। यह लॉकर वह बेटा खोल रहा, जो दो साल से कोविड की वजह से इंग्लैंड में फंसा था।
कानपुर जिले के आर्यनगर की कल्पना दीक्षित पहली लहर में कोरोना की चपेट में आ गई थीं। ज्यादा बीमार हुईं तो देवर व ननद के बेटों ने उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया। 29 जून 2020 को ऑक्सीजन की कमी से उनकी हालत बिगड़ गई। कल्पना की ननद के बेटे आनंद त्रिपाठी बताते हैं कि उन्हें एंबुलेंस से अस्पताल ले जा रहे थे, रास्ते में ही सांसें साथ छोड़ गईं। विद्युत शवदाह गृह में उनका अंतिम संस्कार कराया। अस्थि बैंक में फूल चुनकर सुरक्षित कर दिए। आखिरी वक्त में तो बेटा-बहू, पौत्री उन्हें न छू सके, न देख सके। कोरोना की पाबंदियों के बाद अब उनकी अस्थियां सिर-माथे पर लगाकर खूब रोया। गंगा के आंचल को यह अस्थियां सौंप दी।
दो बार नहीं मिली आने की अनुमति
आनंद के मुताबिक मां की मौत की खबर पर कैसल सिटी, इंग्लैंड में रह रहे बेटे दीपांकर अपनी पत्नी जया के साथ आने को परेशान थे। फ्लाइट बंद थीं। उन्होंने अस्थि कलश सुरक्षित करने को कहा था। एक साल बाद फिर दीपांकर ने आने की कोशिश की। एयरपोर्ट में शरीर का तापमान ज्यादा पाया गया। वह फिर रोक दिए गए। अब इस बार वह अपनी पत्नी व बेटी के साथ आ रहे हैं। दीपांकर रविवार को इंग्लैंड से निकले थे। मंगलवार की सुबह वह श्मशान के लाकर बैंक में पहुंचें।
अस्थियां ही गले लगाकर रो लेते हैं बच्चे
श्रीयुग दधीचि अस्थि कलश बैंक के संयोजक मनोज सेंगर ने कहा कि बेटे ने करीबियों से अस्थि कलश सुरक्षित रखने को कहा था। बार-बार बेटे का संदेश अपनों के पास आ रहा था। मंगलवार को पुत्र अपनी मां की अस्थियां ले लिया। उन्होंने ने कहा कि ऐसे और भी बेटे है जो मात्र अंतिम मात्र दर्शन को नहीं पहुंचे तो अस्थियों को गले लगाकर रोने के लिए सहेज कर रखवा दिया है।
Updated on:
12 Apr 2022 01:39 pm
Published on:
12 Apr 2022 01:38 pm
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