पार्क की दुदर्शा का आलम यह है कि उसमें चहूंओर गंदगी का अंबार लगा है और जानवर विचरण करते रहते हैं, लेकिन इसकी देखभाल के प्रति जिम्मेदारों ने मुंह मोड़ रखा है। नतीजतन पार्क को विकसित करने के लिए खर्च की गई राशि का उपयोग नहीं हो सका है।
ऐसे में यात्री बस के इंतजार में दो पल सुकून से बैठने के लिए इधर-उधर जगह तलाशते नजर आते हैं। वर्ष 2013 में स्थानीय भारत विकास परिषद की ओर से बस स्टैण्ड परिसर के एक हिस्से में पार्क विकसित किया गया था, जिसका नाम स्वामी विवेकानन्द पार्क रखा। परिषद के कार्यकर्ताओं ने गंदगी से अटे उस हिस्से में श्रमदान कर स्वच्छ किया।
इसके बाद पार्क में पौधे रोपे। साथ ही बैठने के लिए सीमेन्ट की बैंच भी लगाईं। पौधों की सुरक्षा ओर सफाई बरकरार बनाए रखने के उद्देश्य से पार्क के चारों ओर लोहे की फेसिंग भी की गई। इससे बस स्टैण्ड पर स्वच्छता का अच्छा माहौल नजर आने लगा था।
पार्क में धीरे-धीरे पौधे भी विकसित होने लगे तो हरियाली छाने लगी। साथ ही बैंच लगने से यात्रियों के अलावा रोडवेज के चालक-परिचालक व अन्य कार्मिकों को बैठने के लिए अच्छा स्थान भी मिला।
इसलिए आया अडंगा
भारत विकास परिषद ने तीन-चार वर्ष तो पार्क की सार-संभाल की, लेकिन अब पिछले दो वर्ष से परिषद ने पार्क की देखरेख बंद कर दी है। इसके पीछे परिषद पदाधिकारी रोडवेज प्रबंधन की मनाही की बात कहते हैं। उनका कहना है कि रोडवेज प्रबंधन ने खुद की जमीन होने की बात कहते हुए पार्क को आगे विकसित करने से इनकार कर दिया।
भारत विकास परिषद ने तीन-चार वर्ष तो पार्क की सार-संभाल की, लेकिन अब पिछले दो वर्ष से परिषद ने पार्क की देखरेख बंद कर दी है। इसके पीछे परिषद पदाधिकारी रोडवेज प्रबंधन की मनाही की बात कहते हैं। उनका कहना है कि रोडवेज प्रबंधन ने खुद की जमीन होने की बात कहते हुए पार्क को आगे विकसित करने से इनकार कर दिया।
ऐसे में उन्हें अपना काम रोकना पड़ा। इसके बाद रोडवेज प्रबंधन ने भी पार्क की अनदेखी की। सार-संभाल नहीं हो पाने से आज यह पार्क बदहाल स्थिति में है। रोडवेज सूत्रों का कहना है कि परिषद पार्क की पक्की दीवार कराना चाहती थी, जिसकी मुख्यालय से ही अनुमति नही मिली।
टूट गई बैंच, गायब हो गई फैसिंग
पार्क की अनदेखी के चलते उसमें लगी सीमेंट की कुछ बैंच टूट गई हैं तो कुछ उल्टी पड़ी हैं। वहीं चारों ओर लगाई गई फैंसिंग में से अधिकांश का अता-पता ही नहीं है। जो लगी है, वह भी टूटी पड़ी है। इससे वहां अब फिर से कचरे के ढेर लगे हैं। जानवरों का जमावड़ लगा रहता है। लेकिन रोडवेज प्रबंधन सफाई के प्रति अनदेखी किए हुए हैं।
पार्क की अनदेखी के चलते उसमें लगी सीमेंट की कुछ बैंच टूट गई हैं तो कुछ उल्टी पड़ी हैं। वहीं चारों ओर लगाई गई फैंसिंग में से अधिकांश का अता-पता ही नहीं है। जो लगी है, वह भी टूटी पड़ी है। इससे वहां अब फिर से कचरे के ढेर लगे हैं। जानवरों का जमावड़ लगा रहता है। लेकिन रोडवेज प्रबंधन सफाई के प्रति अनदेखी किए हुए हैं।
रोडवेज प्रबंधन ने मनाही कर दी
वर्ष 2013 में परिषद कार्यकर्ताओं ने गंदगी से अटे स्थान पर श्रमदान कर पार्क विकसित किया। राशि खर्च कर सीमेंट की बैंच, फैसिंग आदि लगाई। पौधे भी पनप गए और कई पौधों ने आज पेड़ का रूप ले लिया है। वर्ष 2017 तक कार्यकर्ताओं ने पार्क के लिए खूब मेहनत की, लेकिन इसके बाद रोडवेज प्रशासन ने काम करने से मनाही कर दी। ऐसे में उन्हें अपना काम बंद करना पड़ा।
अरविन्द अग्रवाल, प्रांतीय पर्यावरण प्रभारी भारत विकास परिषद
वर्ष 2013 में परिषद कार्यकर्ताओं ने गंदगी से अटे स्थान पर श्रमदान कर पार्क विकसित किया। राशि खर्च कर सीमेंट की बैंच, फैसिंग आदि लगाई। पौधे भी पनप गए और कई पौधों ने आज पेड़ का रूप ले लिया है। वर्ष 2017 तक कार्यकर्ताओं ने पार्क के लिए खूब मेहनत की, लेकिन इसके बाद रोडवेज प्रशासन ने काम करने से मनाही कर दी। ऐसे में उन्हें अपना काम बंद करना पड़ा।
अरविन्द अग्रवाल, प्रांतीय पर्यावरण प्रभारी भारत विकास परिषद
कराते हैं साफ-सफाई
परिषद ने पार्क विकसित किया था। लेकिन वे बाद में पक्की चारदीवारी निर्माण कराना चाह रहे थे। रोडवेज के जयपुर मुख्यालय से इसकी अनुमति नहीं मिली। हमारी तरफ से साफ-सफाई कराई जाती है।
अशोक जैन, रोडवेज बस स्टैण्ड प्रभारी
परिषद ने पार्क विकसित किया था। लेकिन वे बाद में पक्की चारदीवारी निर्माण कराना चाह रहे थे। रोडवेज के जयपुर मुख्यालय से इसकी अनुमति नहीं मिली। हमारी तरफ से साफ-सफाई कराई जाती है।
अशोक जैन, रोडवेज बस स्टैण्ड प्रभारी