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जब हम भजन करने बैठते हैं तो बुरे विचार मन में आते हैं, क्यों?

जो सत्संग में आकर प्रभु के विचार को अपने जीवन में ढालता है, वो मेरे प्रभु के "चरणरज" का अधिकारी होता है।

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devaki nandan thakur

devaki nandan thakur

जो संस्कार और बुरी आदतें हमारे करोड़ों जन्म-जन्मातरों से पड़े हुए हैं वो सब की सब कुछ ही दिनों में नहीं छूट सकती। उदाहरण के लिये जैसे पाइप से पानी चालू करने पर, उसमें से वही पानी बाहर निकलेगा जो उसमें पहले से भरा होगा। अब चाहे वह पानी गर्म हो, गंदा हो, कचरे वाला हो या साफ हो।

ऐसे ही भजन स्मरण करते समय पाप बाहर निकलते दिखते हैं। वो आते नहीं, जाते हुए दिखते हैं। उन्हें आते हुए भूल से भी न समझें, भजन करते समय पाप थोक में निकलते हैं। हमें इनको न देखते हुए नाम स्मरण (भजन) में लगे रहना चाहिए। जिससे धीरे-धीरे हमारा अंतःकरण शुद्ध हो ही जायेगा। भगवान को पुकारो, वह तो हमारे पुकारे जाने का इंतजार ही कर रहे हैं। देर बस हमारी ही ओर से हो रही है। पुकारो तो वो कण-कण में है। सबकी सुनते ही है।

इस जीवन का अहोभाग्य है पुष्टिमार्ग में "प्रभु" कृपा से हम अंगीकृत हुए है। इस जीवन को हमें यथार्थ बनाना है। ध्यान रहे ; समय कम है , हीरे की खदान पर जाकर हम कंकड़ और पत्थर इकठ्ठे करने में लग चुके हैं। होश में रहना जरूरी है और हमारे जीवन का मकसद बार-बार दोहराते रहना है ताकि हमें विस्मरण न हो जाए और हम प्रभु नाम स्मरण, सत्संग और टहल में लगे रहें|

जो सुन्दर गीत गाता है वो चांदी जैसा होता है, जो सुन्दर विचार करता है वो सोने जैसा होता है, जो सत्संग मैं बैठता है वो हीरे जैसे होता है और जो सत्संग में आकर प्रभु के विचार को अपने जीवन में ढालता है, वो मेरे प्रभु के "चरणरज" का अधिकारी होता है।

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