तीसरी बात, महाभारत (Mahabharat) में कर्ण ने श्री कृष्ण से पूछी- द्रोपदी के स्वयंवर में मुझे अपमानित किया गया, क्योंकि मुझे किसी राजघराने का कुलीन व्यक्ति नहीं समझा गया। क्या ये मेरा कसूर था?
श्री कृष्ण मंद मंद मुस्कुराते हुए कर्ण से बोले, सुन- हे कर्ण, मेरा जन्म जेल में हुआ था मेरे पैदा होने से पहले मेरी मृत्यु मेरा इंतज़ार कर रही थी। जिस रात मेरा जन्म हुआ, उसी रात मुझे माता-पिता से अलग होना पड़ा। मैंने गायों को चराया और गायों के गोबर को अपने हाथों से उठाया। जब मैं चल भी नहीं पाता था, तब मेरे ऊपर प्राणघातक हमले हुए। मेरे पास कोई सेना नहीं थी, कोई शिक्षा नहीं थी, कोई गुरुकुल नहीं था, कोई महल नहीं था, फिर भी मेरे मामा ने मुझे अपना सबसे बड़ा शत्रु समझा। बड़ा होने पर मुझे ऋषि सांदीपनि के आश्रम में जाने का अवसर मिला। मुझे बहुत से विवाह, राजनीतिक कारणों से या उन स्त्रियों से करने पड़े, जिन्हें मैंने राक्षसों से छुड़ाया था। जरासंध के प्रकोप के कारण, मुझे अपने परिवार को यमुना से ले जाकर सुदूर प्रान्त, समुद्र के किनारे द्वारका में बसना पड़ा।
हे कर्ण, किसी का भी जीवन चुनौतियों से रहित नहीं है। सबके जीवन में सब कुछ ठीक नहीं होता। सत्य क्या है और उचित क्या है? ये हम अपनी आत्मा की आवाज़ से स्वयं निर्धारित करते हैं। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कितनी बार हमारे साथ अन्याय होता है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कितनी बार हमारा अपमान होता है। इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि कितनी बार हमारे अधिकारों का हनन होता है। फ़र्क़ तो सिर्फ इस बात से पड़ता है कि हम उन सबका सामना किस प्रकार कर्मज्ञान के साथ करते हैं।
सीख
कर्मज्ञान है तो ज़िन्दगी हर पल मौज़ है, वरना समस्या तो सभी के साथ रोज है।
प्रस्तुतिः डॉ. राधाकृष्ण दीक्षित, प्राध्यापक केए कॉलेज, कासगंज