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UP Travel Guide यूपी के इस जिले में है अमीर खुसरो का स्मारक, पर गुमनाम सा लगता है वो अपने शहर में…

-खुसरो की याद में बनाये गए पार्क और लाइब्रेरी प्रशासनिक लापरवाही का शिकार -प्रतिमा स्थापना को लेकर साहित्यकार आमने सामने आई पक्ष विपक्ष की तर्के

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फैली है जिसके इल्म की दुनिया में रोशनी गुमनाम सा लगाता है वो अपने शहर ...

फैली है जिसके इल्म की दुनिया में रोशनी गुमनाम सा लगाता है वो अपने शहर ...

कासगंज। भारतीय साहित्य क्षेत्र में अमीर खुसरो एक जगमागते हुए सितारे हैं। कहने को जनपद कासगंज गंगा युमनी सांस्कृति का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। कासगंज ब्लाक का कस्बा सोरों जहां एक ओर महाकवि तुलसीदास की जन्म स्थली के रूप में विश्व विख्यात है, तो वहीं जनपद मुख्यालय से तकरीबन 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तहसील पटियाली के मोहल्ला किला परिसर में अमीर खुसरों का जन्म हुआ। अमीर खुसरो खड़ी बोली के सशक्त हस्ताक्षर थे। अमीर खुसरों की मानवतावादी सोच से प्रभावित होकर खिलजी वंश के शासक जलालुउद्दीन ने उन्हें अमीर की उपाधि से अलंकृत किया।

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1253 ईसवी में जन्मे थे अमीर खुसरो
फैली है जिसके इल्म की दुनिया में रोशनी गुमनाम सा लगाता है, वो अपने शहर में... उक्त पंक्तियां अमीर खुसरो पर पूरी तरह से सटीक सत्य साबित होती हैं। इतिहास एवं साहित्य के जानकारों के अनुसार जनपद कासगंज के कस्बा पटियाली के किला परिसर निवासी सहफुद्दीन महमूद के यहां अमीर खुसरो का जन्म 1253 में ईसवीं में हुआ। अमीर खुसरो के पिता तुरकिस्तान के कुबतुल खजरा के मूल्य निवासी थे। अमीर खुसरो के पिता तत्कालीन भारतीय सुल्तान अल्तमश की साही सेना में सरदार के पद पर कार्यरत थे, तथा उनकी मां दौलत नाज दिल्ली निवासी थी। खुसरो के नाना का नाम इमादुल मुल्क था। कस्बा पटियाली साहित्यकार शरद लंकेश ने बताया कि खिरजी वंश के शासक जलालुउद्दीन ने खुसरो की मानवता वादी सोच को देखते हुए उन्हें अमीर की उपाधि से अलंकृत किया, तभी से खुसरो अमीर खुसरो हो गये। साहित्य जगत में कदम दर कदम आगे बढ़ते गए।

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जन्म से 32 वर्ष रहे थे पटियाली में सूफी संत
एडवोकेट नवी अहमद कुरैशी, शायर फूल मियां, अनवर अली ने बताया कि सूफी संत एवं साहित्यकार अमीर खुसरो के अध्यात्मिक गुरू हजरत निजामुउद्दीन औलियां थे। सूफी संत अमीर खुसरों मात्र साहित्य जगत के ही उभरते सितारे नहीं थे, बल्कि उन्होंने संगीत कार के रूप में भी अपनी ख्यात अर्जित की। बताया गया है कि लगभग 32 वर्ष कस्बा पटियाली में रहने के बाद अमीर खुसरों अपने अध्यात्मिक गुरू हजरत निजामुउद्दीन औलिया के सानिध्य में पहंुच कर दिल्ली में ही बस गए। बाद में निजामुउद्दीन औलिया के निधन से सूफी संत अमीर खुसरो को गहरा आघात लगा। बाद में छह माह उपरांत सन 1325 में अमीर खुसरो का भी देहांत हो गया, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित करने के बावजूद भी सूफी संत एवं साहित्यकार अमीर खुसरो अपने क्षेत्र में बेगाने बने हुए हैं और प्रशासनिक उदासीनता का दंश झेल रहे हैं।

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खुसरो का स्मारक अस्तित्वहीन हालत में
ऐसा नहीं कि जिला प्रशासन पूरी तरह से उदासीन बना हुआ हो, जनपद में कुछ प्रशासक भी आए जिन्होंने सूफी संत अमीर खुसरो के महत्व को ध्यान में रखते हुए उनकी स्मृति में कुछ कदम भी उठाये। जिसके चलते कस्बा पटियाली प्रतिवर्ष अमीर खुसरो महोत्सव भी स्थानीय स्तर पर आयोजित किया जाता रहा, तो वहीं जिला प्रशासन ने भी अमीर खुसरो के नाम से एक पार्क और लाइब्रेरी का निर्माण कराया गया, परंतु प्रशासनिक स्तर पर रख रखाव व देखभाल उचित ढंग से न हो पाने के कारण दोनों ही स्मारक अस्तित्वहीन होते चले जा रहे हैं। यद्यपि कस्बा पटियाली के साहित्यकारों एवं जनप्रतिनिधियों ने सूफी संत अमीर खुसरो की प्रतिमा अमीर खुसरो पार्क में लगाये जाने की मांग जोरशोर से उठाई, लेकिन उनकी यह मांग नक्कारखाने में तूती की तरह दबकर रह गई।

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खुसरो की प्रतिमा की मांग और विरोध के उठे थे स्वर
संत अमीर खुसरो की प्रतिमा स्थापित किए जाने को लेकर साहित्य जगत में अलग अलग मत उभर कर आये। एक पक्ष जहां अमीर खुसरो की प्रतिमा स्थापित किये जाने की मांग कर रहा है, तो वहीं दूसरा पक्ष अपने तर्कों से प्रतिमा स्थापित करने का विरोध करता है। प्रतिमा स्थापित करने का विरोध करने वाले साहित्यकारों का मनाना है कि अमीर खुसरो सूफी संत होने के साथ साथ इस्लाम धर्म के अनुयायी थे और इस्लाम धर्म में प्रतिमा स्थापित करने का न तो व्यवस्था है और न ही कोई विधान।

अमीर खुसरो के प्रसिद्ध दोहे

गोरी सोये सेज पर, मुख पर डाले केश

चल खुसरू घर अपने, रैन भई चहूँ देश

खुसरो ऐसी पीत कर जैसे हिन्दू जोय,

पूत पराए कारने जल जल कोयला होय।

खुसरो पाती प्रेम की बिरला बाँचे कोय,

वेद, क़ुरान, पोथी पढ़े प्रेम बिना का होय।

नदी किनारे मैं खड़ी सो पानी झिलमिल होय,

पी गोरी मैं साँवरी अब किस विध मिलना होय।