
story of Father struggle on Father's Day
कटनी. जलती धूप में वो आरामदायक छांव है, मेलों में कंधे पर लेकर चलने वाला पांच है, मिलती है जिंदगी में हर खुशी उसके होने से, कभी भी उल्टा नहीं पड़ता 'पिता' का दांव हैं, चट्टानों से हिम्मत और जज्बातों का तूफान लिए चलता है, पूरा करने की जिद से 'पिता' दिल में बच्चों का अरमान लिए चलता है...। यह पक्ति पिता के बचपन में सिखाए अनुशासन भले ही उस दौरान कड़वे लगते हों, लेकिन सफलता की सीढ़ी चढऩे के साथ ही उसका बेहतर परिणाम देखने को मिलता है। पिता न केवल अभिभावक की भूमिका निभाते हैं बल्कि एक दोस्त की तरह भी होते हैं, जो समय-समय पर बेटे या बेटियों को उनकी जरूरतों के मुताबिक कठिन डगर में राह दिखाने का काम करते हैं। आइए मिलते हैं ऐसे पिता से जिसने अपने कड़े संघर्ष से बेटों को सफलता के मुकाम पर पहुंचा दिया है। हम बात कर रहे हैं माधवनगर निवासी खिलदास पंजवानी की। जिन्होंने कड़ी मेहनत से बेटे को न सिर्फ पढ़ाया-लिखाया बल्कि इस काबिल बनाया कि बेटा अब सात समंदर पार अपनी हुनर का जादू बिखेर रहा है। बेटा बलराम नार्वे में साइंटिफ इंडस्ट्री में बतौर सीनियर रिसर्चर व प्रोजेक्ट मैनेजर सेवाएं दे रहा है।
साइकिल से पहुंचते थे बिजली सुधारने
खियलदास पंजवानी 1969 में घंटाघर में टोनी सरावगी के यहां किराये के मकान में रहकर साइकिल के सहारे बिजली सुधारने का काम कर परिवार का पालन-पोषण कर रहे थे। इसमें बमुश्किल माहभर में 3 से 4 हजार रुपये मिलते थे। बड़े होते बच्चों के साथ पढ़ाई-लिखाई का भार बढ़ता गया, लेकिन खिलदास ने हार नहीं मानी। बेटे बलराम की प्राथमिक तक ढ़ाई होने के बाद बाबा नारायणशाह विद्यालय में कक्षा 8वीं तक अध्ययन कराया। इसके बाद 9वीं, 10वीं, 11वीं और 12वीं की शिक्षा सरस्वती स्कूल में प्राप्त कराई। यहां से पास होने के बाद तिलक कॉलेज में गणित विषय पर दाखिला लिया। बेटे का पढ़ाई में मन लगने पर उसे आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया।
यहां शुरू हुआ कड़ी मेहनत का सफर
पिता के मार्गदर्शन में बलराम ने प्रथम वर्ष के बाद 1992 पीइटी का का एग्जाम दिया। एग्जाम में पास होने पर जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में चार साल बीइ की पढ़ाई की। यहां से गेट का एग्जाम दिया। यहां से सीधे 2002 में कैंपस सिलेक्शन आइआइटी रुढकी में हो गया। इसरो अनुसंधान केंद्र त्रिवेद्रम में 2002-2006 तक नौकरी की। 2006 में नौकरी छोड़कर नार्वे से पवन चक्की और सौर ऊर्जा पर पीएचडी की। पीएचडी 2008 तक जारी रही और फिर यहां से सीधे नार्वे में असिस्टेंट मैनेजर बन गया।
शिक्षक ने दिखाई राह
खियलदास ने बताया कि सरस्वती शिक्षक बीपी तिवारी ने बेटे को कुशल मार्गदर्शन दिया। बच्चे को उन्होंने न सिर्फ नि:शुल्क कोचिंग दी, बल्कि इस क्षेत्र में जाने के लिए प्रेरित किया। बेटे बलराम ने भी जीतोड़ मेहनत की और कुछ अलग कर गुजरने की ठानते हुए साइंटिस्ट बनने का मुकाम हासिल किया और अब नार्वे में अपने हुनर का लोहा मनवा रहा है। खियलदास के तीन बेटे और एक बेटी है। सबसे बड़ी बेटी माया पंजवानी को भी पीएमटी कराया। वेटिंग आने पर रुपये न होने के कारण डॉक्टर नहीं बन पाईं। दूसरे नंबर के बेटा अजय पंजवानी को एलएलबी कराया है। छोटा बेटा राजेश पंजवानी भी पढ़कर लिखकर व्यापार के माध्यम से आगे बढ़ रहे रहे हैं।
Published on:
16 Jun 2019 09:56 am
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