
राजेश कुमार/CG Elephant News: औद्योगीकरण के साथ मानव के बढ़ते दखल से जंगल का पारिस्थितिक तंत्र नष्ट हो रहा है। खेती के लिए इंसान जंगल काट रहा है, वहीं भोजन की तलाश में जंगली जीव शहरों में आ रहे हैं। इससे मानव और वन्यजीवों के बीच अस्तित्व की लड़ाई शुरू हो गई है। उत्तरी छत्तीसगढ़ के दो संभाग बिलासपुर और सरगुजा में एक माह में हाथियों ने कोरबा, सरगुजा और जशपुर जिले में 13 लोगों को मारा है। जनहानि के साथ-साथ हाथियों के झुंड ने फसल को नुकसान पहुंचाया है।
मातृत्व प्रधान है हाथियों का समाज… सबसे उम्रदराज मादा हाथी अपने झुंड की लीडर होती है, जिसे काउ कहा जाता है जबकि नर हाथी को बुल। झुंड में बेबी एलीफेंट के आने से सुरक्षा के लिहाज से झुंड नर हाथी को सामाजिक तौर पर कुछ माह के लिए बहिष्कृत कर देता है। (CG Elephant News) झुंड से बहिष्कृत होने के बाद नर हाथी बेचैन हो जाता है और अपने लिए अलग रास्ता अख्तियार करता है। बेचैन होने से नर हाथी का स्वभाव आक्रामक हो जाता है।
हाथी सैकड़ों सालों तक नहीं भूलता रास्ता… हाथियों का दल जिस रास्ते पर निकलता है वह रास्ता उन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी याद रहता है। (CG Elephant News) झुंड में हाथी बढ़ जाते हैं तो कुछ हाथी अलग होकर नया मार्ग व रहवास खोजते हैं। यह काम लोनर या नर हाथी का होता है। कोरबा में जिस लोनर हाथी ने एक माह में पांच लोगों को मारा, उसे लेकर भी चर्चा है कि वह नए झुंड के लिए मार्ग के रेकी पर निकला है या झुंड की तरफ दोबारा लौट रहा है।
CG Elephant News: अंधाधुंध वनाधिकार पत्र बांटना बना मुसीबत… जंगल में वर्षों से काबिज लोगों को मालिकाना हक प्रदान करने के लिए वर्ष 2006 में केंद्र सरकार एक एक्ट लेकर आई। 2007 में नया कानून बना। 5-6 सालों में प्रक्रिया पूरी हो जानी थी, लेकिन अभी भी लोग वैध-अवैध तरीके से भूमि अधिकार पत्र हासिल कर रहे हैं और जंगल के भीतर की जमीन को कब्जा कर रहे हैं।
Updated on:
21 Sept 2024 03:16 pm
Published on:
21 Sept 2024 11:41 am
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