
जिले के संग्रहालय प्रभारी हरि सिंह क्षत्री कार्यालयीन समय के बाद शेष समय बच्चों के साथ बिताते हैं। 1998 से बच्चों को रंगों से रूबरू करा रहे हैं। बच्चों आकर्षक कलाकृति गढ़ रहे हैं, ताकि बच्चे पेंटिंग कला में नाम जिले व राज्य नाम रोशन कर सके।
बच्चों को छोटी से छोटी गलतियों को हाथ पकड़ कर चित्र कला सिखाते हैं। नन्हें हाथों से बनी पेंटिंग से उनका घर भरा हुआ है। संग्रहालय में प्रभारी व गाईड पद पर पदस्थ हैं। हरि सिंह के पास कोई स्थायी जगह नहीं हैं जहां बच्चों को एक साथ कलाकृति सिखा सकें। इसलिए उन्होंने घर-घर जाकर कला का परिचय देने का ठाना।
वर्तमान में 80 बच्चों को प्रशिक्षण दे रहें हैं। इसी तरह पेंटिंग के अलावा काष्ठ शिल्प , बांस शिल्प, नारियल शिल्प, लकड़ी कला, क्राफ्ट, चावल के दाने पर नाम, सूपा पेंटिंग, मिट्टी का मूर्ति बनाना, पत्थर को आकृति देने कला में भी माहिर हैं।
ये हैं इनकी शिक्षा
क्षत्री दो बार स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त कर चुके हैं। जिसमें भारत का इतिहास व प्राचीन भारत के इतिहास में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। कौशलेंद्र विधि महाविद्यालय बिलासपुर से एलएलबी, प्रचीन कला केन्द्र चंडीगढ़ से फाइल आर्ट की शिक्षा ली।
बसोड़ जनजाति को दी प्राकृतिक रंगों की पहचान
वनांचल क्षेत्रों में ग्रामीणों के आधुनिक रंग नहीं मिलते हैं। प्राकृतिक रंगों से अनजान थे। बांस का सूपा बनाने का काम करते थे। बाजार में इसकी कीमत महज 20 से 30 रुपए प्रति सूपा मिलता था, जो काफी कम था। उन्होंने गांव में जाकर दो साल प्रशिक्षण शिविर लगाया। सूपा को आकर्षक रंगों की पहचान दी।
पेड़ के छाल से गेरु रंग, पीली मिट्टी से पीला रंग, काली मिट्टी से काला रंग, घास व पौधे के पत्ते से हरा रंग, अन्य रंगों के लिए फूल का प्रयोग से प्राकृतिक रंगों से रंगीन सूपा तैयार किया गया। इसके उपरांत बाजार में रंगीन सूपा की मांग बढऩे लगी। 120 से 140 रुपए से अधिक दाम में बिके। वर्तमान में 600 से 800 रुपए में बिक रहे हैं।
बच्चों की मुस्कान मेरा सम्मान
हरि सिंह क्षत्री का सम्मान बच्चों की कृलाकृति और उनकी मुस्कान ही सबसे बड़ा सम्मान है। उनका उद्देश्य सरकार की स्किल डेवलपमेंट योजना का आगे बढ़ाते हुए आदिवासी बच्चों को प्रशिक्षण देना है।
ऐसे आए कला के क्षेत्र में
वे कक्षा 10वीं में पढ़ाई कर रहे थे, छोटे होने के कारण दीदी की सहेलियां परेशान करती थीं। इससे क्षुब्ध होकर एक किला में चले गए है। किले में बने चित्र को देखा। उन्होंने भी एक पत्थर उठाया और सबसे पहले भगवान श्रीराम का चित्र बनाया। इसके पश्चात धरेंद्र राबर्ट ने रंगों का ज्ञान दिया। क्राफ्ट कला मनीष ङ्क्षसह बादल ने दी। इसके बाद नए नए कला का प्रयोग किया।
ये है इनके शिष्यों की उपलब्धियां
अमेरिका विकासो आर्ट गेलेरी में सजल पात्र ने अंतरराष्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसी तरह अनेक छात्र-छात्राएं है, जो राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम कर रहे हैं।
Published on:
10 May 2018 02:52 pm
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