
खदान के चारों ओर घेरा नहीं, कोयला खोदकर बेचते हैं ग्रामीण(photo-getty image)
CG Coal Mine: छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में एसईसीएल की मेगा प्रोजेक्ट गेवरा, दीपका और कुसमुंडा की सीमा में कोयले का अवैध खनन भी हो रहा है। यह खनन खदान से लगे कुछ गांव में रहने वाले लोग करते हैं। सायकल, स्कूटी या अन्य दोपहिया व तीनपहिया गाड़ियों को कोयले को उठाकर ले जाते हैं और आसपास के बाजार में बेच देते हैं। हालांकि यह बाजार कोई खुली मंडी नहीं है बल्कि चोरी का कोयला सबसे ज्यादा ईंट भट्ठों, होटल और ढाबों में खपाया जाता है।
खदान क्षेत्र के भीतर चल रहा अवैध खनन बेहद गंभीर मामला है। केंद्र सरकार की ओर से जब कोयला कंपनी को खनन के लिए कोल ब्लॉक दिया जाता है तब खदान में होने वाली अवैध गतिविधियों का दायित्व भी संबंधित कंपनी को सौंपी जाती है। कंपनी को अपनी खदान की सुरक्षा स्वयं करनी होती है। इन कार्यों में कंपनी की मांग पर जिला प्रशासन आवश्यक सहयोग प्रदान करता है लेकिन एसईसीएल की मेगा प्रोजेक्ट गेवरा, दीपका और कुसमुंडा खदानों में सुरक्षा घेरा बेहद कमजोर है।
तीनों ही मेगा प्रोजेक्ट एक बड़े भूभाग पर स्थित है। इन खदानों के भीतर कोई व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सके यह सुनिश्चित करना एसईसीएल प्रबंधन की जिम्मेदारी है। प्रबंधन का दायित्व है कि वह कोयला खदान के चारों तरफ घेरा लगाए। अगर किसी कारण से घेरा नहीं लग पा रहा है तो इसके चारों तरफ बड़े नाले खोदा जाए ताकि कोई व्यक्ति या जानवर खदान के भीतर नहीं घुस सके। लेकिन सभी मेगा प्रोजेक्ट में सुरक्षा मानक कमजोर है।
नरईबोध से लेकर भिलाईबाजार होकर हरदीबाजार तक खदान से लगे इलाकों में सुरक्षा घेरा बेहद कमजोर है। अधिकांश जगहों पर तो घेरा ही नहीं है। लोग खदान के भीतर बड़ी आसानी से घुस जाते हैं। जिस स्थान पर खदान से मिट्टी हटाया गया रहता है उस स्थान पर पहले फेस पर दिख रहे कोयला को खोदना शुरू कर देते हैं। यह खोदाई गैंती से होती है। वर्तमान में इस क्षेत्र में 10 से अधिक जगहों पर लोगों ने सुरंगनुमा स्थान बनाकर अवैध कोयला खनन शुरू किया है। इन्हीं स्थानों पर कई बार मलबा धंसने की घटनाएं सामने आती है। इसमें ग्रामीणों की मौत तक हो जाती है।
अवैध रूप से खोदा गया कोयला बोरियों में भरकर जरूरतमंद ग्रामीण ईंटभट्ठों, होटल या ढाबों में 150 रुपए प्रति बोरी की दर से बेच देते हैं। बताया जाता है कि इस खेल में शामिल लोग रोजाना 6 से 8 बोरी कोयला खोदकर ले जाते हैं। लेकिन रास्ते में इन लोगों पर पुलिस की भी नजर पड़ती है मगर पुलिस की ओर से कभी कार्रवाई नहीं होती।
खदान के किसी भी हिस्से में होने वाली अवैध खनन की जानकारी कानूनी तौर पर एसईसीएल प्रबंधन को जिला प्रशासन को देना अनिवार्य है ताकि प्रशासन की टीम प्रबंधन के साथ मिलकर अवैध खनन को रोक सके। खनिज विभाग की ओर से बताया गया है कि इस साल या पूर्व में खदान क्षेत्र में होने वाली किसी भी अवैध खनन की जानकारी कोयला प्रबंधन से उनके कार्यालय को नहीं मिली है।
इसके पीछे बड़ा कारण एसईसीएल की सुरक्षा व्यवस्था का कमजोर होना बताया जा रहा है। विभागीय सुरक्षा कर्मी मेगा प्रोजेक्ट के चारों ओर नियमित तौर पर गश्त नहीं करते। इसका असर यह होता है कि उन्हें अपने क्षेत्र में होने वाली अवैध खनन की जानकारी नहीं होती या कई बार होती भी है तो वे कानूनी पचड़े में पड़ने के बजाय अवैध खनन की ओर देखने की भी हिम्मत नहीं जुटाते। इसका सीधा लाभ कोयला खोदने वाले गिरोह को मिलता है। गिरोह रोजाना कोयला खोदकर बाजार में ले जाकर बेच देते हैं।
फरवरी 2024 में दीपका खदान क्षेत्र में अवैध कोयला खनन के दौरान मिट्टी का मलबा धंस गया था। इसमें तीन लोग दब गए थे। दो लोगों का शव घटना के अगले दिन मलबे से बरामद हुआ था जबकि तीसरा शव इसके अगले दिन मिला था। मरने वालों में 18 वर्षीय प्रदीप पोर्ते और 24 वर्षीय शत्रुघ्न कश्यप के अलावा लक्ष्मण पोर्ते भी शामिल था। यह घटना दीपका खदान क्षेत्र में उस समय हुई थी जब खदान क्षेत्र में घुसकर कुछ लोग कोयला खोद रहे थे।
इसी दौरान मलबा उपर से नीचे गिर गया था। इस घटना के बाद भी कोयला कंपनी ने सबक नहीं ली और लगभग सवा साल बाद मेगा प्रोजेक्ट दीपका में मलबा धंसने से एक और घटना सामने आई। इसमें दो ग्रामीण मारे गए।खनिज अधिकारी कोरबा प्रमोद नायक ने कहा की खदान क्षेत्र में होने वाली अवैध खनन की जानकारी एसईसीएल की ओर से उपलब्ध नहीं कराई जा रही है। जानकारी आती है तो इससे अवैध गतिविधियों को रोकने में मदद मिलती है।
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Updated on:
29 May 2025 01:38 pm
Published on:
29 May 2025 01:37 pm
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