
कोटा . बारह साल की नैना दो साल से ब्लड कैंसर ने जूझ रही। जिंदगी की सबसे कठिन लड़ाई में उसकी मां ही उसकी सारथी है। वे ही उसके मर्ज से लोहा लेने में मदद कर रही, क्यों कि पिता और परिजनों का जवाब तो याद करते ही अब भी उनकी रूलाई फूट पड़ती है।
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नैना की मां बिन्ता देवी के अनुसार परिजन और पिता का कहना है कि 'बेटी को कैंसर है, लड़की है। कैंसर है तो मर ही जाएगी। फिर इलाज पर पैसा क्यों खर्च किया जाए। वैसे परिवार की हालत भी अच्छी नहीं है। मां ने बेटी के लिए पैसे की मांग भी की तो मारपीट से मुंह बंद कर दिया गया। बीमारी बड़ी थी और हाथ खाली। ममता ने फिर भी हार नहीं मानी।
बीमारी ने नैना का स्कूल छुड़वा दिया। हर महीने करीब छह हजार रुपए का खर्च है। जब पिता और परिजनों ने साथ नहीं दिया तो मां ने मोर्चा संभाला। बेटी को लेकर उपचार के लिए जयपुर चली गई। उनके तीन बच्चे हैं। इनमें से दो इनके गांव सांगोद में ही रहे। जयपुर में वे किसी धर्मशाला में ठहरी, कभी पैसे दिए, कभी धर्मशाला वालों ने रहम कर दिया। खाने के लिए अस्पताल में मिलने वाले भोजन से पेट भरती रहीं। कभी बाहर किसी दानदाता की मदद से काम चल जाता था। जब इन दोनों से काम नहीं चलता तो फाकाकशी।
दवाओं और जांच में ही खुद के सारे गहने बेच डाले। बीमारी सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती ही रही। साल भर में पैसा भी खत्म हो गया। सरकारी योजनाओं से जितनी मदद मिल सकती थी, ले ली। थक हार कर वे अपनी बेटी को लेकर कोटा आ गई। यहां गोविंद नगर में रहती हैं। हाथ अब फिर खाली हैं। कभी कोई मदद करता है तो इलाज में तेजी आ जाती है।
सरकारी योजनाओं से कभी मदद मिल जाती है। कभी बात अटक भी जाती है। कहीं मेडिकल कैम्प लगता है तो वे अपनी बेटी को लेकर पहुंच जाती है। शायद कोई मदद मिल जाए। कहीं से कोई रास्ता दिख जाए। बेटी अबोध हैे, वह ना तो कैंसर के बारे में जानती है और ना ही इससे मुक्ति के संघंर्ष के बारे में। अलबत्ता बिन्ता देवी की ममता हार मानने को तैयार नहीं है।
Published on:
07 Feb 2018 10:06 am
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