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पिता बोले-26 घंटे से हो रही बेटे की दुर्गति, आगे से कोई अंगदान नहीं करें

locationकोटाPublished: Mar 20, 2019 12:45:56 am

Submitted by:

Rajesh Tripathi

ब्रेन डेड युवक के अंगदान का मामला
 

kota news

पिता बोले-26 घंटे से हो रही बेटे की दुर्गति, कोई अंगदान नहीं करें

कोटा. सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल विशाल के अंगदान को लेकर मेडिकल कॉलेज प्रशासन की बेरुखी सामने आई है। ब्रेन डेड घोषित करने व अंगदान की प्रक्रिया में लेटलतीफी को लेकर पिता नरेश कपूर का दुख फूट पड़ा। पिता नरेश ने रुंधे गले से कहा कि 26 घंटे हो गए बेटे की दुर्गति होते। अब मैं शहरवासियों को यहीं कहना चाहूंगा कि कोई अंगदान नहीं करें।
उन्होंने कहा कि विशाल के ब्रेन डेड होने के बाद मंगलवार दोपहर 2 बजे ही अंगदान की इच्छा जाहिर कर दी थी, लेकिन मेडिकल कॉलेज प्रशासन की सक्रियता नहीं दिखी। अब पैरामीटर में उलझा रहे हैं। कोटा मेडिकल कॉलेज की ब्रेन डेड की टीम सक्रियता दिखाते हुए प्रक्रिया जल्दी कर सकती थी, ताकि अंगदान की प्रक्रिया हो सके, लेकिन टीम ने ऐसा नहीं किया।
कोटा मेडिकल कॉलेज ने पल्ला झाड़ते हुए कहा कि जयपुर की टीम ही अंगदान पर फैसला कर सकेगी। इस पर हमने जिला कलक्टर को सूचित किया। उनके दखल के बाद ब्रेन डेड कमेटी ने वापस आकर मंगलवार दोपहर में दूसरा
टेस्ट लगाया।
पिता ने आरोप लगाया कि ब्रेन डेड कमेटी कोटा में ही अंगदान कर सकती थी, लेकिन कमेटी के काम नहीं करने की इच्छा के चलते जयपुर टीम पर पल्ला झाड़ लिया है।
सांसद बिरला ने
ढांढ़स बंधाया
सांसद ओम बिरला रात करीब दस बजे निजी अस्पताल पहुंचकर विशाल के परिजनों को ढांढ़स बंधाया और ऑर्गन ट्रांसप्लांट के बारे में डॉक्टरों व मेडिकल कॉलेज प्रशासन से बात की।

ये बोले जिम्मेदार

पहली बार बेसलाइन टेस्ट फेल होने पर बॉडी को नार्मलाइज किया गया। इसके बाद तड़के दोबारा कोशिश की गई जिसमें ऑक्सीजन का घटता स्तर और कॉर्बन डाई का बढ़ता स्तर ब्रेन डैड घोषित करने के मानकों पर खरा नहीं पाया गया। पहला एपनिया टेस्ट फेल होने के बाद मंगलवार को दूसरा टेस्ट किया गया जिसके परिणाम सकारात्मक आए हैं, लेकिन इसके छह घंटे बाद रात को 10 बजे फाइनल टेस्ट होगा। इसके बाद ही कोई अंतिम फैसला हो सकेगा।
डॉ. विजय सरदाना, चेयरमैन, डिस्ट्रिक्ट ब्रेन डैड कमेटी
&मेडिकल कॉलेज और सरकारी चिकित्सकों की लापरवाही के चलते 24 घंटे बाद भी विशाल को ब्रेन डेड घोषित नहीं किया जा सका। यह लोग नहीं चाहते कि काम का बोझ बढ़े इसलिए अस्थाई ऑर्गन रिट्राइवल सेंटर बनाने की अनुमति मांगने में भी लापरवाही की गई। यदि सरकारी सिस्टम पूरी मुस्तैदी से काम करता तो विशाल का अंगदान कोटा में ही हो सकता था।
डॉ. कुलवंत गौड़, कॉर्डिनेटर, ऑर्गन ट्रांसप्लांट
फिर कोई क्यों करे अंगदान

ए क तरफ हैं नरेश कपूर, जिन्होंने अपने युवा बेटे की अकाल मौत के बाद भी हौसला दिखाया और समाज को कुछ देने के लिए उसके अंगदान का फैसला किया। दूसरी तरफ है कोटा से जयपुर तक का सरकारी सिस्टम, हमेशा की तरह वैसा ही ढीला और सुस्त। वैसे ही इस सिस्टम के डॉक्टर, अफसर और कारिंदे भी है। अंगदान की बात सामने आने के बाद सभी ने काम किया। खूब मेहनत की, पसीना भी बहाया होगा, लेकिन नतीजा यह निकला कि हिम्मत दिखाने वाले पिता का हौसला टूटने लगा है। शायद नरेश कपूर अंगदान के महत्व को इतना नहीं जानते होंगे। जितना वे डॉक्टर और अफसर समझते हैं, जो इस तरह की कमेटियों का हिस्सा होते हैं। इसके बावजूद भी ऐसे नतीजे। सवाल इसलिए उठ रहे हैं, भले ही प्रशासन और मेडिकल कॉलेज के कर्ताधर्ताओं ने मेहनत का दावा किया हो, लेकिन ऐसी मेहनत का क्या अर्थ है, जो परिणाम ना दे सके। 36 घंटे से एक युवक वेंटीलेटर पर पांच लोगों को जिंदगी देने का इंतजार कर रहा है। उसके परिजन अपने बेटे की आखिरी इच्छा को पूरा होता देखने के लिए फटी आंखों से ‘प्रशासन की हाड़तोड़Ó मेहनत को देख रहे हैं। जयपुर से एक दिन के लिए अस्थाई ऑर्गन रिट्राइवल सेंटर बनाने की इजाजत मांगी, लेकिन नहीं मिली। तब भी कोटा में बैठे प्रशासन के बड़े-बड़े अफसर नहीं जागे। उन्होंने सरकार से बात क्यों नहीं की। ऐसे कैसे कह दिया कि जयपुर से विशेषज्ञ नहीं आ सकते। जब सरकार और उसके मेडिकल कॉलेज अंगदान ग्रहण ही नहीं कर सकते हैं तो फिर अंगदान के लिए प्रेरित करने का प्रचार क्यों। अंग प्रत्यारोपण तो दूर की बात राज्य के मेडिकल कॉलेजों में अंगदान रिसीव करने तक की व्यवस्था नहीं है। सरकार का तंत्र भी इसके लिए तैयार नहीं दिखता। भाषा की तल्खी इसलिए कि यह तीसरा मामला है। कुछ महीने पहले एक युवक के साथ भी ऐसा ही होता रहा। बाद में उसे जयपुर भेज दिया गया। वहां से बिना किसी अंगदान के उसका शव लेकर परिजन कोटा आ गए। एक व्यक्ति के अंगदान पांच से आठ लोगों को जिंदगी दे जाते हैं। देश में हर साल पर्याप्त अंग नहीं मिलने के कारण पांच लाख से अधिक लोगों की जान चली जाती है। अब भी मौका है। विशाल वेंटीलेटर पर है। उसके परिजन अपने बेटे के जरिए नेकी करना चाहते हैं। जिला प्रशासन और मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर प्रयास करें कि उसके अंगदान हो सकें। इससे जो माहौल बनेगा उससे कोटा में ही और दूसरे लोग भी अंगदान के लिए सामने आएंगे। जो ऐसे लोगों को जिंदगी देंगे, जो बिस्तर पर पड़े मौत का रास्ता देख रहे हैं। अगर अंगदान ना हो सके तो कम से कम वह काम तो कर ही दें, जो पिछली लापरवाही के बाद नहीं किया था। कोटा में ऐसी व्यवस्था हो जाए ताकि अंगदान की इच्छा के साथ दुनिया से रुखसत होने वाले किसी को बेड पर लंबा इंतजार नहीं करना पड़े।

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