OMG: वो दर्द से तड़पता रहा और भगवान ने फेर लिया मुंह, हाथ जोड़े फिर भी नहीं पसीजा दिल 70 का दशक…जब हाड़ौती की मिट्टी ने दाऊदयाल जोशी जैसे जमीन से जुड़े नेताओं को जन्मा। वे भले ही एक भी बार मंत्री न बन सके हों, लेकिन कोटा की जनता ने उन्हें तीन बार विधायक और फिर लगातार तीन बार सांसद चुनकर अपनी पसंद का खुला इजहार किया। उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि जनता ने उनके लिए एक नारा तक गढ़ दिया…
Raj election 2018: देखिए, फेक न्यूज पर जर्मनी में 400 करोड़ का जुर्माना और हमारे यहां सिर्फ जांच हाड़ौती का एक ही लाल दाऊदयाल दाऊदयाल। इस नारे की लोकप्रियता को आप इस तरह समझ सकते हैं कि करीब पांच दशक बाद भी यह चुनावी नारा बच्चे-बच्चे की जुबान पर चढ़ा हुआ है। यह बात और है कि अब दाऊदयाल जोशी की जगह अपनी सहूलियत से लोग नाम बदल लेते हैं।
नहीं गढ़ा ऐसा नारा
साहित्यकार ओम नागर कहते हैं कि हाड़ौती में बेहद कम चुनावी नारे गढ़े गए। राष्ट्रीय परिदृश्य पर तैरने वाले या फिर उत्तर प्रदेश जैसे सक्रिय सियासी सूबे के उधार लिए गए नामों में उलटफेर करके ज्यादातर काम चलाया जाता रहा। 1996 का नारा अबकी बारी, अटल बिहारी और 2014 के नारे अबकी बार, मोदी सरकार और अच्छे दिन आएंगे अब भी आम आदमी को लुभाते हैं। अच्छे दिन का नारा जितना सुखद रहा, उतना ही मुसीबत का सबब भी बना।
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वहीं कांग्रेस ने यूपी में दिए नारे ’27 साल यूपी बेहाल को यहां ‘5 साल राजस्थान बदहाल करके इस्तेमाल करने की कोशिश की जा रही है। जवाब में भाजपा कार्यकर्ता उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के दिए गए नारे ‘काम बोलता है का इस्तेमाल करने से कतई गुरेज नहीं कर रहे, लेकिन इनमें बीते चुनावों जैसा जादू नजर नहीं आ रहा।
वहीं कांग्रेस ने यूपी में दिए नारे ’27 साल यूपी बेहाल को यहां ‘5 साल राजस्थान बदहाल करके इस्तेमाल करने की कोशिश की जा रही है। जवाब में भाजपा कार्यकर्ता उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के दिए गए नारे ‘काम बोलता है का इस्तेमाल करने से कतई गुरेज नहीं कर रहे, लेकिन इनमें बीते चुनावों जैसा जादू नजर नहीं आ रहा।