
कोटा स्टाेन
देश-दुनिया में अपनी क्वालिटी की धाक जमा चुके कोटा स्टोन की चमक धीरे-धीरे फीकी पड़ती जा रही है। पहले नोटबंदी, फिर रॉयल्टी और अब जीएसटी की ऐसी मार पड़ी की उद्योग चौपट होने की कगार पर पहुंच गया है। कोटा स्टोन हाड़ौती की अर्थ व्यवस्था की धुरी माना जाता है। प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से हजारों लोगों को रोजगार मिलता है। दो दिन पहले जीएसटी काउन्सिल की बैठक में कोटा स्टोन और मार्बल को कर की एक ही श्रेणी में शामिल कर दिया गया। इससे आने वाले दिनों में उद्योग पर विपरीत असर पडऩा तय है। पत्थर उद्यमी इससे घबरा गए हैं और सरकार का दरवाजा खटखटाने की तैयारी में हैं।
मार्बल लक्जरी, कोटा स्टोन देसी
कोटा स्टोन गरीब व मध्यमवर्गीय परिवारों के आवास निर्माण में काम लिया जाता है। मार्बल लक्जरी पत्थर माना जाता है। दोनों पत्थर की तासीर में भिन्नता के अलावा दरों में बड़ा अंतर है। इसके बावजूद जीएसटी काउन्सिल ने दोनों तरह के पत्थर को समान कर श्रेणी में रखा है। जीएसटी कर प्रावधान में बनी यह विसंगति कोटा स्टोन से जुड़े व्यापारियों की परेशानी बढ़ा रही है।
बार-बार हुआ बदलाव
केन्द्र सरकार ने एक जुलाई को जीएसटी लागू किया था। कोटा स्टोन जीएसटी में किस कर श्रेणी में रखा गया, इसे लेकर लम्बे समय तक स्थिति स्पष्ट नहीं हुई। ऐसे में व्यापारियों ने पांच प्रतिशत कर श्रेणी में बिल काटकर दिसावर माल भेज दिया। जीएसटी व वाणिज्यिक कर विभाग अधिकारियों को बार बार ज्ञापन देने व मिलने के बावजूद कर की स्थिति स्पष्ट नहीं हुई। अक्टूबर में जीएसटी काउन्सिल की बैठक होने के बाद वित्तमंत्री अरुण जेटली ने पहली बार कोटा स्टोन का नाम लेकर बयान दिया, जिसमें बताया कि कोटा स्टोन जीएसटी में 28 प्रतिशत कर श्रेणी में था, इसे घटाकर 18 प्रतिशत कर श्रेणी में कर दिया है।
भाव में जमीन-आसमान का अंतर
व्यापारियों का कहना है कि मार्बल 40 से 400 रुपए प्रति फीट की दर में बेचा जाता है। सबसे मंहगा मार्बल पत्थर डेढ़ हजार रुपए फीट तक आता है। कोटा स्टोन पत्थर की सामान्य दर पांच रुपए फीट से चालू होती है और सर्वाधिक महंगा 18 से 20 रुपए प्रति फीट तक बिकता है। मार्बल पत्थर का उपयोग आलिशान होटल, उद्योगपतियों के आवास, मंदिरों व विलासतापूर्ण भवनों में होता है। कोटा स्टोन को गरीब व मध्यमवर्गीय परिवारों के आवास निर्माण में काम लिया जाता है। इसके अलावा कोटा स्टोन यूरोपीय देशों, अमरीका तक निर्यात किया जाता है। देश के कई रेलवे प्लेटफॉर्म पर कोटा स्टोन का फर्श है।
विलासितापूर्ण कर श्रेणी में लाना गलत
एसएसआई एसोसिएशन रामगंजमंडी के अध्यक्ष जगदीश सिंह शक्तावत ने कहा कि मार्बल व कोटा स्टोन की तुलना राजा भोज व गंगू तेली जैसी है। मध्यमवर्गीय परिवारों के काम आने वाले पत्थर को विलासतापूर्ण कर श्रेणी में लाकर सरकार आखिर क्या संदेश देना चाहती है। जीएसटी लागू होने से पहले राज्य सरकार ने मार्बल को वैट में 5 प्रतिशत कर श्रेणी व कोटा स्टोन 2 प्रतिशत कर श्रेणी में रखा हुआ था। जीएसटी में इसे दरकिनार कर दिया।
Published on:
13 Nov 2017 01:18 pm
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