कोटा विश्वविद्यालय के कॉमर्स एंड मैनेजमेंट डिपार्टमेंट की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मीनू माहेश्वरी और उनके निर्देशन में पीएचडी करने वाली शोध छात्रा डॉ. प्रिया सोडानी ने अपनी किताब इंडियन वुमेन इन इकॉनोमिक वल्र्ड के जरिए महिलाओं की कामकाजी और व्यक्तिगत जिंदगी को लेकर बेहद रोचक खुलासे किए हैं। इसके लिए कोटा की कामकाजी महिलाओं के आयु वर्ग, वैवाहिक स्थिति, शैक्षणिक योग्यता, कामकाजी पसंद, मासिक आय, बच्चों और परिवार की स्थिति के अलावा ख्वाहिशों, मजबूरियों और चुनौतियों का चार साल तक गहन अध्ययन और शोध के बाद आए नतीजों को इस किताब का आधार बनाया है।
काम की बड़ी वजह आय की कमी डॉ. माहेश्वरी बताती हैं कि महिलाओं के नौकरी करने की वजह तलाशने के लिए ११ बिंदुओं पर फील्ड सर्वे कराया गया। जिसके मुताबिक 21.1 फीसदी महिलाएं परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने की वजह से काम करने को मजबूर हुईं। जबकि 94.2 फीसदी महिलाओं ने आर्थिक स्वाबलंबन हासिल करने को कामकाज की वजह बताया। 10 फीसदी के साथ तीसरी वजह बनकर उभरा परिवार की कामकाजी महिलाओं का एक दूसरे को रोजगार के लिए प्रोत्साहित करना। हालांकि 4.7 फीसदी महिलाओं ने खाली बैठने के बजाय नौकरी पेशा जिंदगी को चुन क्वालिटी टाइम स्पेंड करने को प्राथमिकता दी।
काम प्रभावित करता है जिंदगी डॉ. सोडानी बताती हैं कि शोध का सबसे बड़ा चौंकाने वाला पहलू रहा जॉब सेटिस्फेक्शन। कोटा की कामकाजी महिलाओं में सिर्फ 35.4 फीसदी ही यह मानने को तैयार हुईं कि उनके नौकरी या व्यवसाय करने से उनका व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन नकारात्मक तरीके से प्रभावित नहीं होता। 64.6 फीसदी अपनी खुशियों को दांव पर लगा मुश्किलों से लड़ते हुए परिवार की तरक्की का रास्ता तैयार कर रहीं हैं।
सबसे मुश्किल अच्छा वेतन कोटा की कामकाजी महिलाओं की नजर में मुश्किल टॉस्क बनकर उभरा योग्यता के मुताबिक वेतन और बिना किसी भेदभाव के तरक्की मिलना। कोटा में 26.9 फीसद कामकाजी महिलाओं की मंथली इनकम 10 हजार से कम, 31.8 फीसदी की 10 से 30 हजार और 27.6 फीसद की 30 से 50 हजार रुपए के बीच मिली। महज 13.8 फीसदी महिलाएं ही ऐसी हैं जिनकी मासिक आय 50 हजार रुपए या इससे ज्यादा है।
सफलता की गारंटी बने शादी और दो बच्चे शोध में खुलासा हुआ कि शादी से पहले काम करने वाली महिलाओं की तादाद महज 24.7 फीसदी ही है। जबकि 65.1 फीसदी कामकाजी महिलाएं शादीशुदा हैं। वहीं 7.6 डायवोर्सी और 2.7 विडो। वहीं 32.4 फीसदी कामकाजी महिलाएं ऐसी हैं जिनके एक भी बच्चा नहीं है, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि पहला बच्चा होते ही उसकी देखभाल के लिए बड़ी तादाद में महिलाएं नौकरी छोड़ देती हैं। हालांकि दूसरा बच्चा होने के बाद तेजी से कमबैक करती हैं और कामकाज के मामले में अविवाहितों की कडी टक्कर के बावजूद उनसे आगे निकल जाती हैं। दो बच्चों के बाद काम करने वाली महिलाओं का प्रतिशत 35.8 फीसदी है। हालांकि एकल परिवार की महिलाओं को कामकाज में ज्यादा आसानी होती है।
तेजी से आगे बढ़ रही ज्वाइंट फैमिली न्यूक्लियर फैमिली से 50.2 फीसदी कामकाजी महिलाएं ताल्लुक रखती हैं। जबकि संयुक्त परिवारों की सोच और जरूरतों में बदलाव के चलते इनकी मौजूदगी बढ़कर 40.7 फीसदी हो गई है। शोध ने उन मान्यताओं को सिरे से खारिज कर दिया कि अकेले रहकर ज्यादा आजादी और मजबूती से महिलाएं काम करती हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि कामकाजी महिलाओं में सिंगल वर्किंग बीमेन का प्रतिशत महज 9.1 ही है।
प्राईवेट सेक्टर से हुआ मोह भंग
सेक्टर – प्राथमिकता – कार्यरत
पब्लिक – 40.7 – 33.3
प्राईवेट – 15.3 – 33.3
सेमी गवर्नमेंट – 13.3 – 11.1
सेल्फ इम्पलॉइड – 30.7 – 22.2 पीजी के बाद सबसे ज्यादा मौके
डिग्री – वर्किंग वीमेंस
अंडर ग्रेजुएट – 17.8
ग्रेजुएट – 25.3
पोस्ट ग्रेजुएट – 27.3
प्रोफेशनल क्वालिफिकेशन – 14.9
अन्य – 14.7
(सभी आंकड़े प्रतिशत में)