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Holi Special : कोटा रियासत में यूं खेली जाती थी कोड़ामार होली, महाराव देते थे ईनाम

locationकोटाPublished: Mar 21, 2019 02:58:31 pm

Submitted by:

​Zuber Khan

क्या आप जानते हैं कोड़ा मार होली रियासतकाल में कोटा की परम्पराओं में शुमार रही है। यहां होली पर पुरुषों को महिलाओं के बरसाए कोड़ों की मार भी सहनी पड़ती थी।

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Holi Special : कोटा रियासत में यूं खेली जाती थी कोड़ामार होली, महाराव देते थे ईनाम

कोटा . क्या आप जानते हैं कोड़ा मार होली कहां खेली जाती है! जनाब ये कहीं और नहीं, रियासतकाल में कोटा की परम्पराओं में शुमार रही है। यूं तो शहर में होली के रंग अलग-अलग समय पर अलग ढंग से बिखरे हैं और लोग इनमें रंगे हैं, लेकिन एक जमाने में यहां होली पर पुरुषों को महिलाओं के बरसाए कोड़ों की मार भी सहनी पड़ती थी।
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खास बात यह कि कोड़ों की मार झेलने के बाद मन में कोई द्वेष नही रहता, बल्कि मार के संग होली की खुमारी और चढ़ती जाती। इतिहासविद् फिरोज अहमद बताते हैं कि हमारे यहां रियासत काल से ही होली, दीवाली, दशहरा पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाए जाते रहे हैं, इसमें यहां के शासकों की भी काफी भागीदारी रहती थी।
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होली से दो दिन पहले ही हो जाती थी तैयारियां
इतिहासकार फिरोज अहमद बताते हैं कि शहर के कई इलाकों में कोड़ामार होली की रंगत बिखरती थी। एक ओर महिलाएं कोड़े बरसाती, दूसरी ओर पुरुष डोलचियों से पानी उढ़ेलते। होली का अलग ही आनंद बरसता। लोग इसके लिए एक-दो दिन पूर्व ही तैयारी कर लेते। महिलाएं कपड़े में चुभने वाले कंकर रखकर गांठ बांधकर कोड़े तैयार करती। जगह-जगह केसुला के फूलों का पानी भरा जाता था। एक दो दिन पहले फूलों को पानी में गला दिया जाता। इससे तैयार रंगों को पानी में घोला जाता और खेळों मेंं भरवाया जाता। फिर होली पर्व पर पानी की बौछार के साथ रंग बिखरते। प्रकृति के रंगों से होली खेलते।
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होलिका दहन के चौथे दिन भी खेली जाती थी होली

इतिहासकार फिरोज अहमद बताते हैं कि होलिका दहन के चौथे दिन चैत्र कृष्ण चतुर्थी पर भी कोटा में रियासतकाल में होली खेली जाती थी। महाराव उम्मेद सिंह गढ़ पैलेस से हाथी पर सवार होकर पूरे लवाजमे के साथ जनता-जनार्दन से होली खेलने के लिए जाते थे।
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कोटा दरबार जनता के साथ खेलते थे होली
इतिहासकार फिरोज अहमद बताते हैं कि दरबार उम्मेद सिंह पहले जनाना महल में पहले महारानियों के संग होली खेलते। फिर जलेब चौक में भाई, बंधु, उमराव,जागीदारों के साथ। इसके बाद वे हाथी पर सवार होकर लोगों के बीच होली खेलने के लिए निकलते। रामपुरा डाकखाना से वे हाथी से उतरकर कार या बग्घी में सवार होकर कोठी चले जाते थे। शाम को बृजविलास बाग में पातिया व दरीखाना होता था। इसमें इनाम दिए जाते। यहां के शासक घोड़े पर सवार होकर जनता के साथ होली खेलने की भी परम्परा रही है।
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