
किसानों को अपने बोलों से घायल कर दिया मंत्री ने
कोटा में किसान का सामना सरकार से था और सरकार का सच से...किसानों ने अपनी पीड़ा बताई, सिस्टम की पोल खोली, नीतियों की खामियां उजागर कीं, अफसरशाही का कच्चा चिट्ठा पढ़ा और केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री को दिखाया कि किन हालात में किसान व्यवस्था की मार झेल रहे हैं। धरतीपुत्रों को आस थी कि मंत्री महोदय कुछ राहत की बातें कहेंगे, ढांढस बंधाएंगे, लालफीताशाही से खेती को आजाद करने की राह में कुछ कदम चलेंगे। मगर उन्होंने तो अपने वचनों से किसान को और घायल कर दिया। उन्होंने कहा 'मेरे पास कोई जादू का डंडा नहीं है जो घुमाकर सब ठीक कर दूं।' अब सवाल यह है कि बेबस मंत्रीजी के पास जादू का डंडा नहीं है तो आखिर फिर है क्या? मौसम की मार और कर्ज के दलदल से अन्नदाता को बचाने के लिए क्या उनके पास कोई रोडमैप है? या यह मान लिया जाए कि किसान और खेती के जो हालात हैं, वे फिलहाल तो वैसे ही बने रहेंगे।
वैसे किसान पहले भी सरकार के कड़वे शब्दों से आहत होते रहे हैं। कुछ माह पहलेे की ही बात है जब लहसुन के कम भावों से निराश किसान आत्महत्या कर रहे थे। तब प्रदेश के मंत्री ने मरहम देने के बजाए घाव को कुरेद दिया था। उन्होंने कहा था कि सरकार ने किसानों को लहसुन बोने के लिए नहीं कहा। कृषि कल्याण का जिम्मा संभाल रहे मंत्री ही जब धरतीपुत्रों के बारे में ऐसे विचार रखेंगे तो फिर आखिर किसान करेगा क्या?
सबके लिए अन्न का प्रबंध करने वाला किसान फिलहाल चक्रव्यूह में फंसा हुआ है। लहसुन उपजता है तो भाव नहीं मिलते। सोयाबीन उगाता है तो बारिश नहीं होती। उड़द की अच्छी उपज होती है तो खरीदी पर सरकार इतने नियम लाद देती है कि बेच ही नहीं पाता। बैंकों से कर्ज नहीं मिलता। पुराना कर्ज चुका नहीं पाता। सर्दी में खेतों को पानी देना चाहता है तो बिजली गुल हो जाती है। सरकार को अपनी उपज बेचने के लिए भी उसे सिस्टम को घूस देना पड़ रही है। किसान मंत्री के सामने खुलकर कह रहे हैं कि एक हजार रुपए देते ही राजफैड के अफसर उड़द तो क्या मिट्टी भी खरीदने को तैयार हो जाते हैं।
खास बात यह भी है कि कोटा में जिन किसानों से मंत्री का सामना हुआ वे सभी उन्नत किसान थे, यानी ऐसे किसान जो आधुनिक तौर तरीकों को अपना चुके हैं या नई तकनीक को अपनाने के लिए तैयार खड़े हैं। जब ये किसान ही व्यथित हैं तो उनका तो क्या हाल होगा जो अभी भी पारंपरिक खेती कर रहे हैं, जो बंटाई पर खेत लेते हैं, जो लघु व सीमांत किसानी के दायरे में हैं। ऐसे में सरकारों को सोचना चाहिए कि किसानों की व्यथा और पीड़ा पर गंभीरता से चिंतन करें और उस वादे को निभाने की दिशा में मजबूत कदम बढ़ाएं जिसमें कहा गया है कि किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी। और हां, सरकार को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि मंत्री के पास 'जादू का डंडा' भले ही न हो, मगर बंजर धरती से सोना उगलने देने वाले कर्मठ किसान 'वोट की चोट' तो दे ही सकते हैं।
Published on:
10 Nov 2017 12:36 pm
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