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बेसहारा छोड़ पति चले गए, बीमारियों ने बेघर कर दिया, जिसने सुनी इनकी कहानी छलक पड़े आंसू

जीवन संघर्ष की एक कहानी: सालों पहले छूटा पति का साथ, तंगहाली से जूझ रही कैंसर पीडि़ता मां, इलाज में बिक गए जमीन मकान, अब गुजर-बसर की चिंता।

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कोटा

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ritu shrivastav

Nov 17, 2017

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महिला के जीवन का संघर्ष

पहले पति ने साथ छोड़ा, फिर बेटे को करंट ने झकझोरा। खुद कैंसर से पीडि़त है। मां-बेटे के इलाज में पहले जमीन बिक गई और फिर मकान। फिर भी बेटे का इलाज अधूरा रहा। पैरों में बच्चे को ज्यादा तकलीफ होने पर जनसहयोग से इलाज कराने पिछले दिनों कोटा आई। भामाशाह योजना में पैरों की सर्जरी तो हो रही है लेकिन अब बड़ी चिंता गुजर-बसर की सता रही है। फिर चुनौती ऑपरेशन के बाद बच्चे की दवा गोली व अन्य देखभाल की भी है। झालावाड़ जिले के सामिया गांव निवासी और तलवंडी के निजी अस्पताल में बच्चे के पैरों की सर्जरी कराने आई बसंती बाई यह कहानी बताती हैं तो उनकी आंखें झरने लगती हैं। इस सब के बीच खुद के गले में फिर से गांठ उठने का दर्द तो उसकी जुबां तक आकर लड़खड़ा जाता है। बस एक ही बात दोहराती है, सबकुछ बिक चुका, आगे क्या होगा।

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रक्षाबंधन का वो दिन

बसंती ने बताया कि उनके पति का कई सालों पहले निधन हो चुका। 11 से 5 साल तक के तीन छोटे पुत्र हैं। मझला पुत्र हरीश (9) का सवा साल पहले रक्षाबंधन के दिन घर की छत पर खेल रहा था कि ११ हजार केवी लाइन से छू गई। उसके हाथ-पैर बुरी तरह झुलस गए। लोगों की सलाह पर बेटे को बचाने के लिए वो उसे तत्काल कोटा के तलवंडी स्थित एक निजी अस्पताल लेकर आई। यहां ऑपरेशन कर उसका हाथ काटना पड़ा। ऑपरेशन के लिए पैसे नहीं थे तो तीन लाख में एक बीघा जमीन को बेचा।

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एक की सर्जरी हुई, दूसरी बाकी

तलवंडी स्थित एक अस्पताल में पिछले सप्ताह बंटे के एक पैर की सर्जरी हुई है। पैरों की अंगुलियों को खोला गया। दूसरा ऑपरेशन तीन माह बाद दिसम्बर तक होगा। हालांकि ये दोनों ऑपरेशन भामाशाह योजना से कवर हो रहे हैं। लेकिन, देखभाल की चिंता अब भी मुह बाए खड़ी है। करंट की चपेट से हरीश के दोनों पैरों की अंगुलियां भी आपस में चिपक गई थी। उस वक्त पैसे खत्म होने से वह पैरों का उपचार नहीं करा सकी। उसके पैरों ने काम करना बंद कर दिया। अब अंगुलियां भी सडऩे लग गई तो चिंता हुई। उपचार जरूरी हो गया। वे बताती हैं कि झालावाड़ रेलवे कर्मचारी रामनिवास मेघवाल और रामगंजमंडी निवासी जोनी शर्मा ने जनसहयोग से 26 हजार रुपए एकत्र किए। उसके बाद वे बेटे को लेकर कोटा इलाज के लिए पहुंची।

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मां को भी चाहिए इलाज

बसंती खुद भी गले में कैंसर से पीडि़त हैं। वे बताती हैं कि छह माह पहले ही उन्होंने मकान बेचकर गले का ऑपरेशन करवाया है। एक बार ऑपरेशन होने के बाद अब वापस दोबारा गांठ उठ गई है। फिर उपचार की जरूरत है लेकिन पैसे हैं ही नहीं, कहां से इलाज कराए। बस वो तो एक ही रट लगाए है, फिर से दौडऩे लगे मेरा लाल...। डॉ. यश भार्गव ने बताया कि हरीश हाईवोल्ट करंट लगने से झुलसा था। ऑपरेशन कर हाथ काटना पड़ा। पैर झुलस गए थे। अंगुलियां चिपक गई। इससे वह खड़ा नहीं हो सका। एक सप्ताह पहले सर्जरी की। अगले माह दूसरे पैर का ऑपरेशन होगा। उसे पैरों पर खड़ा करने के लिए प्रयास कर रहे हैं।