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काश! सभी मुक्तिधामों में होती विकास समिति, तो उन की भी हालत होती ऐसी

शहर के अधिकांश मुक्तिधाम रामभरोसे है, लेकिन जहां विकास समितियां है, उन मुक्तिधामों की स्थिति बेहतर है।

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कोटा

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ritu shrivastav

Nov 15, 2017

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आदर्श मुक्तिधाम

शहर में दो दर्जन से अधिक मुक्तिधाम हैं। इनकी मरम्मत, जीर्णोद्धार पर नगर निगम, यूआईटी या फिर विधायक, सांसद कोष से लाखों रुपए खर्च किए जाते है, लेकिन जीर्णोद्धार के बाद रखरखाव की जिम्मेदारी किसी को नहीं दी जाती। चुनिंदा मुक्तिधामों को छोड़ दें तो बाकी में न तो कोई विकास समिति, न ही देखभाल की व्यवस्था। इससे उलट जिन मुक्तिधामों में समिति बनी हुई है, वहां हालात सुकून भरे हैं। वहां न केवल अंतिम विदाई ससम्मान होती है, वरन् ये सैरगाह या बच्चों के क्रीड़ा स्थल तक बन गए। पार्षद और जागरुक नागरिक तक मान रहे हैं कि देखभाल का दायित्व समिति या किसी संस्था को देने से ही मुक्तिधामों की स्थिति दुरुस्त हो सकती है। कैसे हैं मुक्तिधाम, जहां बनी हुई हैं विकास समितियां और किस तरह बने वे सैरगाह, पढि़ये इस रिपोर्ट में।

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किशोरपुरा: रहती है पूरी सफाई

किशोरपुरा मुक्तिधाम को देखकर लोगों का मन बागबाग हो जाता है। यह मुक्तिधाम कहीं से भी मरघट जैसा लगता ही नहीं। रोजाना सुबह नौ बजे तक पूरे मुक्तिधाम की धुलाई की जाती है। जिधर देखो उधर ही पेड़ पौधे लगे हुए हैं। यहां पर लोग शवों के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए ही नहीं, नदी में स्नान, मंदिर में पूजा अर्चना के लिए भी आते हैं।

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स्टेशन: स्थानीय लोग करते देखभाल

जिन मुक्तिधाम की विकास समितियां बनी हुई हैं, वे चकाचक रहते हैं। रेलवे स्टेशन मुक्तिधाम विकास के लिए स्थानीय लोगों की लम्बे समय से समिति बनी हुई है। समिति द्वारा ही मुक्तिधाम का सर्वांगीण विकास कराया जाता है। समय समय पर साफ-सफाई करवाई जाती है। स्नान करने के लिए सुव्यवस्थित नल लगे हुए हैं। विश्राम गृह भी बने हुए हैं।

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सकतपुरा: पहले डर लगता था, अब खेलते हैं

सकतपुरा मुक्तिधाम में करीब एक साल पहले यूआईटी ने 60 लाख रुपए में मरम्मत करवाई थी। मुक्तिधाम विकास के लिए 15 युवाओं की समिति बनी हुई है। यहां हाल ही में भैंरूजी की प्रतिमा स्थापित की गई है। मुक्तिधाम के विकास के बाद आसपास के लोगों को भी समाजकंटकों, गंदगी-कचरे से मुक्ति मिली है। मोहल्ले के इनायत खान बताते हैं कि पहले तो बच्चों को दिन में भी नदी के ढलान की ओर जाने से डर लगता था। अब तो रात आठ बजे तक मुक्तिधाम में खेलते रहते हैं।

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पहल: बनाएंगे कमेटी

पार्षद विकास तंवर ने कहा कि मुक्तिधामों के विकास के लिए निगम से कोई बजट नहीं मिलता। सफाई ठेकेदारों से कहकर सफाई कराते हैं। सकतपुरा मुक्तिधाम के लिए समिति गठित की हुई है। एेसे ही बजरंगपुरा मुक्तिधाम के लिए भी समिति गठित करेंगे।

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सुझाव: अंतिम संस्कार विभाग बनाएं

कर्मयोगी सेवा संस्थान संस्थापक राजाराम जैन ने कहा कि हर व्यक्ति का सम्मान जनक अंतिम संस्कार हो, इसके लिए चाहिए कि अंतिम संस्कार विभाग या समिति गठित की जाए। भले ही इसकी शुरुआत कोटा ? निगम से ही की जाए। इसमें लावारिस शवों का अंतिम संस्कार, मुक्तिधाम, कब्रिस्तानों के विकास, जन सहभागिता आदि की सुविधाएं विकसित की जाएं।

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इतिश्री: रख-रखाव निगम का काम

यूआईटी अध्यक्ष रामकुमार मेहता ने कहा कि नगर विकास न्यास का काम मुक्तिधामों का विकास कराना है। जो हम विधानसभा वार करवा रहे हैं। समितियों का गठन और मुक्तिधाम का रख-रखाव करना नगर निगम प्रशासन का काम है।