मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च। दुःखितैः सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति॥
आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक के माध्यम से बताया है कि मूर्ख शिष्य को पढ़ाने पर, दुष्ट स्त्री के साथ जीवन बिताने पर और दुखियों- रोगियों के बीच में रहने पर विद्वान व्यक्ति भी दुःखी हो ही जाता है। यदि ये जीवन में है तो कभी भी पीड़ा और दुःख मिल सकता है।
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गंदगी में पडा सोना भी होता है कीमती, जानिए क्यो उठा लेना चाहिए गुरु शिष्य का ऐसा होता है संबन्ध दरअसल, आचार्य चाणक्य के मुताबिक गुरु और शिष्य का रिश्ता बेहद ही अच्छा माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि गुरु ही वह चाबी होता -जो एक शिष्य को उसकी मंजिल का ताला खोलने में मदद करती है। गुरु अपने छात्रों को हर मुश्किल को आसानी से पार करने और जीवन मे सफलता पाने के लिए तैयार करता है। लेकिन, अगर किसी तेज यानी विद्वान व्यक्ति के जीवन में कोई ऐसा शिष्य आ जाए जिसे कुछ भी न आता हो न ही उसका ध्यान गुरु द्वारा बताए गए रास्ते पर चलता हो तो ऐसे मूर्ख शिष्य से विद्वान व्यक्ति कभी न कभी दुखी जरूर होता है।
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जीवन की हर राह को आसाना बना देते हैं ये लोग, भूलकर भी न करें ये चार काम दुष्ट पत्नी काल से कम नही कहते हैं जैसे काल कभी भी आ जाता है वैसे ही दुष्ट पत्नी के साथ दुःख और मौत कभी भी आ सकता है। चाणक्य कहते हैं कि अगर कोई विद्वान व्यक्ति की जीवनसंगिनी अच्छी और समझदार हो तो उसका असर उसके पूरे जीवन पर पड़ता है जिससे वह हर मुश्किल का आसानी से सामना कर सुखी जीवन जीता है। लेकिन ठीक इसके उल्टे अगर किसी विद्वान व्यक्ति के जीवन में अच्छी जीवनसंगिनी का साथ न मिले तो उसका पूरा जीवन ही दुखों से भर जाता है।