
उत्तर प्रदेश की राजनीति में कभी एकक्षत्र राज करने वाली कांग्रेस संसदीय इतिहास में 6 जुलाई को सबसे खराब दौर में प्रवेश करेगी। 113 साल में पहली बार ऐसा होगा जब विधान परिषद में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व ही नहीं होगा। दरअसल ब्रिटिश राज के दौरान वर्ष 1935 में स्थापित विधानपरिषद में फिलहाल कांग्रेस के एकमात्र सदस्य दीपक सिंह बचे हैं। जिनका कार्यकाल इस साल जुलाई में समाप्त हो रहा है, जिसके बाद यूपी के उच्च सदन में कांग्रेस की राय रखने के लिए कोई एमएलसी नहीं बचेगा।
मोती लाल नेहरू थे कांग्रेस के पहला सदस्य
गौरतलब है कि प्रदेश में विधान परिषद की स्थापना 5 जनवरी 1887 को हुई थी। तब इसके 9 सदस्य हुआ करते थे। 1909 में बनाए गए प्रावधानों के तहत सदस्य संख्या बढ़ाकर 46 कर दी गई, जिनमें गैर सरकारी सदस्यों की संख्या 26 रखी गई। इन सदस्यों में से 20 निर्वाचित और 6 मनोनीत होते थे। मोती लाल नेहरू ने 7 फरवरी 1909 को विधान परिषद की सदस्यता ली। उन्हें विधान परिषद में कांग्रेस का पहला सदस्य माना जाता है। हालांकि, 1920 में कांग्रेस की सरकार के साथ असहयोग की नीति के तहत उन्होंने सदस्यता त्याग दी थी। तब यूपी को संयुक्त प्रांत के नाम से जाना जाता था।
कुछ महीने में रिटायर होने वाले हैं ये सदस्य
विधान परिषद के रिकॉर्ड के मुताबिक, सदन के 15 सदस्य अगले कुछ महीनों के अंदर रिटायर होने वाले हैं। इनमें से भाजपा के दो सदस्य, सपा के नौ सदस्य, बसपा के तीन और कांग्रेस का एक सदस्य शामिल है। कांग्रेस के साथ ही बसपा के तीन एमएलसी का कार्यकाल समाप्त होने के साथ ही उच्च सदन में भीमराव अंबेडकर के रूप में इस पार्टी का बस एक ही प्रतिनिधि बचेगा। ऐसे में कांग्रेस की स्थिति ऐसी आ गई है जो पहले कभी नहीं रही। वहीं भविष्य में भी कांग्रेस के उच्च सदन में प्रतिनिधित्व की उम्मीद किसी को दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है।
Published on:
18 May 2022 11:56 am
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