
पत्रिका न्यूज नेटवर्क
लखनऊ. Covid Patient Cremation. कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण से हर दिन मौत का आंकड़ा भी बढ़ता जा रहा है। हालात यह है कि शवों के अंतिम संस्कार के लिए जगह कम पड़ रही है। बात चाहे फर्रुखाबाद, कानपुर, प्रयागराज या फिर वाराणसी की हो यहां प्रमुख श्मशान घाट गंगा नदी के किनारे ही हैं। इसी तरह राजधानी लखनऊ में गोमती नदी के किनारे बने श्मशान घाटों पर अंतिम संस्कार हो रहे हैं। इन सभी शहरों में श्मशान घाटों की स्थिति बेहद डरावनी है। शवों के अंतिम संस्कार के लिए बने सभी प्लेटफार्म भरे हैं, जिसकी वजह से लोगों को मजबूरन खुले में शवों को जलाना पड़ रहा है। चिताओं से निकली राख बिना विसंक्रमित किए सीधे नदी में प्रवाहित कर दी जा रही है। श्मशान घाट पर जलती चिताओं की राख के छोटे-छोटे कण धूल के साथ उड़कर घनी बस्ती में आबादी में गिर रहे हैं। इससे वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण दोनों को खतरा एक साथ पैदा हो गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि संक्रमित व्यक्तियों के अधजले शव और नदियों में प्रवाहित श्मशान की अधजली राख खतरनाक हो सकती है।
इधर-उधर बिखरे हैं पीपीई किट
फर्रुखाबाद के पांचाल घाट की हालत बेहद डरावनी है। यहां के घाट पर इधर-उधर पीपीई किट और मास्क बिखरे पड़े हैं। कोविड प्रोटोकाल के अनुसार कोविड संक्रमित शवों का अंतिम संस्कार जहां तक संभव हो इलैक्ट्रिक शवदाह गृहों में किया जाना चाहिए। लेकिन छोटे शहरों में इसकी सुविधा नहीं है। जिन शहरो में एक-दो इलैक्ट्रिक शवदाह गृह हैं भी वहां इतनी भीड़ हैं कि यह अपर्याप्त साबित हो रहे हैं। इसकी वजह से कोविड और नॉन कोविड लाशों का संस्कार एक ही जगह हो रहा है। ऐसे में अंतिम संस्कार के लिए पहुंचे लोगों के भी संक्रमित होने का खतरा है।
शवदाह की राख खतरनाक
लखनऊ में गोमतीनगर, त्रिवेणीनगर जैसे इलाकों के लोग इन दिनों काली राख के छोटे-छोटे कणों से परेशान हैं। गोमती किनारे खुले में अंतिम संस्कार किए जाने की वजह से धुएं के साथ लकड़ी के कण हवा में उड़कर आवासीय कालोनियों तक पहुंच रहे हैं। कमाबेश यही हाल प्रयागराज के श्मशान घाटों और वाराणसी के हरिश्चंद और मणिकर्णिका घाट का भी है। बड़ी संख्या में लाशों के अंतिम संस्कार की वजह से वातावरण में राख के कण उड़ रहे हैं। पर्यावरण विज्ञान डॉ. आशुतोष प्रजापति का कहना है कि कोविड नियमों का पालन न होने और पर्यावरण में राख के कणों की मौजूदगी से श्वसन संबंधी बीमारियां हो सकती हैं।
राख नदी में प्रवाहित
गांव से शवों के अंतिम संस्कार के लिए आने वाले लोग खुद ही लकड़ी और कंडे साथ आते हैं। लेकिन, इनमें कोई भी कोविड प्रोटोकॉल का पालन नहीं करता। कोविड से हुई मौतों के अंतिम संस्कार के बाद लोग मास्क और पीपीई किट तो खुले में छोड़कर चले जा रहे हैं। अंतिम संस्कार के बाद राख भी नदियों में प्रवाहित कर रहे हैं। इससे संक्रमण का खतरा बढ़ गया है।
फ्री में होगा अंतिम संस्कार
कोरोना के लगातार बढ़ते संक्रमण और मौतों को देखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने फैसला किया है कि संक्रमित मरीजों की मौत पर अंतिम संस्कार के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाए। मुख्यमंत्री ने इसके लिए जिला प्रशासन को आदेश तत्काल प्रभाव से अमल में लाने के निर्देश दिए गए हैं।
Published on:
25 Apr 2021 05:48 pm
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