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Dussehra : रावण संग अब कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले नहीं जलेंगे

दशहरे पर अब रावण के साथ कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले नहीं जलेंगे। ऐशबाग रामलीला समिति लखनऊ ने इस बार एक नया फैसला लिया है। जिसके तहत सभी इस बार से कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले नहीं जलने पर एकमत हैं। ऐशबाग रामलीला समिति ने इस राज का किया खुलासा, कि क्यों नहीं जलाएंगे।  

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Dussehra : रावण संग अब कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले नहीं जलेंगे

Dussehra : रावण संग अब कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले नहीं जलेंगे

Dussehra दशहरे पर अब रावण के साथ कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले नहीं जलेंगे। ऐशबाग रामलीला समिति लखनऊ ने इस बार एक नया फैसला लिया है। जिसके तहत सभी इस बार से कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले नहीं जलने पर एकमत हैं। ऐशबाग रामलीला समिति ने इस राज का खुलासा करते हुए कहाकि, इसका कारण यह है कि सभी रामायण ग्रंथों में उल्लेख है कि कुंभकर्ण और मेघनाद ने रावण को भगवान राम के खिलाफ लड़ने से रोकने की कोशिश की थी। वह भगवान राम को विष्णु का अवतार मानते थे। पर जब रावण ने उनकी सलाह नहीं मानी तो उन्हें युद्ध में हिस्सा लेना पड़ा।

300 साल पुरानी परंपरा अब बदलेगी

यूपी में 300 से अधिक वर्षों के बाद ऐशबाग रामलीला समिति ने इस दशहरे पर रावण के साथ कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाने की प्रथा को बंद करने का निर्णय लिया है। यह विचार सबसे पहले ऐशबाग दशहरा और रामलीला समिति के अध्यक्ष हरिश्चंद्र अग्रवाल और सचिव आदित्य द्विवेदी ने पांच साल पहले रखा था, लेकिन अन्य सदस्यों ने इसे इस आधार पर खारिज कर दिया कि तीनों का पुतला जलाना 300 साल पुरानी परंपरा का हिस्सा है।

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सचिव ने बताई वजह

सचिव आदित्य द्विवेदी ने कहा, रामचरितमानस और रामायण के अन्य संस्करणों से पता चलता है कि रावण के पुत्र मेघनाद ने उनसे कहा था कि भगवान राम विष्णु के अवतार थे और उन्हें उनके खिलाफ युद्ध नहीं करना चाहिए। दूसरी ओर, रावण के भाई कुंभकर्ण ने उन्हें बताया कि सीता जिसे लंका के राजा ने अपहरण कर लिया था, वह कोई और नहीं, बल्कि जगदंबा है और अगर वह उन्हें मुक्त नहीं करता है, तो वह अपने जीवन में सब कुछ खो सकता है। हालांकि, रावण ने उनके सुझावों को नजरअंदाज कर दिया और उन्हें लड़ने का आदेश दिया। इसलिए, हमने मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले नहीं जलाने का फैसला किया है।

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अंत में सभी हुए सहमत - अध्यक्ष

रामलीला समिति के अध्यक्ष हरिश्चंद्र अग्रवाल ने बताया, काफी बहस और चर्चा के बाद हम इस साल सभी सदस्यों को यह समझाने में सफल रहे कि इस परंपरा को खत्म करने की जरूरत है।

गोस्वामी तुलसीदास ने शुरू की थी ऐशबाग रामलीला

माना जाता है कि रामलीला और दशहरा समारोह 16वीं शताब्दी में ऋषि-कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा ऐशबाग में शुरू किया गया था। पुतले जलाने की परंपरा करीब तीन सदी पहले शुरू की गई थी। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम तक संतों द्वारा दोनों परंपराओं का संचालन किया गया। लखनऊ के नवाब भी रामलीला देखने जाया करते थे। विद्रोह के बाद सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा समारोह को आगे बढ़ाया गया।