
Atiq Ahmad Murder: प्रयागराज में 40 साल पहले की एक घटना के बाद अतीक अहमद माफिया से कुख्यात माफिया डॉन बन गया था। इस घटना की नींव चांद बाबा से दुश्मनी के साथ ही पड़ गई थी। इसके बाद अतीक अहमद पुलिस के लिए नासूर बन गया था। इसकी दहशत का आलम यह था कि अतीक के खिलाफ दर्ज मुकदमों की सुनवाई से दस जजों ने खुद को अलग कर लिया था। शुरू से बताते हैं कैसे बढ़ी अतीक की दहशत…
प्रयागराज के पुराने चकिया मुहल्ले में 60 के दशक में फिरोज के घर 10 अगस्त 1962 को बेटे का जन्म हुआ। फिरोज तांगा चलाता था। फिरोज ने लड़के का नाम रखा अतीक। अतीक के पिता फिरोज उन्हें पढ़ाना चाहते थे। लेकिन इसके इतर अतीक का पढ़ाई लिखाई में कोई खास रूचि नहीं थी।
अतीक दसवीं में फेल हो गए। इसके बाद अतीक ने पैसा और नाम कमाने के चक्कर में जरायम की दुनिया में कदम रखा। उसे सबसे पहले चांद बाबा ने ही सपोर्ट किया। चांद बाबा के गैंग में ही रहकर अतीक ने अपनी पहचान बनाई।
इलाहाबाद में उन दिनों गैंगस्टर शौक इलाही उर्फ चांद बाबा का खौफ चरम पर था। इस खौफ के चलते पुलिस भी चौक और रानीमंडी की तरफ़ नहीं जाती थी। उस समय तक अतीक 20-22 साल का हो गया था और उसे ठीक-ठाक गुंडा माना जाने लगा था। पुलिस और नेता, दोनों ही उसे शह दे रहे थे। दोनों ही चांद बाबा के खौफ को खत्म करना चाहते थे। इसी का नतीजा था अतीक़ का उभार, जो आगे चलकर चांद बाबा से ज़्यादा पुलिस के लिए खतरनाक हो गया।
एक समय पुलिस के लिए भी नासूर बन गया था माफिया अतीक
जैसे-जैसे अतीक़ और उसके लड़कों का नेटवर्क बढ़ा, वह पुलिस के लिए नासूर बनने लगा। अतीक़ को इस बात की भनक लग गई कि पुलिस उसे मिटाना चाहती है। उसने एक पुराने मामले में जमानत तुड़वाकर सरेंडर कर दिया। जेल जाते ही पुलिस उस पर टूट पड़ी। उसपर रासुका लगाया गया। एक साल बाद अतीक जेल से बाहर आया और पुलिस के जुल्म की कहानी बताकर सहानुभूति का फायदा उठा लिया। यहीं से शुरू हुआ अतीक के खूंखार बनने का सफर।
पुलिस से बचने के लिए अतीक ने सियासत में रखा कदम
अतीक अहमद को समझ आ चुका था कि अब पुलिस से बचने के लिए सियासत ही काम आ सकती है। हुआ भी ऐसा ही। 1989 में यूपी में विधानसभा के चुनाव हुए। इसमें अतीक ने इलाहाबाद पश्चिमी सीट से निर्दलीय पर्चा भर दिया। इस चुनाव में उसका सामना उसके ही गुरु चांद बाबा से था। चांद बाबा और अतीक में दुश्मनी के साथ पहले गैंगवार हो चुकी थी। अपराध जगत में अतीक़ का बढ़ता दबदबा चांद बाबा को अखर रहा था।
चांद बाबा और अतीक में हुई थी सबसे बड़ी गैंगवार
इसके बाद साल 1989 में ही अतीक ने चांद बाबा ने सीधी चुनौती दी। काउंटिंग वाले दिन, अतीक अहमद अपने गुर्गों के साथ रोशनबाग़ में चाय की टपरी पर था। चांद बाबा अपनी गैंग के साथ आया, और, दोनों के बीच भीषण गैंगवार हुई। गोलियां, बम, बारूद से बाज़ार पट गया। इसी गैंगवार में चांद बाबा की मौत हो गई। चांद बाबा की हत्या पर प्रशासन ऐक्शन लेता या चांद बाबा के गुर्गे, इससे पहले ही चुनाव के रिजल्ट घोषित हो गए। अतीक़ अहमद विधायक चुन लिया गया।
कुछ ही महीनों में खत्म हो गया चांद बाबा का गैंग
इसके बाद कुछ ही महीनों में एक-एक करके चांद बाबा का पूरा गैंग खत्म हो गया। इस हत्या में अतीक़ अहमद पर कोई मुक़दमा दर्ज नहीं हुआ और चांद बाबा की मौत के पीछे गैंग की मुठभेड़ को कारण बताया गया था। चांद बाबा की हत्या के बाद अतीक़ का ख़ौफ़ इस क़दर फैला कि लोग इलाहाबाद पश्चिमी सीट से टिकट लेने से ख़ुद ही मना कर देते थे।
जमीन कब्जाने के लिए महिला के पति को गायब करवा दिया
इसके बाद ही प्रयागराज में अतीक अहमद की तूती बोलने लगी। साल 1889 में अतीक अहमद ने प्रयागराज की जय श्री कुशवाहा उर्फ सूरजकली के साढ़े बारह बीघा जमीन पर जबरन कब्जा कर लिया था। जय श्री ने जब इसका विरोध किया तो रातों रात उनके पति को गायब करवा दिया। उनके भाई प्रहलाद कुशवाहा को कंरट लगाकर मार दिया गया। बेटे पर फायरिंग हुई और घर में घुसकर कई बार उनके परिवार को पीटा गया।
यही कारण था कि निर्दलीय रहकर अतीक़ ने 1991 और 1993 के चुनाव जीते। फिर सपा से नजदीकी बढ़ी, तो 1996 में सपा से टिकट मिल गया। चुनाव लड़ा और चौथी बार विधायक बना। 1999 में अपना दल का हाथ थामा। 2002 में अपना दल से अपनी पुरानी सीट से चुनाव लड़ा और 5वीं बार इलाहाबाद पश्चिमी सीट से विधानसभा में पहुंच गया।
साल 2005 से अतीक का शुरू हो गया बुरा समय
साल 2005 में विधायक राजू पाल हत्याकांड के बाद अतीक अहमद का बुरा वक्त शुरू हो गया। साल 2007 में UP की सत्ता बदली। मायावती सूबे की मुखिया बन गईं। सपा ने अतीक को पार्टी से बाहर कर दिया। CM बनते ही मायावती ने ऑपरेशन अतीक शुरू किया। 20 हजार का इनाम रख कर अतीक को मोस्ट वांटेड घोषित किया गया।
अतीक अहमद पर 100 से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें हत्या, हत्या की कोशिश, किडनैपिंग, रंगदारी जैसे केस हैं। उसके ऊपर 1989 में चांद बाबा की हत्या, 2002 में नस्सन की हत्या, 2004 में मुरली मनोहर जोशी के करीबी BJP नेता अशरफ की हत्या, 2005 में राजू पाल की हत्या का आरोप है।
2012 में दस जजों ने जमानत अर्जी पर सुनवाई से कर दिया इनकार
साल 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव के वक्त अतीक अहमद जेल में ही था। साल 2012 में उसने चुनाव लड़ने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में जमानत के लिए अर्जी दी। हालांकि हाईकोर्ट के 10 जजों ने केस की सुनवाई से ही खुद को अलग कर लिया। 11वें जज ने सुनवाई की और अतीक अहमद को जमानत मिल गई।
Updated on:
16 Apr 2023 02:53 pm
Published on:
16 Apr 2023 02:52 pm
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