महाशिवरात्रि, यानि वह रात जब सूरज धरती की भूमध्य रेखा या विषुवत रेखा की सीध में होता है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में इसे विषुव कहा गया है। यह वो तारीख होती है जब पूरी धरती पर रात और दिन बराबर होते हैं। इस खगोलीय अवस्था में अपनी धुरी पर चक्कर काट रही धरती के कारण जो ऊर्जा पैदा होती है वो नीचे की तरफ से ऊपर की ओर बढ़ती है। विज्ञान की भाषा में इसे अपकेंद्रीय बल या Centrifugal Force कहा जाता है। हमारा शरीर भी इस ब्रह्मांड और धरती का ही हिस्सा है। इसलिए अगर इस दिन हम अपने शरीर को सीधा रखें जैसे कि योग की मुद्रा में बैठे या खड़े रहें तो हमें शिव की ऊर्जा मिलती है। यही कारण है कि महाशिवरात्रि के दिन सोने से मना किया जाता है और रात भर लोग जागरण करते हैं।
ऐसा करने के पीछे जो मंशा है वो यह कि व्यक्ति की रीढ़ की हड्डी झुकी हुई नहीं, बल्कि सीधी होनी चाहिए ताकि वो ऊर्जा के इस प्रवाह का पूरा लाभ उठा सके। ऊर्जा के इस प्रवाह के कारण ही महाशिवरात्रि को जागृति अथवा चेतना की रात भी कहा जाता है। ब्रह्मांड से जुड़ा यह विज्ञान भारतीयों को हजारों साल से पता था और वो इस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाते थे। आधुनिक विज्ञान के लिए यह ज्ञान महज कुछ सौ साल ही पुराना है।
वास्तव में महाशिवरात्रि एक खगोलीय अवसर है जब हम ब्रह्मांडीय ऊर्जा का अपने शरीर और जीवन में संचार कर सकते हैं। लेकिन आम लोगों की समझ के लिए इसे कुछ धार्मिक परंपराओं और कथा कहानियों के साथ भी जोड़ा गया है। ये कहानियाँ भी किसी न किसी सत्य की तरफ़ इशारा कर रही होती हैं। उदाहरण के तौर पर कहा जाता है कि इसी दिन सृष्टि की रचना का काम शुरू हुआ था। पुराणों के अनुसार इस दिन अग्निलिंग का उदय हुआ था जो आगे चलकर सृष्टि की उत्पत्ति का कारण बना। इसी अग्निलिंग के सिद्धांत को आधुनिक विज्ञान में बिग बैंग (Big Bang) जैसे नामों से पुकारा जाता है। महाशिवरात्रि का संबंध समुद्र मंथन की कथा से भी है। ये वो दिन है जब समुद्र से विष निकला था और भगवान शिव ने विष का पान करके सृष्टि को बचाया था।