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PhD धारक चला रहा था फर्जी डिग्री रैकेट, पुलिस ने 923 नकली दस्तावेज बरामद किए

Fake Degree Racket: लखनऊ के गोमतीनगर में पुलिस ने फर्जी डिग्री और मार्कशीट के बड़े अंतरराज्यीय रैकेट का पर्दाफाश किया है। हैरानी की बात यह रही कि गिरोह का सरगना खुद पीएचडी धारक निकला। छापेमारी में 923 नकली डिग्रियां, विश्वविद्यालयों की मुहरें और डिजिटल उपकरण बरामद हुए।

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लखनऊ

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Ritesh Singh

Dec 22, 2025

923 फर्जी अंकपत्र और डिग्रियां बरामद, देशभर में फैला था नेटवर्क (Source: Police Media Cell)

923 फर्जी अंकपत्र और डिग्रियां बरामद, देशभर में फैला था नेटवर्क (Source: Police Media Cell)

PhD Holder Fake Degree Racket : 'कोई भी कोर्स बताइए, मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय की डिग्री मिल जाएगी।” यह चौंकाने वाला दावा तब हकीकत बनकर सामने आया, जब लखनऊ पुलिस ने गोमतीनगर में 21 दिसंबर को की गई एक नियमित कार्रवाई के दौरान फर्जी डिग्री और मार्कशीट के बड़े अंतरराज्यीय रैकेट का पर्दाफाश किया। इस गिरोह का सरगना खुद पीएचडी धारक निकला, जो शिक्षा को व्यापार बना चुका था।

पूर्वी जोन की क्राइम एंड सर्विलांस टीम ने इस संगठित शैक्षणिक जालसाजी नेटवर्क को उजागर करते हुए तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया है। पुलिस के मुताबिक, यह गिरोह देशभर में नौकरी और उच्च शिक्षा के इच्छुक युवाओं को निशाना बनाकर फर्जी डिग्रियां और अंकपत्र बेच रहा था।

923 फर्जी डिग्रियां और 25 से अधिक विश्वविद्यालयों के नाम

पुलिस ने आरोपियों के पास से 923 फर्जी मार्कशीट और डिग्रियां, कम से कम 25 विश्वविद्यालयों की नकली मुहरें, लैपटॉप, हार्ड डिस्क, प्रिंटर, रजिस्टर और दो लाख रुपये नकद बरामद किए हैं। यह बरामदगी इस बात का संकेत है कि यह रैकेट किसी छोटे स्तर पर नहीं, बल्कि पूरी तरह संगठित और पेशेवर ढंग से संचालित किया जा रहा था।

पूर्वी जोन के पुलिस उपायुक्त (DCP) शशांक सिंह ने बताया कि जो कार्रवाई शुरुआत में सामान्य गिरफ्तारी लग रही थी, वही आगे चलकर एक बड़े शैक्षणिक फर्जीवाड़े के नेटवर्क का खुलासा बन गई। यह रैकेट लंबे समय से सक्रिय था।”

कौन हैं गिरफ्तार आरोपी

पुलिस ने जिन तीन लोगों को गिरफ्तार किया है, वे खुद शिक्षित हैं, जो इस अपराध को और भी गंभीर बनाता है।

  • अखिलेश कुमार – समाजशास्त्र में पीएचडी (ओडिशा के एक निजी विश्वविद्यालय से)
  • सतेन्द्र द्विवेदी (32) – केमिस्ट्री में एमएससी (कानपुर के एक सरकारी विश्वविद्यालय से)
  • सौरभ शर्मा (35) – एक निजी संस्थान से डिप्लोमा धारक

पुलिस के अनुसार, अखिलेश कुमार इस गिरोह का मास्टरमाइंड था, जो पूरे नेटवर्क का संचालन कर रहा था।

कैसे चलता था फर्जी डिग्री का धंधा

जांच में सामने आया है कि गिरोह बीटेक, बीसीए, एमसीए, एमएससी, बीए जैसे कोर्स की डिग्रियां तैयार करता था। इन डिग्रियों की कीमत 25 हजार रुपये से लेकर 4 लाख रुपये तक तय की जाती थी। फीस इस बात पर निर्भर करती थी कि कोर्स कौन-सा है और विश्वविद्यालय की “विश्वसनीयता” कितनी मानी जाती है। गोमतीनगर के सहायक पुलिस आयुक्त बृज नारायण सिंह ने बताया कि आरोपी ऐसे उम्मीदवारों को निशाना बनाते थे, जो नौकरी या उच्च शिक्षा के लिए पात्रता पूरी नहीं कर पाते थे। उन्हें भरोसा दिलाया जाता था कि डिग्री इतनी असली दिखेगी कि सामान्य सत्यापन में पकड़ में नहीं आएगी।”

देशभर के नामी विश्वविद्यालयों के फर्जी दस्तावेज

पुलिस के अनुसार, फर्जी दस्तावेज देश के कई प्रतिष्ठित और निजी विश्वविद्यालयों के नाम पर तैयार किए गए थे। इनमें शामिल हैं-

  • स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय
  • नॉर्थ ईस्ट क्रिश्चियन यूनिवर्सिटी
  • महाराजा अग्रसेन हिमालयन गढ़वाल यूनिवर्सिटी
  • कलिंगा यूनिवर्सिटी
  • जेआरएन राजस्थान विद्यापीठ
  • साबरमती यूनिवर्सिटी
  • इन नामों से फर्जी मार्कशीट और डिग्रियां बनाकर ग्राहकों को दी जाती थीं।

डिजिटल सबूत और लंबी ग्राहक सूची

छापेमारी में बरामद डिजिटल डिवाइस और वित्तीय रिकॉर्ड इस बात की ओर इशारा करते हैं कि रैकेट के पास विस्तृत ग्राहक सूची और भुगतान का पूरा हिसाब मौजूद है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के मुताबिक, हम डिजिटल डेटा का विश्लेषण कर रहे हैं, ताकि यह पता लगाया जा सके कि कितने लोगों ने इन फर्जी डिग्रियों के आधार पर नौकरी हासिल की। पुलिस अब उन लोगों तक पहुंचने की तैयारी में है, जिन्होंने इन नकली दस्तावेजों का इस्तेमाल किया।

निजी कंपनियां क्यों बनती हैं आसान शिकार

एचआर विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के रैकेट इसलिए पनपते हैं क्योंकि कई निजी कंपनियां केवल दस्तावेज देखकर भर्ती कर लेती हैं और विस्तृत शैक्षणिक सत्यापन नहीं करातीं। यही ढील ऐसे गिरोहों के लिए अवसर बन जाती है।

कड़ी धाराओं में केस दर्ज

गोमतीनगर थाने में आरोपियों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की कई गंभीर धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई है। पुलिस विश्वविद्यालयों और नियोक्ताओं के साथ समन्वय कर रही है, ताकि पहले से चलन में मौजूद फर्जी डिग्रियों की पहचान की जा सके।