
नए दौर में यूपी की राजनीति, सामाजिक समरसता सभी दलों को एजेंडा
लखनऊ. उत्तर प्रदेश की राजनीति नए दौर से गुजर रही है। भले ही सूबे में सवर्ण मुख्यमंत्री हों, लेकिन सभी दलों की रणनीति आगामी चुनावों में सवर्णों को आगे न करने की है। सभी दल सामाजिक समरसता की बात कर रहे हैं। सामाजिक समरसता के इस सिद्धांत में अन्य पिछड़ा वर्ग निशाने पर है। अखिलेश यादव की पार्टी मुस्लिम और पिछड़ा गठजोड़ पर काम कर रही है तो बसपा सुप्रीमो मायावती मुस्लिम-दलित के वोट बैंक को सहेजने में जुटी हैं। भारतीय जनता पार्टी भी सामाजिक न्याय के सिद्वांतों की पालना के लिए अपने पूर्व संगठन महामंत्री गोविंदाचार्य और गृहमंत्री राजनाथ सिंह के वर्षों पुराने फार्मूले को फिर से आजमाने में जुटी है।
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गोविंदाचार्य और राजनाथ की राह पर भाजपा
1980 के दशक में तत्कालीन भाजपा नेता गोविंदाचार्य ने सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला की बात कही थी। तब उन्होंने गैर यादव पिछड़ों और गैर जाटव दलितों को भाजपा के साथ जोड़ने की वकालत की थी। गोविंदाचार्य के बाद उनके फॉर्मूले को राजनाथ सिंह ने सामाजिक न्याय समिति गठित करके ओबीसी कोटे के अंदर तीन श्रेणियां बनाकर आरक्षण के लाभ को तीन हिस्से में बांटने की कोशिश की थी। तब यह योजना कोर्ट के आदेशों की वजह से परवान नहीं चढ़ सकी थी। अब सपा-बसपा और रालोद के गठबंधन से निपटने के लिए इन पार्टियों के कोर वोटबैंक को साधने के लिए फिर सामाजिक समरसता की बात की जा रही है।
सामाजिक न्याय समिति गठन करेगी योगी सरकार
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने भी एक सामाजिक न्याय समिति का गठन किया है। समिति पिछड़े वर्ग की 17 जातियों को अनुसूचित जाति में डालने की योजना पर काम कर रही है। इसके साथ ओबीसी को दो बड़े वर्गों खेतिहर और पेशेवर में बांटने की योजना है। इसके पीछे मकसद सिर्फ एक है भाजपा पर पिछड़ा विरोधी और दलित विरोधी होने का आरोप न लग सके। पार्टी ने हाल ही इसी समीकरण को ध्यान में रखते हुए राज्यसभा सांसद और एमएलसी को टिकट बांटे थे।
Published on:
12 Jun 2018 05:28 pm
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