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कुछ ऐसा है लखनऊ की शान बड़ा इमामबाड़ा, आकाल में मदद के लिए चला था 11 साल तक निर्माण

Bada Imambara: नवाबों का शहर कहे जाने वाले लखनऊ की ऐतिहासिक इमारतों में शुमार बड़ा इमामबाड़ा को भुलभुलैया के नाम से भी जानते हैं।

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लखनऊ

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Aman Pandey

Mar 25, 2023

Something like this is the pride of Lucknow Bada Imambara

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लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा यहां के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों में से एक है। यह शहर की संस्कृति और समृद्ध विरासत का प्रतीक है। इसका निर्माण 1784 ई. में अकाल राहत परियोजना के तहत नवाब आसफ-उद-दौला ने कराया था। इसे नवाब की कब्र के लिए आसफी इमामबाड़ा और भ्रामक रास्‍तों के कारण भूल-भुलैया भी कहा जाता है।

गोमती नदी के किनारे स्थित बड़ा इमामबाड़ा की वास्‍तुकला, ठेठ मुगल शैली को प्रदर्शित करती है, जो पाकिस्‍तान में लाहौर की बादशाही मस्जिद से काफी मिलती जुलती है।

इमामबाड़ा वास्तव में एक विहंगम आंगन के बाद बना हुआ एक विशाल हॉल है, जहां दो विशाल तिहरे आर्च वाले रास्तों से पहुंचा जाता है। इमामबाड़े का केंद्रीय कक्ष करीब 50 मीटर लंबा और 16 मीटर चौड़ा है। स्तंभहीन कक्ष की छत करीब 15 मीटर से अधिक ऊंची है। यह हॉल लकड़ी, लोहे और पत्थर के बीम के बाहरी सहारे के बिना खड़ी विश्व की सबसे बड़ी संरचना है, जिसे किसी बीम या गार्डर के बिना ही ईंटों को आपस में जोडक़र खड़ा किया गया है। जो वास्तुकला की भव्यता को परिलक्षित करता है।

क्‍यों बनाया गया बड़ा इमामबाड़ा
अवध क्षेत्र के अंदर वर्ष 1784 में भयंकर अकाल पड़ा। इसके बाद राहत परियोजना के तहत इसका निर्माण शुरू किया गया, जिससे लोगों को रोजगार मिले। कहा जाता है कि इस इमामबाड़ा का निर्माण और अकाल दोनों ही 11 साल तक चले। इमामबाड़ा के निर्माण में करीब 20,000 श्रमिक शामिल थे। इसका केंद्रीय हॉल दुनिया का सबसे बड़ा वॉल्टेड चैंबर बताया जाता है। बड़ा इमामबाड़ा को हालांकि भूल भुलैया के नाम से ज्‍यादा ख्याति प्राप्त है। इस विशाल इमामबाड़ा का गुंबदनुमा हॉल 50 मीटर लंबा और 15 मीटर ऊंचा है। उस जमाने में इसके निर्माण में कुल 8 से 10 लाख रुपये की लागत आई थी।

क्यों नाम पड़ा भूलभुलैया
इमामबाड़े में तीन विशाल कक्ष हैं, जिसकी दीवारों के बीच लंबे गलियारे हैं, जो लगभग 20 फीट चौड़े हैं। यही घनी और गहरी संरचना भूलभुलैया कहलाती है। असल में यहां 1000 से भी अधिक छोटे रास्ते हैं जो देखने में एक जैसे लगते हैं। पर ताज्जुब करने वाली बात यह है कि, ये सभी अलग-अलग रास्ते पर निकलते है। कुछ तो ऐसे भी हैं जिनके सिरे बंद है।

भूलभुलैया में बावड़ी क्या है
भूलभुलैया में मौजूद बावड़ी सीढ़ीदार कुएं को कहते हैं, जो इमामबाड़े में एक अचंभित करने वाली संरचना है। यह पूर्व नवाबी युग की धरोहर है। शाही हमाम नामक यह बावड़ी गोमती नदी से जुड़ी है, जिसमें पानी से ऊपर केवल दो मंजिले हैं, शेष तल साल भर पानी के भीतर डूबा रहता हैं।

इमामबाड़े का ऐतिहासिक ही नहीं धार्मिक महत्व भी है और इसी के फलस्वरूप मुहर्रम के महीने में यहां से ताजिया का जुलूस निकाला जाता है।

क्या है रूमी दरवाजा
रूमी दरवाजा इमामबाड़े के बाहर पुराने लखनऊ का प्रवेश द्वार माना जाता है। यह लगभग 60 फीट उंचा है, जिसमें तीन मंजिल हैं। इस दरवाजे से आप नवाबों के शहर का भरपूर नजारा ले सकते हैं। यह दरवाजा लखनऊ की पहचान है।

कैसे पहुंचे इमामबाड़ा
यदि आप सड़क मार्ग से जा रहे हैं, तो चारबाग बस स्टैंड से यह सिर्फ 5 किमी. की दूरी पर स्थित है. ट्रेन से जा रहे हैं तो आप चारबाग रेलवे स्टेशन से टैक्सी, ऑटो लेकर यहां जा सकते हैं. वहीं, हवाई मार्ग से जा रहे हैं, तो लखनऊ हवाई अड्डा से यह 35 किमी. की दूरी पर स्थित है. यहां आप किसी भी दिन जा सकते हैं और यह सुबह 6 से लेकर शाम 6 बजे तक खुला रहता है. हालांकि, इस इमारत को देखने के लिए कुछ एंट्री फीस भी देनी पड़ती है.