
विधानसभा अध्यक्ष की नई पहल
UP Vidhansabha: उत्तर प्रदेश विधानसभा में अब जनप्रतिनिधि अपनी बात हिंदी के अलावा अवधी, भोजपुरी, बुंदेली और ब्रज भाषा में भी रख सकेंगे। विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना की इस नई पहल के तहत अब क्षेत्रीय भाषाओं को भी सदन में मान्यता मिलेगी, जिससे स्थानीय भाषा और संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा। इन भाषाओं में कही गई बातों का हिंदी में अनुवाद भी किया जाएगा ताकि सभी सदस्य उसे समझ सकें।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने यह घोषणा करते हुए कहा कि यह कदम प्रदेश की समृद्ध भाषाई और सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का एक प्रयास है। उन्होंने कहा कि कई विधायक ऐसे हैं, जिनकी मातृभाषा हिंदी के अलावा अवधी, भोजपुरी, बुंदेली या ब्रजभाषा है और वे इनमें अधिक सहज महसूस करते हैं। ऐसे में, उन्हें अपनी बात प्रभावी तरीके से रखने का अवसर मिल सकेगा।
इस पहल का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विधायक अपनी मूल भाषा में अधिक सहज होकर अपनी बात रख सकें। सदन में अनुवाद की सुविधा दी जाएगी, ताकि अन्य सदस्य उनकी बात को स्पष्ट रूप से समझ सकें। इसके लिए विशेष अनुवादकों की नियुक्ति की जाएगी।
उत्तर प्रदेश की विभिन्न भाषाओं का अपना ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है। अवधी रामचरितमानस की भाषा रही है, जबकि भोजपुरी का प्रभाव न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि बिहार और झारखंड तक फैला है। बुंदेली और ब्रज भी अपनी अनूठी सांस्कृतिक धरोहर के लिए जानी जाती हैं।
देश के कई अन्य राज्यों में पहले से ही क्षेत्रीय भाषाओं को मान्यता दी गई है। पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और गुजरात जैसे राज्यों में विधायकों को अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में बोलने की छूट मिली हुई है। यूपी विधानसभा का यह कदम देश में बहुभाषिक लोकतंत्र को और मजबूत करेगा।
इस फैसले को लेकर यूपी के विधायकों की सकारात्मक प्रतिक्रिया आई है। कई विधायकों ने इसे स्वागतयोग्य कदम बताया है। पूर्वांचल और बुंदेलखंड क्षेत्र के विधायकों ने विशेष रूप से खुशी जताई है, क्योंकि इससे उनकी स्थानीय भाषा को सम्मान मिलेगा और वे अपनी बात अधिक प्रभावी ढंग से रख सकेंगे।
हालांकि, इस नई व्यवस्था को लागू करने के लिए कुछ तकनीकी चुनौतियां भी सामने आएंगी। अनुवादकों की नियुक्ति, उनकी ट्रेनिंग और सदन में भाषाओं के समन्वय के लिए विशेष व्यवस्थाएं करनी होंगी। विधानसभा सचिवालय इस दिशा में काम कर रहा है और जल्द ही इसका विस्तृत खाका तैयार किया जाएगा।
अगर यह पहल सफल होती है, तो भविष्य में अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को भी शामिल किया जा सकता है। यूपी में बोलचाल की अन्य कई भाषाएं जैसे बघेली, कन्नौजी और रोहिलखंडी भी प्रचलित हैं। अगर इन भाषाओं को भी मान्यता मिलती है, तो यह प्रदेश की सांस्कृतिक विविधता को और मजबूत करेगा।
यूपी विधानसभा में क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग की अनुमति देने का निर्णय लोकतंत्र को और मजबूत करने वाला कदम है। इससे न केवल विधायकों को अपनी बात रखने में आसानी होगी, बल्कि राज्य की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को भी बढ़ावा मिलेगा। यह पहल उत्तर प्रदेश की समृद्ध परंपराओं और लोकसंस्कृति को संरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
Updated on:
18 Feb 2025 04:21 pm
Published on:
17 Feb 2025 11:53 pm
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