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जनसंख्या नियंत्रण निति 2021-30: यूपी की प्रजनन दर पिछले वर्षों में घटी, गर्भनिरोधक का हुआ अधिक उपयोग

आधिकारिक डेटा के अनुसार एक महिला से पैदा होने वाले बच्चों की औसत संख्या यूपी में 17 वर्षों में 4.06 (1999) से घटकर 2.7 (2016) हो गई, जबकि इसी अवधि के दौरान भारत में केवल 0.7 की गिरावट आई।

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लखनऊ

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Abhishek Gupta

Jul 13, 2021

UP population

UP population

लखनऊ. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi) की सरकार ने 2026 तक कुल प्रजनन दर (टीएफआर) (total fertility rate) को 2.7 के अपने वर्तमान रेट से 2.1 तक लाकर जनसंख्या को स्थिर करने के लिए जनसंख्या नियंत्रण निति 2021-30 (UP population control policy 2021-30) जारी की है। इस बीच एक बड़े न्यूज चैनल द्वारा किए गए विश्लेषण के अनुसार, आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में पिछले कई वर्षों से इस दर में गिरावट देखी जा रही है। यूपी में गर्भनिरोधक (Contraception) व परिवार नियोजन (Family Planning) विधियों का भरपूरी उपयोग हुआ है। आधिकारिक डेटा के अनुसार अपने प्रजनन वर्षों में एक महिला से पैदा होने वाले बच्चों की औसत संख्या यूपी में 17 वर्षों में 4.06 (1999) से घटकर 2.7 (2016) हो गई, जबकि इसी अवधि के दौरान भारत में केवल 0.7 की गिरावट आई।

उत्तर प्रदेश की नई जनसंख्या नीति के अनुसार, सरकार का लक्ष्य 2026 तक टीएफआर को 2.1 और 2030 तक इसे 1.9 तक लाना है। साथ ही रिप्लेसमेंट लेवल फर्टिलिटी (आरएलएफ) को भी 2026 तक मेंटेन करने का लक्ष्य हैं। आरएलएफ वह स्तर है जिस पर जनसंख्या एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में अपने आप को बिल्कुल बदल लेती है। इसलिए किसी दिए गए क्षेत्र में जनसंख्या स्थिर रहने के लिए कुल प्रजनन दर का 2.1 होना आवश्यक है।

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शहरी क्षेत्रों में ज्यादा असर-
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -4 (एनएफएचएस -4) (2015-16) के अनुसार, उत्तर प्रदेश में शहरी क्षेत्रों में टीएफआर 2.1 था जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के में 3.0 था। एनएफएचएस के आंकड़ों से पता चलता है कि 2006 से 2016 के बीच, राज्य की कुल प्रजनन दर में प्रति महिला 1.1 बच्चों की गिरावट आई थी। 2005-06 में राज्य की कुल प्रजनन दर 3.8 थी। तब शहरी क्षेत्रों में यह 2.95 थी, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 4.13 थी। वहीं 1998-99 में यूपी की कुल प्रजनन दर 4.06 थी। उस दौरान राज्य के शहरी हिस्सों में टीएफआर 2.91 जबकि ग्रामीण इलाकों में 4.39 था। भारत में अब तक एनएफएचएस के चार दौर (1992–93, 1998–99, 2005–06, 2015-16) पूरे हो चुके हैं जबकि पांचवां दौर (2019-20) अभी भी चल रहा है।

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अशिक्षित महिलाओं की प्रजनन दर अधिक-

डेटा के अनुसार, बिना स्कूली शिक्षा वाली महिलाओं ने शिक्षिक महिलाओं की तुलना में अधिक बच्चे पैदा किए। एनएफएचएस -4 (2015-16) के अनुसार, बिना स्कूली शिक्षा वाली महिलाओं के लिए टीएफआर दर 3.5 था, जबकि जिन महिलाओं की स्कूली शिक्षा 12 या उससे अधिक वर्षों की थी, उनके लिए यह 1.9 थी। हालांकि, 1999 से 2016 तक अशिक्षिक महिलाओं में भी टीएफआर में सुधार देखा गया।

गर्भनिरोधक प्रसार दर में वृद्धि-

पिछले कुछ वर्षों में यूपी में विवाहित महिलाओं के बीच गर्भनिरोधक प्रसार दर (सीपीआर) में वृद्धि हुई है। 2016 तक, यह 46 प्रतिशत था जो 1999 (27 प्रतिशत) से 1.5 गुना अधिक था। ग्रामीण क्षेत्रों में सीपीआर (42 प्रतिशत) शहरी क्षेत्रों (56 प्रतिशत) की तुलना में काफी कम है। आधुनिक परिवार नियोजन विधियों का उपयोग (32 प्रतिशत) एनएफएचएस-3 (29 प्रतिशत) के स्तर से थोड़ा बढ़ गया है। विशेष रूप से गर्भनिरोधक विधि के रूप में महिला नसबंदी उत्तर प्रदेश में एनएफएचएस -3 और एनएफएचएस -4 के बीच बदली नहीं हैं। वह 17 प्रतिशत पर स्थिर हैं। हालांकि किसी भी विधि के लिए गर्भनिरोधक का प्रचलन शिक्षा द्वारा बहुत अलग नहीं होता है, लेकिन कम शिक्षित महिलाओं की तुलना में उच्च शिक्षित महिलाओं में आधुनिक तरीकों का उपयोग अधिक होने की संभावना रहती है।

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एक बेटा होने पर गर्भनिरोधक का उपयोग अधिक-
इसके विपरीत, कम से कम 12 साल की स्कूली शिक्षा (7 प्रतिशत) वाली महिलाओं की तुलना में बिना स्कूली शिक्षा वाली महिलाओं की नसबंदी (22 प्रतिशत) होने की संभावना अधिक होती है। साथ ही, राज्य में महिलाओं द्वारा पहले से ही एक बेटा होने पर गर्भनिरोधक का उपयोग करने की अधिक संभावना है। एनएफएचएस-4 के अनुसार, दो बच्चों वाली महिलाओं में से 54 प्रतिशत कम से कम एक बेटे के साथ परिवार नियोजन की विधि का उपयोग करती हैं, जबकि दो बेटियों वाली केवल 34 प्रतिशत महिलाएं ही परिवार नियोजन का इस्तेमाल करती थी।

गौतमबुद्धनगर में सीपीआर सबसे अधिक-
जिलों के लिहाज से गौतमबुद्धनगर में सीपीआर सबसे ज्यादा 75 फीसदी है। गाजियाबाद, झांसी, मेरठ, बरेली और आगरा जैसे जिलों में सीपीआर 60 फीसदी से ऊपर है। वहीं, बलरामपुर में सबसे कम सीपीआर 2.7 फीसदी है। गोंडा, बहराइच और श्रावस्ती में यह 15 फीसदी से भी कम है।