
आखिर अखिलेश का साथ क्यों छोड़ रहे हैं यूपी के बड़े नेता, इन वोटरों को जोड़े रखना बड़ी चुनौती
लखनऊ. उत्तर प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के बड़े नेता एक-एक कर पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) का साथ छोड़ रहे हैं। लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद नेताओं का सपा (Samajwadi Party) से मोहभंग पार्टी के लिए चिंता की बात है। ऐसे में अखिलेश के लिए बड़ी चुनौती है कि अपने परंपरागत वोट बैंक को संजाएं या फिर नेताओं को दल से बांधे रखें।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Chunav 2019) में गठबंधन की हार का ठीकरा सपा पर फोड़ते हुए गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने कहा था, मुसलमानों और यादवों का सपा से मोहभंग हो चुका है। सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल यादव भी जब-तब अखिलेश पर पिता की विरासत न संभाल पाने का आरोप लगाते रहे हैं। सपा में एक के बाद एक बड़े नेता भी अब अखिलेश का साथ छोड़ रहे हैं। अमर सिंह हों या फिर रघुराज प्रताप सिंह और अब पूर्व प्रधानमंत्री स्व.चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर (Neeraj Shekhar) ने सपा को बाय-बाय कह दिया है। सवर्ण जातियों मेंं राजपूत नेताओं ने पार्टी छोडकऱ यह साबित कर दिया कि उनका साथ मुलायम से था न की अखिलेश से। पूर्वांचल के कद्दावर क्षत्रिय नेता और एमएलसी यशवंत सिंह भी कभी मुलायम के बहुत करीबी हुआ करते थे। लेकिन, आज इन सभी ने अखिलेश से दूरी बना ली है। मुलायम के विश्वस्त साथी भगवती सिंह भी अब बूढ़े हो चुके हैं। इन्हें भी अखिलेश पसंद नहीं। ऐसे में सपा में क्षत्रिय नेता अब न के बराबर रह गए हैं।
मुस्लिम वोट को संजाए रखने की चिंता
अखिलेश को मुस्लिम वोट बैंक को संजोए रखने की चिंता सता रही है। सपा अपने परंपरागत वोट बैंक को संभालने के लिए संगठन में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने की योजना बना रही है। इसके साथ ही अल्पसंख्यकों की समस्याओं को लेकर आंदोलन चलाने की भी तैयारी है। अखिलेश के पास मौजूदा वक्त में आजम खान को छोडकऱ कोई बड़ी मुस्लिम आवाज नहीं है। अभी पार्टी में कोई ऐसा मुस्लिम नेता भी नहीं दिखता जिसको बड़े स्तर पर खड़ा किया जा सके। हालांकि, सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं कि "सपा में मुस्लिम पदाधिकारी बहुत पहले से हैं। वे लगातार हमसे जुड़ रहे हैं। कोई कहीं और नहीं जा रहा है। सपा हमेशा से अल्पसंख्यकों की हितैषी रही है।
दलितों को भी नहीं जोड़ पाए
अखिलेश यादव दलितों को भी अपने साथ नहीं जोड़ पाए। आज सपा में कोई दमदार दलित नेता भी नहीं है। बसपा से सपा में आए इंद्रजीत सरोज भी अपनी उपेक्षा से दुखी हैं। वे भी निष्क्रिय पड़े हैं। लिहाजा, अब अखिलेश के सामने कई तरह की चुनौतियां हैं, जिनसे उन्हें निपटना होगा।
सपा का यादव वोटबैंक भी डांवाडोल
सपा का यादव वोटबैंक भी मौजूदा वक्त में डगमगाता दिख रहा है। यादव बिरादरी के अन्य दलों में गए कई पुराने नेता भी सपा में वापसी के बजाय बसपा को ही पसंद कर रहे हैं।
कहां गलती कर रहे हैं अखिलेश
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव की तरह राजनीति के चतुर खिलाड़ी नहीं हैं। उन्हेंं जमीनी हकीकत पता नहीं होती और वे सलाहकारों से घिरे रहते हैं। इसीलिए उनके पास सटीक सूचनाएं नहीं पहुंच पातीं। मुलायम जिस तरह से पार्टी कार्यकर्ताओं को सम्मान देते थे वह भाव भी अखिलेश में दिखता। दूसरे अखिलेश की उम्र भी अनुभवी नेताओं को जोड़े रखने में आड़े आ रही है। पुराने और खांटी नेता अखिलेश घुलमिल नहीं पाते। वे अपनी बात सहजता से उनके सामने नहीं रख पाते। यही वजह है कि कार्यकर्ता और कद्दावर नेता उनसे दूरी बना रहे हैं। सबसे बड़ी बात है कि सत्ता का मोह भी संस्कार की राजनीति पर भारी है। सत्ता पक्ष से मिलने वाली सुख सुविधाओं की वजह से भी बड़े नेता सपा का दामन छोड़ रहे हैं।
Updated on:
17 Jul 2019 05:50 pm
Published on:
17 Jul 2019 05:46 pm
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