script‘प्लेन क्रैश में ही हुई थी नेताजी की मौत’, ब्रिटिश वेबसाइट का दावा | Netaji Subhas Chandra Bose died of injuries sustained in plane crash: UK Website | Patrika News

‘प्लेन क्रैश में ही हुई थी नेताजी की मौत’, ब्रिटिश वेबसाइट का दावा

locationमहासमुंदPublished: Jan 16, 2016 07:08:00 pm

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ब्रिटेन की एक वेबसाइट ने दावा किया है कि नेताजी की मौत ताईवान में हुए विमान हादसे में ही हुई थी।  दावे को सही ठहराते हुए वेबसाइट ने कुछ कथित चश्मदीद गवाहों के बयान भी जारी किए हैं। 

नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मौत को लेकर अभी तक रहस्यमय स्थिति बनी हुआ है। बता दें कि इसे लेकर तमाम तरह के दावे सामने आ चुके हैं। अब ब्रिटेन की एक वेबसाइट ने दावा किया है कि नेताजी की मौत ताईवान में हुए विमान हादसे में ही हुई थी। अपने दावे को सही ठहराते हुए वेबसाइट ने कुछ कथित चश्मदीद गवाहों के बयान भी जारी किए हैं। 

इन चश्मदीदों में नेताजी के एक करीबी सहयोगी, दो जापानी डॉक्टर, एक दुभाषिया (इंटरप्रीटर) और एक ताईवानी नर्स शामिल है। वेबसाइट (http://www.bosefiles.info) ने कहा, ‘इस बात को लेकर इन पांचों में कोई दो राय नहीं है कि 18 अगस्त, 1945 की रात को ही बोस का देहांत हुआ था।’

अंतिम बोल, देशवासी स्वतंत्रता संघर्ष जारी रखें
बोस के सहायक कर्मी कर्नल हबीबुर रहमान ने इन हादसे के छह दिन बाद 24 अगस्त 1945 को एक लिखित और हस्ताक्षरित बयान दिया था। रहमान के मुताबिक, निधन से पहले बोस ने मुझसे कहा था कि उनका अंत समीप है। उन्होंने मुझसे उनकी ओर से यह संदेश देशवासियों को देने कहा था ‘मैं भारत की आजादी के लिए अंत तक लड़ा और अब मैं उसी प्रयास में अपना जीवन दे रहा हूं। देशवासी स्वतंत्रता संघर्ष जारी रखें जबतक कि देश स्वतंत्र न हो जाए। आजाद हिंद जिंदाबाद।’

होश आता… तो पानी पिलाती थी
मौत के एक साल बाद नर्स शान ने बयान दिया, ‘जब उनकी मृत्यु हुई। मैं उनके पास ही थी। वह पिछले साल 18 अगस्त (1945 )को चल बसे।’ नर्स शान के मुताबिक, ‘मैं सर्जिकल नर्स हूं और मैंने उनकी मृत्यु तक उनकी देखभाल की। मुझे निर्देश दिया गया था कि मैं उनके पूरे शरीर पर जैतून का तेल लगाऊं और मैंने ऐसा ही किया। जब कभी उन्हें थोड़ी देर के लिए होश आता, वह प्यास महसूस करते थे। कराहते हुए वह पानी मांगते थे। मैंने उन्हें कई बार पानी पिलाया।’

अंग्रेजी में बोल रहे थे ज्यादातर बातें
अस्पताल के प्रभारी चिकित्सा अधिकारी जापानी सेना के कैप्टन तानेयोशी योशिमी थे। वे अकेले जिंदा गवाह हैं। डॉ. योशिमी ने प्रथम कई गवाहियां हांगकांग के स्टानली गाओल में 19 अक्टूबर, 1946 को दीं जहां उन्हें ब्रिटिश अधिकारियों ने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जेल में डाल दिया था। इसे ताईवान के युद्ध अपराध संपर्क खंड के कैप्टन अल्फ्रेड टर्नर ने रिकॉर्ड किया है। उन्होंने कहा, ‘जब उन्हें बिस्तर पर लिटाया गया तब मैंने ही तेल से उनके (बोस के) शरीर का जख्म साफ किया और उनकी ड्रेसिंग की। उनका पूरा शरीर बहुत जल चुका था, सबसे गंभीर रूप से उनका सिर, छाती और जांघ जले थे। ज्यादातर बातें वह अंग्रेजी में बोल रहे थे। इसके बाद एक दुभाषिए को बुलाया गया।

जुबान से कभी दर्द की शिकायत नहीं की
नाकमुरा नामक एक दुभाषिया अस्पताल पहुंचे। नाकमुरा ने बताया कि वह अक्सर सुभाष चंद्र बोस के लिए दुभाषिए के रूप में काम कर चुके हैं और उनकी उनसे कई बार बातचीत हो चुकी है। इस बात में कहीं कोई संदेह नहीं जान पड़ा कि जिस व्यक्ति से वह बात कर रहे थे, वह सुभाष चंद्र बोस ही थे। नेताजी ने जुबान से कभी दर्द या पीडा की शिकायत नहीं थी। नेताजी का यह मानसिक संतुलन देख हम सभी दंग थे।’ उन्होंने कहा कि बोस चल बसे और कमरे में जापानी अधिकारी एक कतार में खड़े हो गये और उन्होंने उनके पार्थिव शरीर को सलामी दी। 

चौथे घंटे में बिगड़ी हालत
डॉ. योशिमी ने कहा, ‘अस्पताल में भर्ती किये जाने के चौथे घंटे में ऐसा लगा कि उनकी हालत बिगड़ रही है। वह अपनी कोमा की दशा में कुछ फुसफुसाए, बड़बड़ाए लेकिन वह कभी होश में नहीं लौटे। करीब रात ग्यारह बजे वह चल बसे।’ डॉ. योशिमी 1956 में मेजर जनरल शाह नवाज की अगुवाई वाली नेताजी जांच समिति और 1974 में न्यायमूर्ति जी डी खोसला आयोग में पेश हुए।




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