
मथुरा। ब्रजभूमि में जगह-जगह कृष्ण की लीलाएं बसी हुई हैं। यहां आज भी उन लीलाओं से जुड़े हुए प्रमाण मौजूद हैं। भगवान कृष्ण ब्रज में 11 साल 52 दिन रहे थे और इतने कम समय में उन्होंने तमाम लीलाएं कीं। नटखट कान्हा ने यहां माखन चोरी से लेकर रास रचाया, तो वहीं पूतना वध के साथ साथ यशोदा कुंड और कमल कुंड पर भी भगवान श्री कृष्ण के बाल्यावस्था की लीलाओं के किस्से आज भी देखने और सुनने को मिलते हैं। अगर आप कान्हा की नगरी घूमने आ रहे हैं तो हम आपको कान्हा की नगरी के दर्शन कराएंगे। हम आपको हर वह जगह दिखाएंगे और उस जगह के बारे में भी बताएंगे जहां भगवान श्री कृष्ण ने अपनी बाल्यावस्था में लीलाएं की। बने रहिएगा हमारे साथ हम आपको लेकर चलते हैं मथुरा नगरी की ओर। भगवान कृष्ण की इन तमाम लीलाओं पर पत्रिका की एक खास रिपोर्ट।
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ट्रेन या बस से
अगर आप मथुरा आने का मन बना रहे हैं और यहां भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं के दर्शन के लिए आ रहे हैं तो हम आपको भगवान श्री कृष्ण की लीला स्थली के दर्शन कराएंगे। अगर आप बस या ट्रेन से आ रहे हैं तो सबसे पहले आपको बता दें कि किस तरह से बस या ट्रेन से आने के बाद कान्हा की नगरी में उन स्थान तक पहुंचा जा सकता है। आज हम आपको कराएंगे भगवान की बाल लीलाओं के स्थली के दर्शन हम मथुरा से चलते हैं गोकुल की ओर जहां भगवान कृष्ण जन्म के बाद सबसे पहले पहुंचे थे। मामा कंस की जेल में जन्म लेने के बाद बासुदेव जी कान्हा को जेल से निकाल कर जंगल के रास्ते गोकुल ले गए और यही वह गोकुल है जहां भगवान कृष्ण का सबसे पहला उत्सव मनाया गया जिसे नंद उत्सव कहा जाता है। अगर आप ट्रेन से आ रहे हैं तो सर्वप्रथम आपको मथुरा की रेलवे स्टेशन पर उतरना पड़ेगा और अगर बस से आ रहे हैं तो आपको नए बस स्टैंड उतरना पड़ेगा और इन दोनों ही जगह से आपको टैक्सी या ऑटो लेकर गोकुल की तरफ योद्धा मार्ग होते हुए पहुंचेंगे औरंगाबाद और यहां से सीधा गोकुल बैराज पार करते हुए पहुंच जाएंगे गोकुल। गोकुल की तरफ जाते हुए रास्ते में सबसे पहले आपको मिलेगा पूतना कुंड। हम आपको इस कुंड की मान्यता के बारे में विस्तार से बताते हैं।
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पूतना कुंड
गोकुल में कृष्ण ने महज 6 दिन की अवस्था में ही पूतना का वध कर बृज को राक्षसों से आज़ादी की शुरुआत कर दी और ब्रजवासियों को दिखा दिया कि वे कोई साधारण बालक नहीं हैं। कहा जाता है कि कंस के अपनी सबसे बलशाली राक्षसी पूतना को भगवान श्री कृष्ण के वध के लिए भेजा। 6 दिन के नन्हे बालक का वध करने के लिए पूतना सुंदर नारी का भेष रख और अपने स्तनों पर जहर लगा कर कान्हा को दूध पिलाने आयी, लेकिन 6 दिन की उम्र में ही पूतना जैसी राक्षसी का वध कर उन्होंने यह संदेश दे दिया की जल्दी ही मथुरा और ब्रज धाम कंस के अत्याचारों से आज़ाद होने वाला है। फिर धीरे धीरे कंस द्वारा भेजे गए अनेकों राक्षसों जैसे अकासुर, वकासुर का वध कर उनको आज़ाद कर मोक्ष दिया। कहा जाता है कि इसी जगह राक्षसी पूतना ने भगवान श्री कृष्ण को यही दूध पिलाया था। इस बजह से इस कुंड को पूतना कुंड के नाम से जाना जाता है।
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यशोदा कुंड
पूतना कुंड से थोड़ा सा आगे चलेंगे तो आपको गोकुल की मार्केट में घुसने से पहले लेफ्ट हैंड पर दिखाई देगा यशोदा कुंड। इस कुंड को लंगोटी कुंड के नाम से भी जाना जाता है कुंड की मान्यता है भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ और जन्म होने के बाद वसुदेव जी उन्हें यहां गोकुल में छोड़ गए थे। भगवान श्री कृष्ण के कपड़े और लंगोटी यशोदा कुंड में धोई जाती थी और मान्यता के अनुसार आज भी यह कुंड गोकुल में स्थित है और दूर-दूर से लोग यहां इसके दर्शन के लिए आते हैं। कहा यह जाता है कि अगर इस कुंड में बच्चे के जन्म होने के बाद उसकी लंगोटी और उसके कपड़े धो लिए जाएं तो वह बच्चा कभी भी बीमार नहीं होता और उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यही कारण है कि यशोदा कुंड में आज भी लोग अपने बच्चों के कपड़े और लंगोटी धोने के लिए आते हैं।
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ये है मान्यता
अब उस स्थान की बात करेंगे जिस स्थान पर आने के लिए इंसान तो इंसान देवता भी लालायित रहते हैं। वह स्थान है बेहद पवित्र और भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं से जुड़ा सबसे अहम स्थान जहां मामा कंस की जेल से निकलने के बाद भगवान श्री कृष्ण का मां यशोदा ने गोकुल के इसी स्थान पर कृष्ण का लालन-पालन किया और यह स्थान भगवान श्री कृष्ण की सभी लीलाओं का साक्षी है। क्योंकि जन्म के बाद से ही कृष्ण इसी मंदिर में रहे थे यहीं से कृष्ण ने पालने में झूला झूला था इसी प्रांगण में कृष्ण घुटमन चलते चलते पैरों पर चलना सीखे इसीलिए इस मंदिर की एक खास मान्यता भी है जो भी श्रद्धालु इस मंदिर में बाल रूप भगवान के दर्शन करने आता है तो वह घुटनों के बल चलकर आता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने इस स्थान पर सबसे पहले चलना सीखा था और मां धरती के संपर्क में सबसे पहले आए थे इसीलिए आज भी जो भी भक्त यहां अपनी मनोकामना लेकर आता है तो वह घुटमन चलकर ही भगवान के दर्शन करने पहुंचता है। यह मंदिर बेहद अद्भुत है और बेहद प्राचीन भी । यह मंदिर यमुना के बिल्कुल किनारे पर बसा हुआ है और इस भवन से यमुना महारानी सीधे दर्शन देती है।
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कमल कुंड
यशोदा कुंड से थोड़ा सा रमणरेती आश्रम की तरफ चलेंगे तो लेफ्ट हैंड पर एक रास्ता कट कर जाता है कमल कुंड के लिए। यहां आप ऑटो और कार से भी जा सकते हैं। मिट्टी का एक बड़ा टीला इस कुंड के पास खड़ा हुआ है और कमल कुंड की मान्यता है कि जब भगवान श्री कृष्ण छोटे थे तो वह कमल पुष्पों से अधिक प्रेम करते थे और यही कारण है कि नंद बाबा गोकुल अपनी नंद भवन से कमल कुंड आकर यहां से कमल पुष्प ले जाते थे। इन्हीं कुंड में उगे हुए कमल के पुष्पों से प्रभु की सेवा पूजा किया करते थे। कमल कुंड के पास एक विशाल बगीचा था जिसमें कान्हा अपने सखाओं के साथ खेला करते थे वहीं जब होली का समय होता था तो भगवान श्री कृष्ण इस विशाल बगीचे में होली भी खेला करते थे। इस कुंड में कमल बड़ी तादात में योगा करते थे इसलिए इस कुंड का नाम कमल कुंड रखा गया और तब से लेकर आज तक भगवान को कमल पुष्प गोकुल में अर्पित किए जाते हैं।
Updated on:
06 Sept 2019 10:01 am
Published on:
06 Sept 2019 10:00 am
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