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Holi 2020: होलिका बुआ और भतीजा प्रहलाद इस बार होली को बनाएंगे पर्यावरण फ्रेंडली

Highlights होलिका दहन में मिटटी और चाक की मूर्ति मेरठ और आसपास मूर्तियों की डिमांड बढ़ी प्रतिमा की लागत 15 सौ रुपये तक आ रही

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केपी त्रिपाठी, मेरठ। मार्च शुरू होते ही होली की खुमारी वातावरण में छानी शुरू हो जाती है। चारों ओर भीनी-भीनी रंगों की खुशबू और जगह-जगह होली की तैयारी लोगों में और जोश पैदा कर देता है। होली के मौके पर पर्यावरण प्रेमी भी लकडिय़ों को न जलाने और पानी की बर्बादी न करने की सलाह लोगों को देते हैं।

होली पर बुआ होलिका और भतीजे प्रहलाद को जलाने की परंपरा सदियों पुरानी है। होलिका की मूर्ति को गत्ते और कागजों के अलावा चमकीली पन्नी से बनाया जाता है, जो कि जलने के बाद वातावरण को प्रदूषित करती है। इस बार मेरठ में बुआ-भतीजे की ऐसी मूर्ति बनाई जा रही है जो कि जलने के साथ ही वातावरण को प्रदूषण से बचाने का काम करेगी। मूर्ति बनाने वाले कारीगर इन दिनों दिन-रात एक किए हुए हैं। उनके पास इन मूर्तियों के आर्डर सिर्फ मेरठ ही नहीं बल्कि मेरठ के आसपास के जिलों से भी आ रहे हैं।

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बुआ होलिका और भतीजा प्रहलाद की बनी इस मूर्ति की खासियत है कि ये मूर्ति मिटटी और चाक की बनी हुई है। जो कि होली दहन के समय किसी प्रकार का कोई प्रदूषण नहीं फैलाएगी। मूर्ति बनाने वाले राज प्रजापति कहते हैं कि इन मूर्तियों को वातावरण को ऐसे बनाया गया है जिससे कि प्रदूषण नहीं फैले। उन्होंने बताया कि उनके पास इस समय करीब 2400 मूर्तियों का आर्डर है। जो कि मेरठ के अलावा अन्य जिलों से भी है।

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वह कहते हैं कि एक मूर्ति केा तैयार करने में करीब 15 सौ रूपये लागत आती है। एक मूर्ति को बनाने में दो दिन लग जाते हैं। पहले लोग होली में होलिका और प्रहलाद की मूर्ति को कागज और चमकीली पन्नी की बनी रखते थे। जिससे प्रदूषण होता था। इसके साथ ही आसपास के लोगों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता था, लेकिन ये मूर्तियां पूरी तरह से पर्यावरण फ्रेंडली हैं। इनसे पर्यावरण को किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। उन्होंने बताया कि ये मूर्ति होली में जलकर पूरी तरह से राख हो जाएगा। मिटटी और चाक किसी प्रकार का कोई प्रदूषण वातावरण में नहीं छोड़ेगा।