
रालोद के लिए संजीवनी से कम नहीं कैराना उपचुनाव, कर ली है एेसी तैयारी
मेरठ। राष्ट्रीय लोकदल का वेस्ट यूपी में कभी डंका बजता था, करीब एक दशक से यह पार्टी राजनीति के डायलेसिस पर है। प्रदेश में फुलपुर और गोरखपुर उपचुनाव के बाद बदले हालातों ने रालोद के लिए संजीवनी का काम किया। अब इस पार्टी के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं में गजब का उत्साह देखने को मिल रहा है। भाजपा के खिलाफ खड़े हुए विपक्षी दलों के गठबंधन के जरिए इस पार्टी के लिए अपना सियासी वजूद बचाने का अच्छा मौका है। अजित सिंह और उनके पुत्र जयंत चौधरी के लिए कैराना और नूरपुर में अपने राजनैतिक अनुभव और खोए जनाधार को वापस पाने का अच्छा मौका है। यदि इस बार चूके तो गठबंधन में भी कोई इस पार्टी और दोनों पिता-पु़त्र को पूछने वाला भी कोई नहीं होगा।
साझा उम्मीदवार उतारकर जीती सियासी लड़ाई
फूलपुर और गोरखपुर सीट की तर्ज पर विपक्षी एकता का संदेश देने के लिए कैराना लोकसभा सीट पर आएलडी ने साझा उम्मीदवार उतारने की सियासी लड़ाई तो जीत ली है, लेकिन इस सीट पर अब आरएलडी को अपने सियासी वजूद की जंग लड़नी होगी। पार्टी के लिए यह चुनाव संजीवनी भी साबित हो सकता है और अस्तित्व के लिए खतरा भी। रालोद के महासचिव डा. मैराजुद्दीन इस चुनाव को पार्टी के लिए अच्छा अवसर और जातिवाद की लड़ाई लड़वाने वाली भाजपा को सबक सिखाने वाला मान रहे हैं। उनका कहना है कि जो काम बहुत पहले हो जाना चाहिए था, वह अब हो रहा है। उन्होंने कहा कि अगर भाजपा के खिलाफ सभी राजनैतिक पार्टियां अपने निजी स्वार्थ को एक तरफ रख 2017 में ही हाथ मिला लेती, तो आज प्रदेश की तस्वीर कुछ और होती।
जयंत ने संभाली है तबस्सुम के चुनाव प्रचार की कमान
पार्टी के संभावित नफा-नुकसान को भांपते हुए आरएलडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयंत चौधरी ने खुद तबस्सुम के चुनाव प्रचार की कमान संभाली है। वह कैराना में ही डेरा डाले हुए हैं। बीजेपी प्रत्याशी को मात देने और जाट वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए सभी चुनावी पैंतरे आजमा रहे हैं। समाजवादी पार्टी और बसपा दोनों पार्टियों को इस चुनाव की हारजीत से कोई नुकसान नहीं होने वाला।
भाजपा को हराना सबसे बड़ी जीत
चुनाव जीतने पर सर्वाधिक लाभ में रहने वाली पार्टी समाजवादी होगी। ऐसा कहना है सपा के कद्दावर नेता शाहिद मंजूर का। उनका कहना है हम भाजपा को हरा पाए यही हमारी सबसे बड़ी जीत होगी। 2019 के चुनाव के सेमीफाइनल माने जा रहे कैराना उपचुनाव में रालोद के लिए करो या मरो सरीखा माना जा रहा है।
जयंत संभाले हुए चुनाव प्रचार की बागडोर
अभी तक खुद इस चुनाव में कूदने की तमन्ना रखने वाले और एक तरह से रालोद की कमान संभाल चुके जयंत चौधरी के कंधों पर चुनाव प्रचार का सारा दारमोदार है। रालोद के एक राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारी का मानना है कि रालोद विपक्ष की साझा ताकत के दम पर जीत हासिल करने के लिए मैदान में उतर तो गई है, लेकिन अलग-अलग राय रखने वाले विपक्षी दलों को एक सूत्र में पिरोकर रखना, किसान, मुसलमान, दलित और पिछड़े का गठजोड़ बनाना, चुनाव को ध्रुवीकरण का राह पर जाने से रोकना आदि बड़े मुद्दे हैं। डा. मैराजुद्दीन का कहना है कि जीत मिलती है, तब पश्चिम में रालोद का डंका बजेगा। यही नहीं, 2019 के आम चुनाव में राजनीतिक समीकरणों का बदलाव भी काफी मायने रखेगा।
Published on:
25 May 2018 01:41 pm
बड़ी खबरें
View Allमेरठ
उत्तर प्रदेश
ट्रेंडिंग
