नेपाल में भी इन दिनों चीन China में निर्मित वैक्सीन लगाई जा रही है। इसलिए व्यापारी वर्ग से लेकर चीन में पढ़ाई कर रहे छात्र तक नेपाल जाकर गुपचुप तरीके से चीनी वैक्सीन लगवा आए और फिर चीन की यात्रा भी की। मेरठ के ही एक मीट व्यापारी के पास एक्सपोर्ट लाइसेंस है जिसके चलते वह विदेशों में भी मीट की सप्लाई करते हैं। उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि तीन महीने पहले उन्हें चीन के शहर सिचुआन और गुइयांग जाना था। जिसके लिए उन्होंने वीजा के लिए आवेदन किया तो चीनी दूतावास ने अपनी
वेबसाइट पर इन नियमों का ज़िक्र किया हुआ था जिसके मुताबिक चीन अपने यहां उन्हीं लोगों को वीज़ा दे रहा है जिन्होंने चीन में निर्मित वैक्सीन लगवाई है। उन्होंने बताया कि यह ऐसा नियम था कि माना कैसे जाए। उन्होंने बताया कि फिर पता चला कि नेपाल में चीनी वैक्सीन लगाई जाती है। यह भारतीयों को भी उपलब्ध हो जाती है। इसके बाद वे नेपाल गए और वहां पर चीनी वैक्सीन लगवाई। तब जाकर उन्हें चीनी वीजा प्राप्त हुआ। ये मामला सिर्फ एक मीट व्यापारी का ही नहीं बल्कि अन्य कारोबारियों के अलावा छात्रों का भी है। ये लोग नेपाल में आकर चीन में निर्मित वैक्सीन लगवा रहे हैं।
हालांकि भारत में कोविशील्ड और कोवैक्सीन का निर्माण हो रहा है। इसके अलावा रूसी वैक्सीन स्पुतनिक-वी को भी आपातकालीन परिस्थितियों में इस्तेमाल की अनुमति दी जा चुकी है। बावजूद इसके, भारत में सभी के लिए वैक्सीन अभी उपलब्ध नहीं है। इसलिए जिन भारतीयों को चीन जाना है वे वैक्सीन लगवाने के लिए काठमांडू पहुंच रहे हैं।
काठमांडू स्थित भारतीय दूतावास से पिछले कुछ दिनों में अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करने की संख्या में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। चीन से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही एक छात्रा ने बताया कि वह अपने पिता के साथ काठमांडू गई और वहां पर उसने वैक्सीन लगवाई। उसने बताया कि नेपाल में 31 मार्च से 19 अप्रैल के बीच 40 से 59 साल के लोगों को वैक्सीन दिया जा रहा है। इसके अलावा काम, कारोबार, पारिवारिक वजहों से या फिर इलाज के लिए चीन जाने वाले लोगों को भी वैक्सीन दी जा रही है। चीन के विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों को भी वैक्सीन दी जा रही है।