script14 अगस्त 1947 की रात गुलजार था यामीन बाजार, बुढ़ानागेट में यूनूस ने छानी थी बूंदी और पहलवान ने बनाए थे लडडू | Meerut Yameen Bazar was buzzing on the night of 14 August 1947 | Patrika News
मेरठ

14 अगस्त 1947 की रात गुलजार था यामीन बाजार, बुढ़ानागेट में यूनूस ने छानी थी बूंदी और पहलवान ने बनाए थे लडडू

मेरठ महानगर के बीचोबीच जो आज जलीकोठी है वह 1900 के शुरूआती दौर में यामीन बाजार रोड कहलाती थी। जुलाई 1947 को जब भारत के आजादी की तारीख मुकर्रर हुई तो देश के अन्य हिस्सों के साथ ही मेरठ में भी आजादी के जश्न की तैयारी होने लगी। 14 अगस्त 1947 को मेरठ का यामीन बाजार इलाका गुलजार था। देश के बंटवारे के बाद भी यामीन बाजार पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ा । यामीन बाजार से कुछ दूरी पर बुढाना गेट में मौ0 यूनूस जो कि उस दौरान 17 साल के थे लडडू बनाने के लिए बूंदी छान रहे थे और उनके दोस्त पहलवान लडडू बना रहे थे।

मेरठAug 14, 2022 / 08:52 pm

Kamta Tripathi

14 अगस्त 1947 की रात गुलजार था यामीन बाजार, बुढ़ानागेट में यूनूस ने छानी थी बूंदी और पहलवान ने बनाए थे लडडू

14 अगस्त 1947 की रात गुलजार था यामीन बाजार, बुढ़ानागेट में यूनूस ने छानी थी बूंदी और पहलवान ने बनाए थे लडडू

15 अगस्त 1947 की आजादी का वो सूरज जिसने देखा उसकी खुशी वो ही बया कर सकते हैं। देश की आजादी के सूरज की किरण को देखने को लिए पता नहीं कितने शहीदों ने अपनी शहादत दी और फांसी के फंदे पर चढ़ गए। देश की आजादी के लिए मई 1857 को मेरठ में बगावत कर नींव रखी गई थी। उसके बाद से शुरू हुए आजादी के आंदोलनों के बाद आखिरकार 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली। मेरठ में 14 अगस्त 1947 की रात से ही चारों तरफ आजादी का जश्न लोगों ने मनाना शुरू कर दिया था। मेरठ के बुढानागेट पर लडडू बन रहे थे और इनको बनाने वाले थे यूनूस और पहलवान जैसे दो दोस्त।
14 अगस्त 1947 की रात से यूनूस लडडू बनाने के लिए कढाई में बेसन की बूंदियां छान रहे थे और उनके दोस्त पहलवान लडडू बना रहे थे। हालांकि आजादी के 75 साल के बाद आज ना तो यूनूस जिंदा हैं और ना पहलवान। लेकिन यूनूस के बेटे शमसुद्दीन बताते हैं कि उनके वालिद ने उन्हें आजादी के दिन का वो किस्सा सुनाया जो आज तक उनको याद है। उन्होंने इस किस्से को बया किया। बकौल शमसुद्दीन उनके वालिद यूनूस बताया करते थे कि 14 अगस्त 1947 की रात को मेरठ में कोई भी सोया नहीं था क्योंकि सभी को आजादी के पहले सूरज की किरण देखनी थी। मेरठ के बुढ़ानागेट से लेकर यामीन बाजार रोड तक हर कोई देश आजाद होने की खुशी में झूम रहा था। शमसुद्दीन बताते हैं कि उनके वालिद यूनूस बताते थे कि मेरठ में चारों ओर देश आजाद होने का माहौल था। बच्चे हाथ में तिरंगा लेकर घूम रहे थे और पूरी यामीन बाजार रोड को सजाया गया था। 1947 के दौर की यामीन बाजार रोड जो कि आज जलीकोठी कहलाती है 14 अगस्त की रात रोशनी से नहाई हुई थी।

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आजादी की सुबह होते ही सभी मिलने लगे थे गले और बंटी थी मिठाइयां
शमशुददीन बताते हैं कि उनके वालिद यूनूस ने बताया कि 15 अगस्त 1947 की सुबह होते ही सभी लोग एक-दूसरे से गले मिलने लगे थे और सभी भारत की आजादी पर मिठाइयां बांट रहे थे। पूरी रात जो लडडू बनाए गए थे वो भी कम पड़ गए थे। 15 अगस्त के दिन हर घर में तिरंगा लहरा रहा था। आजादी के इन दिन हिंदू-मुस्लिम की कोई बात नहीं थी। हर कोई भारतीय था। 15 अगस्त की रात में भी मोमबत्ती और दिए जलाकर घरों को रोशन किया गया था।

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