
मेरठ. सूफीज्म का मतलब है हकीकत का सलाम और मोहब्बत का पैगाम, ये बात एक हजार साल पुरानी बाले मियां की मजार के सज्जादनशी कारी अशरफ ने कही। सूफियों के इस कार्यक्रम के दौरान सभी ने हिंदू-मुस्लिम भाईचारें और देश की एकता की बातें कहीं। साथ ही जिन मुस्लिम लोगों ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए अपना बलिदान दिया उनके बारे में भी सूफियाना अंदाज में बताया। कार्यक्रम के दौरान कारी अशरफ ने कहा कि हमारे बुजुर्गों ने यही काम किया है उन्होंने खुद कम खाया और दूसरों को अधिक खिलाया। इसके साथ ही कहा कि हमारें यहां कोई जाति, धर्म भेदभाव नहीं होता।
बता दें कि बाले मिया की मजार मेरठ में स्थित है। इसके करीब एक हजार साल पुरानी बाले मिया की मजार पर कार्यक्रम हुआ। जिसमें एक तरफ चंडी देवी का मंदिर है तो दूसरी तरफ ये मजार है। इसके साथ ही कार्यक्रम के दौरान कारी अशरफ ने कहा कि सबसे अच्छी तरह से पेश आओ, झुक के मिलने में सरबलंदी है, सारी दुनिया-ए-औलादे आदम,सारी दुनिया में भाईबंदी है। उन्होंने कहा कि कोई एक शक्सियत है, उसके हम मानने वाले हैं, उसके बाद हमें वापस चले जाना है।
उन्होंने बताया कि बाले मियां हिंदुस्तान में सन् 1034 में आए थे। उनकी जिंदगी का एक ही मकसद था कि ये आपसी झगड़े, भेदभाव, जाति-धर्म, ऊंच-नीच की कोई बात नहीं है। कोई एक हमें पैदा करने वाला है, सबके के साथ प्यार, मोहब्बत, भाईचारे से रहना है। एक-दूसरे की तकलीफ और खुशी में शामिल होना है। इसी मिशन को लेकर वो हिंदुस्तान में आए थे। उनके इस मिशन को कुछ लोगों ने पंसद जो उनके अनुयायी हो गए और जिन्होंने उन्हें पसंद नहीं किया, उन्होंने उनके साथ झगड़े किया और उनकी शहादत हो गई। एक हजार साल होने पर भी लोगों के दिलों में उनके लिए वहीं जज्बा और प्यार है।
इसके साथ ही सूफी राशिद ने कहा कि हमारे सूफीज्म में कोई भेदभाव, ऊंच-नीच और जाति-धर्म नहीं होता है। हम लोग तरह-तरह से लोगों की मदद कर रहे है। कोई बीमार है, कोई भूखा है। बहरहाल, सब लोग लोगों की मदद किसी न किसी तरीके से कर रहे हैं। सूफी दिलबर ने कहा कि हम आतंकवाद के खिलाफ, आतंकियों के खिलाफ, आतंकवाद की बात करने वालों के सख्त खिलाफ है। हम उन्हें पसंद नहीं करते हैं। हमारे किसी भी ऐसे आदमी से ताल्लुक नहीं है। जो आतंकवादी श्रेणी से जुड़ा हुआ हो।
कार्यक्रम के मौके पर दिल्ली हजरत निजामुदीन औलिया से सूफी मोहम्मद अहमद, हजरत निजामुद्दीन औलिया से सूफी अहसान जो वहां सूफी गायक और कव्वाली कहते हैं, दरगाह कालियर से सूफी अजीम, दरगाह बाले मिया से सूफी दिलबर, दरगाह बाले मिया से सूफी कबीर और दरगाह अजमेर शरीफ में उर्स के दौरान कव्वाली और सूफी गायक सूफी राशिद मौजूद रहे।
Published on:
29 Oct 2021 09:26 pm
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