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1860 में बना था बना अडल्ट्री कानून, सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल बाद किया खत्म

सर्वोच्च अदालत ने गुरुवार को एक अहम फैसले में व्यभिचार (अडल्टरी) कानून को असंवैधानिक करार देते हुए इसे अपराध मानने से इनकार कर दिया है।

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Mohit sharma

Sep 27, 2018

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1860 में बना था बना अडल्ट्री कानून, सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल बाद किया खत्म

नई दिल्ली। सर्वोच्च अदालत ने गुरुवार को एक अहम फैसले में व्यभिचार (अडल्टरी) कानून को असंवैधानिक करार देते हुए इसे अपराध मानने से इनकार कर दिया है। अदालत की पांच जजों की पीठ ने कहा कि यह कानून असंवैधानिक और मनमाने ढंग से लागू किया गया था। आपको बता दें कि 1860 में बना अडल्ट्री यानी व्याभिचार लगभग 158 साल पुराना था। इस कानून के तहत अगर कोई पुरुष किसी दूसरी विवाहित औरत के साथ उसकी सहमति से शारीरिक संबंध बनाता है, तो महिला के पति की शिकायत पर पुरुष को व्याभिचार कानून के तहत गुनहगार माना जाता था। ऐसा करने पर पुरुष को पांच साल की कैद और जुर्माना या फिर दोनों ही सज़ा का प्रवाधान था।

सुप्रीम कोर्ट ने खत्म की आईपीसी की धारा 497, व्यभिचार को अपराध मानने से इनकार

कोर्ट ने क्या-क्या कहा

- महिला के शरीर पर उसका अपना अधिकार है। इससे समझौता नहीं किया जा सकता है।

- यह पितृसत्तात्मक समाज का परिणाम है। महिला पर किसी तरह की शर्तें नहीं थोपी जा सकती।

-पवित्रता केवल महिलाओं के लिए नहीं है। यह समान रूप से पतियों पर भी लागू होती है।

- अब अडल्ट्री तलाक का आधार बना रहेगा, लेकिन अपराध नहीं माना जाएगा।

- यह समय ये कहने का है कि पति महिला का मालिक नहीं है।

- कोर्ट ने कहा कि जो प्रावधान किसी व्यक्ति के सम्मान और महिलाओं के समानता के अधिकार को प्रभावित करता है, वो संवैधानिक नहीं माना जा सकता।

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क्या था व्यभिचार कानून?

दरअसल, भारतीय कानून में 158 साल पुरानी आईपीसी की धारा-497 के तहत अगर कोई विवाहित पुरुष किसी गैर-विवाहित महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाता है आपसी रजामंदी से तो उस महिला का पति एडल्टरी (व्यभिचार) कानून के तहत उक्त पुरुष के खिलाफ केस दर्ज करा सकता था। जबकि इसी कानून के अनंतर्गत वह व्यक्ति अपनी पत्नी के खिलाफ कोई केस फाइल नहीं कर सकता था। यहां तक कि विवाहेत्तर संबंध में लिप्त उक्त पुरुष की पत्नी भी दूसरी महिला के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकती थी। कानून में यह भी प्रावधान था कि विवाहेतर संबंध में लिप्त पाए जाने वाले पुरुष के खिलाफ केवल उसकी साथी महिला का पति की ओर से से ही कार्रवाई की जा सकती थी। किसी अन्य की ओर से उस पुरुष के खिलाफ कोई कानूनी कदम नहीं उठाया जा सकता था।


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