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Chamoli में मंडरा रहा एक और बड़ा खतरा, वैज्ञानिकों का अलर्ट- हरिद्वार समेत कई शहरों का मिट सकता है नामोनिशान

Chamoli में मंडरा रहा एक और बड़ा खतरा वैज्ञानिकों का दावा खतरे की जद में शिलासमुद्र ग्लेशियर इस ग्लेशियर के टूटने से हरिद्वार समेत कई शहरों का मिट जाएगा नामोनिशान

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shilasamudra Glacier view

शिलासमुद्र ग्लेशियर का नजारा ( फाइल फोटो)

नई दिल्ली। उत्तराखंड ( Uttarakhand ) में ग्लेशियर टूटने ( Glacier Burst ) से मची तबाही ने हर किसी की चिंता बढ़ा दी है। बताया जा रहा है कि ऐसा ही हाल रहा तो आने वाले समय में हिमालय गायब भी हो सकता है। यही नहीं इस बीच वैज्ञानिकों ने एक और बड़ी चेतावनी जारी की है। चमोली ( Chamoli ) में आई इस तबाही के बाद यहां एक और बड़ा खतरा मंडरा रहा है।

चमोली जिले में नंदाकिनी नदी के किनारे शिलासमुद्र ग्लेशियर खतरे की जद में है। पर्यावरण विशेषज्ञों की मानें तो आने वाले समय में इस ग्लेशियर के टूटने से भी बड़ी तबाही मच सकती है। खास तौर पर उत्तराखंड में हरिद्वार समेत कई शहरों का नामोनिशान तक मिट सकता है।

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ऐसे बरपा सकता है कहर
पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक शिलासमुद्र के ठीक नीचे ग्लेशियर की तलहटी पर बने दो छेद और उसके आसपास आई दरारें बड़े खतरे की घंटी है। जो कभी भी कहर बरपा सकती हैं। कोई भी बड़ा भूकंप आया तो ऐसे में शिलासमुद्र ग्लेशियर के फटने के आसार काफी बढ़ जाते हैं और ऐसा हुआ तो सितेल, कनोल, घाट, नंदप्रयाग से लेकर हरिद्वार तक कई शहरों का नामोनिशान मिट सकता है।

8 किमी क्षेत्र में फैला है शिलासमुद्र ग्लेशियर
शिलासमुद्र ग्लेशियर लगभग आठ किलोमीटर परिक्षेत्र में फैला है। ये ग्लेशियर नंदा राजजात का 16वां पड़ाव है। धार्मिक महत्ता का प्रतीक होने के साथ पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहां पर दुर्लभ प्रकार के जीव जंतु पाए जाते हैं, जो गढ़वाल हिमालय के ईकोलॉजी सिस्टम में भी महत्वपूर्ण भागीदारी निभाते हैं।

धीरे-धीरे बढ़ रहा छेद
ग्लेशियर के ऊपरी हिस्से में सैकड़ों टनों के हजारों पत्थरों की भरमार है। लेकिन पिछले कुछ समय में इसकी तलहटी पर एक बड़ा गोलाकर छेद बन रहा है। 2000 से 2014 तक इसका आकार छोटा था, लेकिन तीर्थयात्रियों की मानें तो धीरे-धीरे इसके आकार में बढ़ोतरी हो रही है।

हल्के भूकंप भी खतरे की घंटी
दरअसल उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हल्के भूंकप ग्लेशियरों के लिए खतरनाक हैं। गढ़वाल हिमालय की सतहें फिलहाल कमजोर हैं। वहीं पिछले कुछ दशकों में गंगोत्री, पिंडर, नंदाकिनी और मंदाकिनी ग्लेशियरों के पिघलने में तेजी आई है।

इस वजह से बढ़ रहा खतरा
पर्यावरण विशेषज्ञ प्रो. मोहन पंवार के मुताबिक इस खतरे के पीछे बड़ा कारण धरती के तापमान में बढ़ोतरी होना है। समय रहते यदि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना और वनों का अनियोजित दोहन बंद नहीं हुआ तो परिणाम खतरनाक हो सकते हैं।

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केदारताल से गंगोत्री धाम तबाही की आशंका
गंगोत्री वैली में वर्तमान में थलय सागर हिमशिखर की तलहटी में स्थित केदार ताल भी भविष्य में बड़ी आपदा की ओर इशारा कर रहा है। यहां जाने वाले पर्वतारोहियों ने इसको लेकर अलर्ट भी किया है।

उनकी मानें तो मलबा भरने से ताल का जलस्तर काफी ऊंचा हो गया है। ऐसे में कभी ताल टूटा तो निकलने वाली केदारगंगा में उफान आने से गंगोत्री धाम में तबाही की आशंका बनी हुई है।


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