
नई दिल्ली। बीते 7 सितंबर की रात जब न केवल पूरा देश बल्कि दुनिया चंद्रयान-2 के उस ऐतिहासिक लम्हे को देखने में जुटी थी, आखिरी मौके पर वो हुआ जिसकी आम आदमी ने कल्पना नहीं की थी। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह में पहली बार पहुंचने वाले पृथ्वी के किसी देश के लैंडर (विक्रम) का संपर्क इसरो से तब टूट गया जब वो केवल 2.1 किलोमीटर की दूरी पर था। यों तो इसरो ने इस बाबत अभी तक कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी है कि ऐसा क्यों हुआ, लेकिन यहां के पूर्व वैज्ञानिक इसके पीछे कई तर्क देते हैं।
बीबीसी ने अपनी रिपोर्ट में इसरो के कई पूर्व वैज्ञानिकों के हवाले से वो संभावित कारण बताए हैं, जिनके चलते विक्रम लैंडर का संपर्क ऑर्बिटर और इसरो से खत्म हो गया। आइए जानते हैं क्या है वैज्ञानिकों की राय।
हालांकि इससे पहले यह जानना जरूरी है कि चंद्रयान-2 ने बीते 20 अगस्त को चंद्रमा की सबसे बहरी कक्षा में प्रवेश किया था और इसके बाद इसके भीतर मौजूद विक्रम लैंडर को 7 सितंबर की रात 1.30 बजे से 2.30 बजे तक चंद्रमा की सतह पर पहुंचना था। ऐसा हो नहीं पाया और फिर बाद में ऑर्बिटर ने विक्रम लैंडर को चंद्रमा की सतह पर स्पॉट कर लिया, लेकिन उससे संपर्क साधने में सफल नहीं हो सका।
विक्रम लैंडर के चंद्रमा की सतह पर उतरने की प्रक्रिया को स्क्रीन पर मॉनिटर किया जा रहा था। इससे लैंडर की वो गति केे आंकड़े जुटाए जा रहे थे। यह पूरी घटना टेलीविजन पर लाइव ब्रॉडकास्ट की जा रही थी।
विक्रम लैंडर के ऑर्बिटर से निकलने के बाद जैसे ही काउंटडाउन शुरू हुआ, इसका वेग 1,640 मीटर प्रति सेकेंड था। वैज्ञानिकों का मानना है कि पहले दो चरणों में चंद्रमा की सतह पर पहुंचने के लिए यह पूर्वनियोजित गति के साथ उतर था। यह डेक्सीलरेशन (मंदन यानी एक्सीलरेशन की उल्टी प्रक्रिया) के शुरुआती दो चरणों में बिल्कुल ठीक था, जिसे रफ ब्रेकिंग और फाइन ब्रेकिंग कहा जाता है।
इसरो के पूर्व सदस्य प्रो. रद्दम नरसिम्हा ने बताया कि लैंडिंग की प्रक्रिया में असल समस्या अंतिम चरण जिसे 'हॉवरिंग' कहा जाता है, के दौरान सामने आई। उनके मुताबिक यह थ्योरी स्क्रीन पर नजर आईं रीडिंग पर आधारित है।
उन्होंने बताया कि एक अच्छी बात थी कि लैंडर ने तेजी से गिरना शुरू कर दिया था। ऐसा माना जा रहा था कि जब यह चंद्रमा की सतह को छुए तब इसे दो मीटर प्रति सेकेंड के वेग से होना चाहिए। लेकिन चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण ने संभवता इसे ज्यादा तेजी से गिरने पर मजबूर किया होगा।
नरसिम्हा का मानना है कि सेंट्रल इंजन संभवता वह थ्रस्ट पैदा नहीं कर रहा था जिसकी इसे जरूरत थी, और इसलिए इसका डेक्सीलरेशन वह नहीं था, जो होना चाहिए था। और इसके परिणामस्वरूप लैंडर के साथ संपर्क खत्म हो गया।
वहीं, भारत के पहले चंद्र अभियान की प्रमुख मिलस्वामी अन्नादुरई ने कहा कि विक्रम लैंडर की वेलोसिटी प्रोफाइल (वेग का ग्राफ) यह संकेत देता है कि इसमें किसी चीज ने काम सही से करना बंद कर दिया और यह चंद्रमा की ओर तेजी से गिरने लगा।
उन्होंने बताया कि संभवता लैंडर का ओरिएंटेशन गड़बड़ा गया होगा। जब एक बार डाटा देखेंगे तो यह साफतौर पर कहा जा सकेगा कि क्या हुआ होगा, लेकिन लगता है कि या तो किसी सेंसर ने या फिर थ्रस्टर ने काम करना बंद कर दिया हो या इसमें गड़बड़ी आ गई हो।
जबकि ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) में न्यूक्लियर एंड पॉलिसी इनीशिएटिव की प्रमुख डॉ. राजेश्वरी राजगोपालन का भी मानना है कि संपर्क खत्म होने का सबसे संभावित कारण इंजन में गड़बड़ी पैदा होना है।
उन्होंने कहा कि आंकड़ों की गैरमौजूदगी में किसी निष्कर्स पर पहुंचना मुश्किल है, लेकिन स्क्रीन पर दिखाए गए आंकड़े यह साफ बताते हैं कि कुछ गड़बड़ था। दूसरी संभावना यह भी हो सकती है कि जब आप बेहद तेज रफ्तार के साथ लैंडिंग करते हैं, तो आप काफी धूल उड़ाते हैं जो गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के कारण स्पेसक्राफ्ट को हिला सकती है। लेकिन यहां पर किसी एक इंजन की गड़बड़ी वजह नजर आती है।
यहां इस बात पर ध्यान देना बहुत जरूरी है कि अब तक इसरो द्वारा किए गए प्रयासों में चंद्रयान-2 सबसे कठिन अभियान था।
विक्रम लैंडर अपने भीतर 27 किलोग्राम वजनी रोवर (प्रज्ञान) रखे हुए था, जिसे चंद्रमा की सतह पर जाकर शोध करने थे।
यह प्रज्ञान रोवर लैंडर से 500 मीटर की दूरी तक घूम सकता है और इसमें लगे हाई रिजोल्यूशन कैमरे और सेंसर तस्वीरें और आंकड़े विश्लेषण के लिए पृथ्वी पर भेजते।
चंद्रमा के लिए भेजे गए इस अभियान का मकसद चंद्रमा की सतह, वहां पानी की खोज और खनिज समेत तमाम चीजों की खोज करना था।
Updated on:
28 Sept 2019 07:31 pm
Published on:
09 Sept 2019 08:53 pm
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