
लॉकडाउन के बाद कारोबारी इंडस्ट्री को चालू करना चाहते हैं लेकिन प्रवासी मजदूर काम पर लौटने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं ।
नई दिल्ली। देशभर में अनलॉक योजना पर अमल के बाद उद्योगों को फिर से चालू करना कारोबारियों के लिए आसान नहीं है। व्यापार-उद्योग ( Trade and industry ) को खोलने की कोशिशें तो हो रही हैं, लेकिन जरूरी श्रमिकों के अभाव ( Less Labours ) में संभव नहीं हो रहा है।
एक अनुमान के मुताबिक देश में 8 करोड़ मजदूर हैं। लॉकडाउन में एक चौथाई से अधिक मजदूर घर चले गए। फिलहाल प्रवासी मजदूर ( Migrant Laborers ) काम पर जल्द लौटने के लिए तैयार नहीं हैं। अगर कुछ मजदूर लौट भी रहे हैं तो उद्योगों की जरूरत के हिसाब से शहरों में लौटने वालों का आंकड़ा न के बराबर है।
प्रवासी मजदूर लौटने को तैयार नहीं
सूरत में कारोबारियों ( Surat Businessman ) के लिए मुश्किल से 25 हजार श्रमिकों को लाना संभव हो पाया है। जबकि 10 लाख प्रवासी मजदूर लॉकडाउन के बाद घर लौट गए थे। श्रमिकों के कड़वे अनुभव, उनके तेवर और गृह राज्यों में मिले विकल्पों की वजह से कारोबारियों के लिए अपने व्यवसाय को फिर से चालू करना चुनौतीपूर्ण हो गया है।
जानकारी के मुताबिक यही हाल रहा तो गुजरात ( Gujrat ) के अलावा मुंबई से 30 लाख श्रमिक, अकेले भिवंडी से 10 लाख और कर्नाटक, तमिलनाडु, हरियाणा व पंजाब में प्रवासियों पर निर्भर इंडस्ट्री ( Migrants dependent industry ) 4 महीने तक शुरू नहीं हो पाएगी।
टैक्सटाइल और हीरा नगरी आर्थिक सुनामी की चपेट में
सूरत, अहमदाबाद, वापी, सिलवासा, दहेज, भरुच, अंकलेश्वर, मोरबी, राजकोट में उद्योगों के गलियारों में सन्नाटा ( Silence in the corridors of industries ) पसरा है। गुजरात में 15% उद्योग शुरू करने की कोशिश की गई मगर रफ्तार नहीं पकड़ सके। सूरत में टैक्सटाइल की 350 मिलों में से 40 मिलें अपने ग्राहकों से बकाया निकालने को शुरू भी हुईं, मगर उत्पादन से ज्यादा खर्च आने पर फिर बंद करनी पड़ीं। श्रमिकों के अभाव ( Lack of Labours ) में 6.5 लाख लूम्स मशीनों में से मात्र 70 हजार ही चल रही हैं।
हीरा और टैक्सटाइल उद्योग ( Diamond and Textile Industries ) से 70% प्रवासी श्रमिक यूपी, बिहार, झारखंड, उड़ीसा आदि राज्यों में अपने घर लौट गए और इस समय आने के इच्छुक नहीं हैं।
ओडिशा में कामगारों ने बनाया संगठन
ओडिशा के प्रवासी श्रमिकों ने अपना संगठन बना लिया ( Workers formed their own organization ) है। उनका कहना है कि ओडिशा सरकार अब गुजरात सरकार से बात कर ओडिशा के श्रमिकों की सुरक्षा का पूरा इंतजाम करवा देगी, तभी लौटेंगे।
ठेकेदारों को खरी खोटी सुना रहे श्रमिक
श्रमिकों को लेने के लिए गए लेबर कांट्रेक्टर ( Labor contractor ) को यूपी, बिहार, उड़ीसा आदि राज्यों में गांव के लोग जलील कर रहे हैं। कई गांवों से तो इन्हें भगा दिया गया। किराया देने वाहन भेजने और एडवांस रुपए देने के बाद भी दीपावली से पहले आने को तैयार नहीं हैं।
यूपी की सरकार ने श्रमिकों को लाने के पहले रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य कर दिया है। इसलिए लेबर कॉन्ट्रेक्टर को पहले सरपंच के पास जाकर पहचान पत्र और संपर्क नंबर देना होगा। फिर कलेक्टर से परमिशन ( Permission from Collector ) लेने की प्रक्रिया के बाद ही श्रमिकों को लाया जा सकता है।
डोमेस्टिक हेल्पर भी लौटने को तैयार नहीं
शहर में लॉकडाउन के दौरान डोमेस्टिक हेल्परों ( Domestic helpers ) को सोसाइटी व कॉलोनियों में घुसने नहीं दिया गया। मजबूरी में हजारों ऐसे प्रवासी अपने गृह राज्यों को लौट गए। अब स्थानीय लोग उन्हें बुला रहे हैं। मगर प्रवासी आने को तैयार नहीं।
लेबरनेट की संस्थापक गायत्री वसुदेवन का कहना है कि उनके पास रोजाना हजारों डोमेस्टिक हेल्प की मांग आ रही है। इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ।
खेती-किसानी में लगे प्रवासी मजदूर
यूपी के कई जिलों में अच्छी बारिश होने के कारण कई तो खेती के लिए रुक गए हैं, जो तीन महीने के बाद लौटेंगे। मनरेगा योजना ( MNREGA scheme ) में भी लोगों को रोजगार मिलने से वे शहर आने को तैयार नहीं है।
इन राज्यों में लौटे प्रवासी
जून के पहले पखवाड़े के दौरान महाराष्ट्र ( Maharashtra ) में मात्र डेढ़ लाख श्रमिक लौटे हैं। मुंबई को छोड़ राज्य के अन्य हिस्सों में मात्र गुजरात ( Gujrat ) में 25 हजार, कर्नाटक ( Karnataka ) में लगभग 50 हजार और तमिलनाडु ( Tamilnadu ) में 35 हजार मजदूर ही अन्य राज्यों से आए हैं। अन्य राज्यों से हरियाणा और पंजाब ( Haryana and Punjab ) में करीब डेढ़ लाख श्रमिक ही आए हैं।
Updated on:
28 Jun 2020 01:04 pm
Published on:
28 Jun 2020 12:56 pm
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