
Explainer: Political dispute in India on 'Love Jihad', many countries have strict laws on conversion
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश ( Uttar Pradesh ) के योगी आदित्यनाथ सरकार की ओर से प्रदेश में जबरन धर्मांतरण ( Conversion ) को रोकने के लिए एक कानून लाया गया है और इस कानून के तहत पहली गिरफ्तारी भी हो गई है। लेकिन इस कानून को लेकर सियासी फसाद देखने को मिल रहा है।
दरअसल, इस कानून के पीछे विवाद की वजह 'लव जिहाद' ( Love Jihad ) है। भारत के संविधान और मौजूदा कानून में जबरन धर्म परिवर्तन को लेकर कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। मौजूदा कानूनों में भी 'लव जिहाद' को परिभाषित नहीं किया गया है और उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से लाए गए नए कानून में भी इस शब्द को शामिल नहीं किया है। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार के तमाम मंत्री और भाजपा शासित राज्यों के नेताओं व मंत्रियों की ओर से 'लव जिहाद' शब्द का इस्तेमाल पुरजोर तरीके से किया जा रहा है। यही कारण है कि तमाम विपक्षी दलों की ओर से सरकार की मंशा और नीयत पर सवाल खड़े कर रही है।
बहरहाल, सियासत के मैदान में पक्ष और विपक्ष की ओर से घमासान तो चलता ही रहेगा, पर हमारे लिए ये जानना बेहद जरूरी है कि देश के कितने राज्यों में जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए सख्त कानून है और साथ ही क्या केंद्र सरकार की ओर से कभी ऐसा कानून बनाने की कोशिश हुई है? क्या राज्य सरकारें कानून बना सकती हैं? इतना ही नहीं, विदेशों में भी क्या जबरन धर्मांतरण पर कोई कानून है? यदि है तो किन-किन देशों में और क्या प्रावधान है?
भारत के 9 राज्यों में है जबरन धर्मांतरण रोकने का कानून
आपको बता दें कि जबरन धर्मांतरण को लेकर सख्त कानून बनाने के पक्ष में तमाम सियासी दल हैं, लेकिन भाजपा नेताओं और मंत्रियों की ओर से धर्मांतरण की जगह 'लव जिहाद' शब्द को प्रयोग करने पर विपक्ष को सख्त आपत्ति है। मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश को छोड़कर भारत के अन्य 9 राज्यों में जबरन धर्म परिवर्तन को लेकर कानून का प्रावधान है। इसमें कांग्रेस और भाजपा शासित राज्यों के अलावा अन्य क्षेत्रीय दलों के नेतृत्व वाले राज्य भी शामिल हैं। तमिलनाडु में जबरन धर्मांतरण पर पहले से ही कानून बना था, लेकिन फिर 2003 इसे निरस्त कर दिया गया था।
- छत्तीसगढ:- यहां पर छत्तीसगढ़ फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट 1968 लागू है। इसके तहत यदि को ई व्यक्ति किसी दूसरे समूदाय या धर्म के व्यक्ति का जबरन धर्म परिवर्तन कराता है तो उसके खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान है। दोषी को दो साल की कैद या दस हजार रुपये तक जुर्माना या दोनो हो सकता है। यदि पीड़ित व्यक्ति या परिवार SC/ST से संबंध रखता हो तो दोषी को चार साल की सजा और 25 हजार रुपये जुर्माना हो सकता है।
- झारखंड:- इस राज्य में झारखंड फ्रीडम रिलीजन एक्ट 2017 लागू है। झारखंड में यदि कोई व्यक्ति जबरन धर्मांतरण का दोषी पाया जाता है तो दोषी को 3 साल की सजा और 50 हजार का जुर्माना हो सकता है। यदि पीड़ित व्यक्ति या परिवार SC/ST से संबंध रखता हो तो दोषी को चार साल की सजा और एक लाख रुपये तक जुर्माना हो सकता है।
- ओडिशा:- यहां पर ओडिशा फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट 1967 लागू है। इसके तहत जबरन धर्मांतरण कराने के दोषी को एक साल तक की कैद और 5 हजार तक का जुर्माना हो सकता है। पीड़ित परिवार या व्यक्ति SC/ST से संबंध है तो दोषी को 10 हजार रुपये तक जुर्माना और दो साल तक जेल हो सकता है।
- हिमाचल प्रदेश:- यहां पर पिछले साल ही कानून बना है। हिमाचल फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट 2019 के तहत जबरन धर्मांतरण कराने के दोषी को पांच साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है। SC/ST के मामले में दोषी को सात साल की कैद और जुर्माना हो सकता है।
- उत्तराखंड:- यहां पर उत्तराखंड फ्रीडम रिलीजन एक्ट 2018 लागू है। इसके तहत दोषी को जबरन धर्मांतरण कराने के दोषी को पांच साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है। SC/ST के मामले में दोषी को सात साल की कैद और जुर्माना हो सकता है।
- राजस्थान:- यहां पर राजस्थान धर्म स्वतांत्र्य एक्ट 2006 लागू है। इसके तहत जबरन धर्म परिवर्तन कराने वाले दोषी को 5 साल जेल की सजा और 50 हजार रुपये जुर्माना हो सकता है।
- गुजरात:- यहां पर गुजरात फ्रीडम रिलीजन एक्ट 2003 लागू है। इसके तहत दोषी को 3 साल की कैद और 50 हजार रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। SC/ST के मामले में दोषी को चार साल की कैद और एक लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
- अरुणाचल प्रदेश:- यहां पर अरुणाचल प्रदेश फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट 1978 लागू है। इसके तहत दोषी को 2 साल तक की कैद और 10 हजार रुपये तक जुर्माना का प्रावधान है।
- मध्य प्रदेश:- यहां पर मध्य प्रदेश फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट 1968 लागू है। इसके तहत दोषी व्यक्ति को 3 साल की कैद या 20 हजार रुपये जुर्माना या दोनों हो सकता है। SC/ST के मामले में चार साल की कैद और 20 हजार रुपये तक जुर्माना हो सकता है। हालांकि मध्य प्रदेश में एक बार फिर से नए कानून बनाने की तैयारी की जा रही है और इसके लिए कानून का ड्राफ्ट तैयार हो चुका है।
- उत्तर प्रदेश:- यहां पर पिछले 24 नवंबर को उत्तर प्रदेश सरकार कैबिनेट ने 'गैर कानूनी धर्मांतरण विधेयक 2020' को मंजूरी दे दी है। इसके तहत दोषी को 10 साल तक की और 25 हजार से लेकर 50 हजार रुपये तक जुर्माना हो सकता है।
भारत में जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए कब-कब कानून बनाने के प्रयास हुए?
भारत में आजादी से पहले भी धर्मांतरण को लेकर कोई कानून नहीं था। लेकिन कानून बनान के प्रयास आजादी से पहले और आजाद भारत में कई बार किया गया। आजादी से पहले देश के चार रियासतों (राजगढ़, पटना, सरगुजा और उदयपुर) में जबरन धर्मांतरण को लेकर कानून थे। भारत में सबसे पहले राजगढ़ में 1936 में ऐसा कानून बना। उसके बाद 1942 में पटना, 1945 में सरगुजा और फिर 1946 में उदयपुर में कानून बना। इन तमाम रियासतों में हिन्दुओं को ईसाई धर्म में बदलने से रोकने के लिए यह कानून बनाया गया था।
आजादी के बाद भारत सरकार की ओर से 1954 में धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कानून बनाने का पहला प्रयास किया गया। लोकसभा में 'भारतीय धर्मांतरण विनियमन एवं पंजीकरण विधेयक' लाया भी गया, लेकिन पास नहीं हो सका। इसके बाक 1960 और 1979 में एक बार फिर से एक बिल लाया गया, लेकिन दोनों बार भी बहुमत के अभाव में बिल पास नहीं हो सका।
इसके बाद 10 मई 1995 में सरला मुदगल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस कुलदीप सिंह और जस्टिस आरएम सहाय की बेंच ने एक कमिटी बनाने का सुझाव दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने यह सुझाव इसलिए भी दिया था क्योंकि उस दौरान हिन्दू पुरुष एक से अधिक शादी करने के लिए इस्लाम कबूल कर रहे थे। इस्लाम में एक से अधिक शादी की इजाजत है, लेकिन हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत जीवित पत्नी के रहते हुए या बिना तलाक दिए दूसरी शादी करना अपराध है।
क्या राज्य सरकारें बना सकती है कानून?
हमारा देश संघीय व्यवस्था पर आधारित है। यानी कि कुछ विषय पर केंद्र सरकार कानून बनाती है, जो पूरे देश में लागू होता है। कुछ विषय पर राज्यों को अधिकार है कि वह अपने राज्य के जरूरत और सुविधानुसार कानून बना सके। जबकि कुछ विषयों पर राज्य और केंद्र दोनों को अधिकार है कि वह कानून बना सके।
जबरन धर्म परिवर्तन के मामले में हमारे संविधान में कोई ठोस कानून नहीं है। हालांकि, डरा-धमका कर धर्म परिवर्तन को अपराध माना गया है। राज्य सरकारें इस विषय पर कानून बना सकती है। राज्यों की ओर से बनाए गए कानूनी बिल को विधानसभा में पास कराने के बाद राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद बिल कानून बन जाता है।
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से 'गैर कानूनी धर्मांतरण विधेयक 2020' लाए जाने के बाद से असम, हरियाणा, कर्नाटक और अन्य भाजपा शासित राज्यों में धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून बनाने की तैयारी की जा रही है।
विदेशों में जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून
आपको बता दें कि भारत में भले ही जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ कोई कानून नहीं है, लेकिन कई पड़ोसी देशों में सख्त कानून है। इसके लिए कड़े सजा का प्रावधान भी किया गया है।
- पाकिस्तान:- पड़ोसी देश पाकिस्तान एक मुस्लिम देश है और यहां की 95 फीसदी आबादी मुस्लमान है। जबरन धर्म परिवर्तन के मामले में पाकिस्तान में 5 साल कैद से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है।
- श्रीलंका:- श्रीलंका की 69 फीसदी आबादी बौद्ध है। यहां पर 15 फीसदी हिन्दू और 8-8 फीसदी क्रिश्चियन और मुस्लमान आबादी है। जबरन धर्म परिवर्तन के मामले में यहां पर 7 साल जेल की सजा का प्रावधान है।
- नेपाल:- नेपाल की जनसंख्या में 81.3 फीसदी आबादी हिन्दुओं की है, जबकि 4.4 मुस्लिम और 1.4 क्रिश्चियन आबादी है। जबरन धर्मांतरण के दोषी को 6 साल तक जेल की सजा का प्रावधान है।
- म्यांमार:- यहां की जनसंख्या में 87.9 फीसदी बौद्ध धर्म को मानने वाले हैं। वहीं, 6.2 क्रिश्चियन और 4.3 मुस्लिम जनसंख्या है। जबरन धर्म परिवर्तन के मामले में 2 साल जेल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
- भूटान:- भूटान की जनसंख्या में 75 फीसदी बौद्ध धर्म के लोग हैं, जबकि 22 फीसदी हिन्दू आबादी है। यहां पर जबरन धर्म परिवर्तन के लिए सजा का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन ये तय किया गया है कि कोई भी किसी का जबरन धर्मांतरण नहीं करवा सकता है।
Updated on:
05 Dec 2020 05:31 pm
Published on:
05 Dec 2020 04:54 pm
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