
नई दिल्ली। सोमवार की रात लद्दाख में भारत और चीनी सैनिकों के बीच खूनी संघर्ष हुआ, जिसमें हमारे 20 जवान शहीद हो गए। यह बात हम सबको पता है। जो बात नहीं मालूम है, वो यह कि दोनों सेनाओं में लगभग 20 दिन से चली आ रही शांतिवार्ता के बीच अचानक ऐसा क्या हुआ कि नौबत मरने-मारने तक पहुंच गई।
क्या ड्रैगन ने कोई जाल बिछाया था या फिर हमारे सैनिक निहत्थे थे और सतर्क नहीं थे?
संघर्ष के समय चीनी सैनिकों की संख्या कितनी रही होगी? उस समय दुश्मन की मंशा क्या थी? क्या दुश्मन हम पर हावी पड़ रहा था या फिर हमें उसकी साजिश का अंदाजा नहीं था? लद्दाख के दुर्गम इलाके और ऊंची-ऊंची पहाड़ियों के बीच मौसम और हालात कैसे रहे होंगे।
अब तक हमें इसका साफ-साफ अंदाजा नहीं था, लेकिन जब इस संघर्ष में मौजूद भारत के एक घायल जवान ने वहां का आंखों देखा हाल बयां किया तो सब अवाक रह गए। दरअसल, वास्तव में यह सबकुछ उससे कहीं अधिक था, जितना कि हमने सोचा था।
गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ संघर्ष के दौरान घायल हुए सुरेंद्र सिंह को जब घटना के 12 घंटे बाद होश आया तो उन्होंने अपने आप को हॉस्पिटल में पाया। आसपास कुछ डॉक्टर्स और सेना के अधिकारी खड़े थे, जो उसके चेहरे की ओर टकटकी लगाए देख रहे थे। एक बार को सुरेंद्र यह सब देख कुछ समझ नहीं पाए, लेकिन जल्द ही गलवान घाटी का वह खौफनाक दृष्य उनके जेहन में कौंध गया। डॉक्टर की इजाजत मिलने पर सुरेंद्र ने अपने जब अफसरों को गलवान घाटी की घटना का हाल सुनाया तो सबके मन में न केवल भारतीय जवानों के प्रति संवेदनाएं उभर आईं, बल्कि चीन की विश्वासघाती पर भारी क्रोध भी।
सुरेद्र ने बताया कि सोमवार की सर्द रात में रोजाना की तरह हालात बिल्कुल सामान्य थे। चूंकि दोनों पक्षों में शांतिवार्ता चल रही थी, इसलिए आने वाली घटना का कोई आभास भी नहीं था। हम गलवान घाटी से निकलने वाली नदी के पास तैनात थे और हमारी संख्या भी 200 के आसपास रही हागी। तभी अचानक इकठ्ठा होकर आए हजार से अधिक चीनी सैनिकों ने हमारे ऊपर हमला बोल दिया। हमें चीनी सैनिकों की इस हरकत का बिल्कुल अंदाजा नहीं था और हमे लगा था कि वो शायद हमसे बात करने आ रहे हैं। अब इससे पहले कि हम पूरी तरह संभल पाते या उनकी मंशा समझते उन्होंने हम पर ताबड़तोड़ हमला बोल दिया। चीनी सैनिकों के हाथ में लाठी-डंडे, कंटीले तारों से लिपटे बेस बॉल वाले बैट कुछ धारदार हथियार और पत्थर थे। बावजूद इसके हमने दुश्मन सैनिकों का डटकर मुकाबला किया। मौसम बेहद सर्द था और हाड़ कंपा देने वाली ठंड पड़ रही इसबीच माइनस तापमान से नीचे जा चुकी नदी के पांच फुट पानी में हम 4 से 5 घंटों तक चीनी सैनिकों से लोहा लेते रहे।
हालात ऐसे थे कि नदी के किनारे से होकर केवल एक आदमी ही बाहर निकल सकता था। कुछ इस वजह से भी हम लोगों को संभलने में परेशानी हुई। सुरेंद्र ने बताया कि हमारा एक-एक जवान चीन के चार-चार सैनिकों पर भारी पड़ रहा था। एकबार को तो दुश्मन सैनिकों को पांव उखड़ गए और नौबत उनके भागने जैसे आ गई। लेकिन हम धोखे का शिकार थे। हम चीनी सैनिकों से जरा भी कम न थे, अगर दुश्मन के षड़यंत्र का हमें भान भी होता तो आज हालात दूसरे होते। संघर्ष में सुरेंद्र का एक हाथ टूट चुका था, बावजूद इसके वह एक हाथ से ही दुश्मन का मुकाबला कर रहे थे। तभी अचाकन कोई भारी वस्तु उनके सिर में आकर लगी और उनकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया और जब होश आया तो वह हॉस्पिटल में डॉक्टर और अपने अफसरों के बीच थे।
सुरेंद्र का राजस्थान के अलवर जिले में एक छोटा सा गांव है। पूरा गांव उनके ठीक होने की दुआएं कर रहा। जब उनको सुरेंद्र के होश में आने की खबर मिली तो सबके चेहरे पर संतोष भरी मुस्कान थी।
Updated on:
19 Jun 2020 07:16 am
Published on:
18 Jun 2020 07:14 pm
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