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…जब नौकर की सिगरेट चुराने पर आत्मग्लानि से भर गए थे गांधी, किया था आत्महत्या का प्रयास

ऐसा ही एक किस्सा उन दिनों का है जब महात्मा गांधी किशोरावस्था में थे। उस समय गांधी न केवल कमजोर और दब्बू थे, बल्कि अजीब हरकतें भी करते थे।

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...जब नौकर की सिगरेट चुराने पर आत्मग्लानि से भर गए थे गांधी, किया था आत्महत्या का प्रयास

नई दिल्ली। दो अक्टूबर को राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी की जयंती है। ऐसे में बापू से जुड़ी तमाम सुनी व अनसुनी स्मृतियां मन में कौंध उठती हैं। ऐसा ही एक किस्सा उन दिनों का है जब महात्मा गांधी किशोरावस्था में थे। उस समय गांधी न केवल कमजोर और दब्बू थे, बल्कि अजीब हरकतें भी करते थे। इस दौरान उन पर एक अजीबोगरीब हवा सवार थी, जिसके चलते उन्होंने कुछ काम गलत भी किए। मोहनदास के रूप में पहचाने जाने वाले गांधीजी ने अपनी आत्मकथा में खुद उन बातों को स्वीकार किया।

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नौकर की सिगरेट चुराकर पी

ऐसा भी वाक्या है जब मोहनदास ने सिगरेट पी, चोरी की और यहां तक कि आत्महत्या करने की भी सोची। बदनामी के डर से बेखबर वह एक दिन वेश्या के कोठे तक पहुंच गए। स्कूल में भी उनका व्यवहार कुछ अजीब ही था। किसी से बात न करना और दोस्त न बनाना उनकी आदतों में शुमार था। उनके जीवन में जो शख्स पहली बार दोस्त बना, उसका नाम शेख मेहताब था। निडर और साहसी स्वभाव वाले मेहताब से मोहनदास काफी प्रभावित हुए। एक दिन बातों ही बातों में मेहताब ने उनको ताकत बढ़ाने के लिए गोश्त खाने की सलाह दे डाली। चूंकि गांधीजी ठहरे विशुद्ध शाकाहारी पारिवार से ताल्लुक रखने वाले। ऐसे में गोश्त का सेवन करना उनके लिए किसी महापाप से कम नहीं था। हालांकि दोस्त के आग्रह पर उन्होंने गोश्त का सेवन करना चाहा, लेकिन चाह कर भी ऐसा नहीं कर पाए और उनको उल्टी हो गई।

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फिर एक दिन ऐसा भी समय आया जब मेहताब ने मोहनदास पर वेश्या के कोठे पर जाने का दबाव बनाया। यह सुनकर गांधीजी बिगड़ गए और दोस्त का विरोध करने लगे, लेकिन मेहताब ने उनको समझाया कि ऐसा करने में कोई बुराई नहीं है। अब मेहताब के कहने पर गांधीजी माने तो समस्या पैसे की आ गई। गांधीजी की जेब उस समय बिल्कुल खाली थी। लेकिन मेहताब अपने पैसे से उनको कोठे पर लेकर पहुंचा। वहां मेहताब उनको एक महिला के साथ छोड़कर दूसरे कमरे में चला गया। महिला के साथ गांधीजी ने जैसे ही अपने आप को अकेला पाया, तो वह डर से बुरी तहर कांपने लगे और बुरी तरह सहम गए। ऐसा देख महिला ने उनको समझाया और कमरे से बाहर जाने को कहा।

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हालांकि महिला के कहने पर गांधीजी कोठे से तो आ गए, लेकिन लंबे समय तक उनको एक अजीब अपराधबोध घेरे रहा। उनको लगा कि महिला ने जानबूझकर उनके पुरुषत्व को धिक्कारा है। इसका एक बड़ा कारण यह भी था कि उन्होंने यह कदम कस्तूरबा से शादी के बाद उठाया था। हालांकि उन्होंने कस्तूरबा से यह बात हमेशा छिपाए रखी, लेकिन इसको लेकर वह हमेशा आत्मग्लानि से भरे रहे।

इसके साथ ही एक बार स्कूल के दिनों में उनको सिगरेट पीने की लत लग गई। परिवार वालों की नजरों से बच वह अपने चचेरे भाई को साथ लेकर खूब सिगरेट पीते थे। लत भी ऐसी थी कि सिगरेट खत्म हो जाने पर वह हरी सब्जियों के पत्तों की सिगरेट बनाकर पीते थे और नौकरों की सिगरेट निकालकर चुपचाप पी लेते थे। एक नौकर जब उनको ऐसा करते देखा तो गांधीजी अपराधबोध से भर उठे और उन्होंने सुसाइड करने का प्रयास किया। अपराधबोध से कुढ़ रहे गांधीजी अपने चचेरे भाई को साथ लेकर सुसाइड करने जंगल की ओर निकल पड़े। जंगल से वह धतूरा तलाशना चाहते थे। एकबार उन्होंने सुना था कि धतूरा खाने से आदमी मर जाता है। इसलिए सुसाइड के लिए उन्होंने धतूरा ही चुना। एक मंदिर में जाकर दोनों ने धतूरा के बीच सटक लिए, लेकिन इससे उनको कुछ नहीं हुआ।