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Patrika Positive News: अस्पताल जाने के लिए नहीं था रास्ता, युवाओं ने बनाई सड़क

Patrika Positive News: लोगों की तबीयत खराब हो जाने के कारण उनको अस्पताल तक पहुंचाने के लिए स्टेचर या फिर पालकी के जरिए सड़क तक पहुंचाया जाता है। गांव की इस परेशानी को देखते हुए युवाओं ने सड़क बनाने की जिम्मेदारी खुद अपने हाथों में ले ली और देखते ही देखते उन्होंने अपने लक्ष्य को पूरा कर लिया।

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Patrika Positive News: महामारी कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने देशभर में तबाही मचा रखी है। दूसरी लहर के पीक टाइम के दौरान अस्पतालों में मरीजों को बेड और ऑक्सीजन सहित इलाज के लिए कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ा। हालांकि अब देश में कोरोना की मरीजों को रोना के मरीजों की संख्या में कमी आ रही है। देश के कई कोने में आज भी सड़कें बनी हुई नहीं है, जिसके कारण इस मुश्किल दौर में मरीजों को अस्पताल तक पहुंचने में कई प्रकार की परेशानियां हो रही है। उत्तराखंड के सनौली मफी गांव में भी कोरोना के मरीजों को इस प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ा। लोगों की तबीयत खराब हो जाने के कारण उनको अस्पताल तक पहुंचाने के लिए स्टेचर या फिर पालकी के जरिए सड़क तक पहुंचाया जाता है। गांव की इस परेशानी को देखते हुए युवाओं ने सड़क बनाने की जिम्मेदारी खुद अपने हाथों में ले ली और देखते ही देखते उन्होंने अपने लक्ष्य को पूरा कर लिया। हम पत्रिका पॉजिटिव न्यूज ( Patrika Positive News ) अभियान के तहत आपको ऐसे ही लोगों से रूबरू करवा रहे हैं।

सड़क बनाने के लिए युवा साथियों की बनाई टीम
28 वर्षीय नरेश ने एक टीम बनाई जो लगातार सड़क बनाने के काम में जुटी हुई है। नरेश इसी गांव में पला पड़ा हुआ है। जब उन्होंने लोगों की परेशानी देखी तो उनसे रहा नहीं गया और इस परेशानी से मुक्ति पाने के लिए अपने युवा साथियों के साथ मिलकर सड़क बनाने की ठान ली। नरेश की टीम छीनी, हथौड़ी और कुदाली का इस्तेमाल करते हुए सड़क बनाने के काम में जुट गए। उनका उद्देश्य था कि बूढ़े और बीमार लोगों को अस्पताल पहुंचाने में ज्यादा समय और परेशानियों का सामना नहीं करना पड़े। उनको अस्पताल पहुंचाने के लिए पहाड़ पर चढ़कर नहीं जाना पड़े।

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अथक प्रयास और कड़ी मेहनत से बनाई सड़क
युवाओं को काम करते हुए देख गांव के लोगों ने भी इस मिशन में अपना सहयोग देना शुरू किया। लोगों को अपने परिवार जनों के खोने के डर से एकजुट होकर सड़क निर्माण का काम शुरू किया। यह काम सुबह 6:00 बजे से लेकर शाम 4:00 बजे तक करते रहे। अथक प्रयास और कड़ी मेहनत आखिरकार रंग लाई और लोगों के पास अब एक सड़क उपलब्ध हो गई। इस सड़क की सहायता से अस्पताल और शहर जाने के लिए समय की बचत के साथ परेशानियों से भी छुटकारा मिल गया।


पहाड़ी चढ़कर जाते थे गांव
नरेश और उसके दोस्त जगदीश और लोकेश ने एक सप्ताह में 1 किलोमीटर की सड़क तैयार कर ली है। इतना ही नहीं उनका लक्ष्य है कि वह 3 किलोमीटर और इस सड़क को तैयार करेंगे। एक इंटरव्यू के दौरान नरेश ने बताया कि वे दिल्ली में रहते है। लॉकडाउन के कारण उनको अपने गांव जाना पड़ा। घर जाने के लिए एक ही रास्ता था वह भी पहाड़ी पर चढ़कर जाना पड़ता था।

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लेते थे स्ट्रेचर या पालकी का सहारा
उन्होंने कहा कि कोरोना के इस मुश्किल दौर में काफी लोग बीमार हो गए। इस दौरान उनको अस्पताल ले जाने के लिए स्ट्रेचर या पालकी का सहारा लेना पड़ता था। सड़क नहीं होने के कारण गांव के सभी लोगों को काफी परेशानी होती थी। उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर सड़क बनाने की सड़क बनाने का विचार किया। लॉकडाउन के कारण सभी लोग फ्री थे और इस मिशन को पूरा करने के लिए सभी लोग जुट गए। कुछ दिनों में ही एक सड़क बन कर तैयार हो गई।


इलाज के अभाव कई लोगों की गई जान
स्थानीय लोगों का कहना है कि राजनेताओं और अधिकारियों ने चुनाव के समय वादे तो बहुत किए लोगों को मदद के लिए भी आश्वासन दिया। लेकिन अभी तक उनका एक भी वादा पूरा नहीं हो सका। स्थानीय लोगों का कहना है कि समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। युवाओं ने मिलकर जो काम किया है वह बहुत ही सराहनीय सराहनीय है।


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