17 मई खत्म हो जाएगा लॉकडाउन! आज मुख्यमंत्रियों संग पीएम मोदी करेंगे बैठक इस दौरान पीएम मोदी ने अपने ट्विटर पर राजस्थान के पोखरण में भारत के परमाणु परीक्षण का जिक्र करते हुए लिखा, “राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस पर हमारा राष्ट्र उन सभी को सलाम करता है जो दूसरों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठा रहे हैं। हम 1998 में इस दिन अपने वैज्ञानिकों की असाधारण उपलब्धि को याद करते हैं। यह भारत के इतिहास में एक ऐतिहासिक क्षण था।”
वहीं, अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा, “1998 में पोखरण में हुए परीक्षणों ने भी बदलाव को दिखाया जो एक मजबूत राजनीतिक नेतृत्व कर सकता है।” 11 मई, 1998 भारत के इतिहास में वह महत्वपूर्ण दिन है जब देश ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ( Atal Bihari Vajpayee ) के नेतृत्व में पोखरण में सफलतापूर्वक परमाणु परीक्षण किया था। इन भूमिगत परीक्षणों ने दुनिया के परमाणु मंच पर देश का नाम उभारा और इस रणनीतिक कार्यक्रम की कुछ प्रभावशाली घटनाओं के लिए विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर देश को परमाणु शक्ति के रूप में स्वीकारने पर मजबूर किया।
लॉक़डाउन खत्म होने से पहले भारतीय रेलवे शुरू करने जा रही है अपनी सेवाएं, कब से कौन से क्लास की बुकिंग होगी पहले तीन विस्फोट 11 मई को अपराह्न 3.45 बजे एक साथ हुए थे। इनमें एक 45 kT थर्मोन्यूक्लियर डिवाइस, एक 15kt विखंडन यंत्र और एक 0.2 kt उप-किलोटन (जो एक किलोटन से कम है) उपकरण शामिल थे। 13 मई को एक साथ विस्फोट किए गए दो परमाणु उपकरण 0.5 kT और 0.3 kT सब-किलोटन रेंज में थे।
यह परीक्षण तब हुआ जब विदेश सचिव के रघुनाथ ने अपने अमरीकी समकक्ष से कहा कि भारत का परमाणु उपकरण के परीक्षण का कोई इरादा नहीं है। इस परीक्षण ने भारत के लिए मुसीबतों के दरवाजे खोल दिए थे, जिनमें प्रतिबंध, आर्थिक और सैन्य और पारस्परिक अलगाव शामिल था।
इसके बाद तत्कालीन अमरीकी राष्ट्र सचिव स्ट्रोब टैलबोट और तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह के बीच सात देशों, 10 शहरों में 14 दौर की वार्ता भी हुई। अमरीकियों और पश्चिम के लिए, भारत परमाणु क्लब में प्रवेश कर चुका था। परमाणु समानता की मांग करने वाले पाकिस्तान को लेकर अमरीकियों ने आशंका जताई थी कि दक्षिण एशिया न्यूक्लियर फ्लैशप्वाइंट बन जाएगा। हालांकि टैलबोट और सिंह की बातचीत ने इन सभी चिंताओं को दरकिनार किया।
अमरीका और भारत एक साथ मिलकर कर रहे हैं तीन वैक्सीन पर काम उस वक्त तत्काल चुनौती अंतरराष्ट्रीय विरोध को कम करने के साथ ही अमरीका के बीच पैदा हुई भरोसे की खाई को पाटना था। लेकिन बाद के वर्षों में भारत ने सफलतापूर्वक सब कुछ प्रबंधित किया और इसका परमाणु कार्यक्रम काफी परिपक्व भी हुआ।