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संभाजी महाराज जयंती 2021 : 8 साल में जानते थे 14 भाषाएं, जानिए उनसे जुड़ी खास बातें

संभाजी महाराज जब दो साल के थे तब उनकी मां का निधन हो गया था। इसके बाद उनकी दादी जीजाबाई ने उनका पालन-पोषण किया था। । शिवाजी महाराज के बड़े पुत्र संभाजी अपने पिता के निधन के बाद मराठा साम्राज्य के दूसरे शासक बने।

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Sambhaji Jayanti 2021

Sambhaji Maharaj

नई दिल्ली। मराठा साम्राज्य की नींव रखने वाले महान शासक और वीर योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज के बड़े बेटे संभाजी महाराज (Sambhaji Maharaj) की आज जयंती है। संभाजी महाराज का जन्म 14 मई, 1657 को पुणे के पुरंदर में हुआ था। संभाजी राजे (शंभू राजे) छत्रपति शिवाजी महाराज और रानी साईबाई के सबसे बड़े पुत्र हैं। शिवाजी महाराज के बड़े पुत्र संभाजी अपने पिता के निधन के बाद मराठा साम्राज्य के दूसरे शासक बने। यह दिन पूरे महाराष्ट्र और देश के अन्य हिस्सों में धूम धाम से मनाया जाता है। पराक्रमी छत्रपति संभाजी महाराज की जयंती के मौके पर जानते उनसे जुड़ी खास बातें।

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8 साल की उम्र में जानते थे 14 भाषाएं
संभाजी महाराज जब दो साल के थे तब उनकी मां का निधन हो गया था। इसके बाद उनकी दादी जीजाबाई ने उनका पालन-पोषण किया था। दादी ने ही उनमें गुणों के बीज बोए, जो उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज को दिए थे। संभाजी ने 1672 में पेशवा मोरोपंत पिंगले के साथ कोलवान के मराठा कब्जे के विजय अभियान में पहली बार मराठा सेना का नेतृत्व किया था। पिता शिवाजी हमेशा देशसेवा और युद्ध में व्यस्त रहते थे। महज साढ़े आठ साल में संभाजी महाराज 14 भाषाओं के ज्ञाता बन चुके थे।

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14 साल उम्र हो गए युद्ध, शासन और अर्थशास्त्र में पारंगत
संभाजी के बारे में कहा जाता है कि वो न्यायप्रिय थे। पिता जी की अनुपस्थिति में संभाजी महाराज नियमित तौर पर जनता दरबार और न्याय दरबार संभाला करते थे। जहां वो जनता की परेशानियां सुनते औऱ उन्हें न्याय मिले, इसका प्रबंध करते। 14 साल तक संभाजी महाराज युद्ध, शासन और अर्थशास्त्र में पूरी तरह पारंगत हो चुके थे। जनता उन्हें बहुत प्यार करती थी औऱ उनके फैसलों का सम्मान करती थी।

छोटी सी उम्र में थी राजनीति की गहरी समझ
छोटी सी उम्र में ही संभाजी को राजनीति की गहरी समझ थी। ऐसा कहा जाता है कि जब वे 9 साल के थे तभी उन्हें एक समझौते के तहत राजपूत राजा जयसिंह के यहां बंदी की तरह रहना पड़ा था। जब वो पिता के निधन के बाद सत्ता में आए तभी से उन्होंने मुगलों से बैर लेना शुरू कर दिया था। उन्होंने बुरहानपुर पर हमला कर मुगल सेना को हरा दिया। महज 32 साल की उम्र में ही मुगल बादशाह औरंगजेब ने उनकी हत्या करवा दी थी।